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भगवई
तुलना में, यहां तक कि बुद्ध की तुलना में भी अपने समय के आध्यात्मिक उत्साह एवं उत्कटता से अधिक प्रेरित थे ।
“फ्राउवालनार ने अपने ग्रन्थ हिस्ट्री आफ इण्डियन फिलासोफी में बुद्ध के विषय में सम्भवतः जिन (महावीर ) से उनकी तुलना करते समय, यह अभिमत व्यक्त किया है कि उनका (बुद्ध का ) दार्शनिक विचारों के क्षेत्र के विकास में अपेक्षाकृत बहुत थोड़ा योगदान मिला । यद्यपि यह फैसला बहुत अधिक कड़ा है, फिर भी यह एक मजबूत आधारभित्ति पर आधारित है कि बुद्ध अपने समकालीन दार्शनिकों के सामने आने वाले प्रश्नों के उत्तर देने से साफ इन्कार कर देते थे। चूंकि महावीर ने इन सभी प्रश्नों के बहुत ही व्यवस्थित रूप से उत्तर दिए; इसलिए उन्हें जो प्राचीन भारत के ज्ञानी चिन्तकों में सर्वाधिक ज्ञानी कहा गया है, वह बिलकुल उचित ही है। "
प्रस्तुत आगम में गति-विज्ञान, भावितात्मा द्वारा नाना रूपों का निर्माण,' भोजन और नाना रूपों के निर्माण का सम्बन्ध, चतुर्दशपूर्वी द्वारा एक वस्तु के हजारों प्रतिरूपों का निर्माण, भावितात्मा द्वारा आकाशगमन, पृथ्वी आदि स्थावर जीवों का श्वास- उच्छ्वास, सार्वभौम धर्म का प्रवचन, गतिप्रवाद अध्ययन की प्रज्ञापना, कृष्णराजि, तमस्काय,” परमाणु की गति," दूरसंचार” आदि अनेक महत्त्वपूर्ण प्रकरण हैं। उनका वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन अपेक्षित है।
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विभाग और अवान्तर विभाग
शतक
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२
ม
समवायांग और नंदीसूत्र के अनुसार प्रस्तुत आगम के सौ से अधिक अध्ययन, दस हजार उद्देशक और दस हजार समुद्देशक हैं। इसका वर्तमान आकार उक्त विवरण से भिन्न है। वर्तमान में इसके एक सौ अड़तीस शत या शतक और उन्नीस सौ पच्चीस उद्देशक मिलते हैं। प्रथम बत्तीस शतक स्वतन्त्र हैं। तेतीस से उनचालीस तक सात शतक बारह-बारह शतकों के समवाय हैं। चालीसवां शतक इक्कीस शतकों का समवाय है। इकतालीसवां शतक स्वतन्त्र है। कुल मिलाकर एक सौ अड़तीस शतक होते हैं। उनमें इकतालीस मुख्य और शेष अवान्तर शतक हैं।
शतकों में उद्देशक तथा अक्षर-परिमाण इस प्रकार है
४
५
६
७
८
६
१०
99
१२
१३
१४
१५
उद्देशक
१०
१०
१०
१०
१०
१०
१०
१०
३४
३४
१२
१०
90
१०
०
अक्षर-परिमाण
३८८६७
२३८४४
३६७३२
Jain Education International
७५३
२५६६१
१८६०२
२४६३५
४८५३४
४५८८३
६६०७
३२३३८
३२८६८
२१६१४
१६०३३
३६८२२
शतक
१६
१७
१८
१६
२०
२१ (आठ वर्ग)
२२ (छह वर्ग )
२३ (पांच वर्ग)
२४
२५
२६
२७
२१
२५
२६
३०
is soundly based on the Buddha's well-known stern refusal to consider a great many question that occupied his contemporaries. Because of his systematic approach to all these questions, Mahavira has, I think, rightly been called ,,1 'the most versatile thinker we know of in ancient India." १.३।११७१२६ ।
उद्देशक
१४
१७
१०
१०
१०
५०
६०
५०
२४
१२
११
99
११
99
२८
२. ३।१८६-१६१३ | १६४-१६६ ।
३. ३११६१ ।
४. ५1११२,११३ ।
५. ३१६७२१८ ।
६. २।२६।२५३-२५७ ।
७. ६६-३३ ।
1. W. Schubring, The Doctrine of the Jainas (Delhi etc., 1962), p. 40.
अक्षर-परिमाण
१५६३६
८५१२
२२४५२
८०२७
१६८७१
१६३०
१०६८
७१५
३६६२६
४५१०३
४४५५
१६०
६६४
१०२७
४७६४
शतक
३१
३२
३३ (१२)
३४ (१२)
३५ (१२)
३६ (१२)
३७ (१२)
For Private & Personal Use Only
३८ (१२)
३६ (१२)
४० (२१)
४१
भूमिका
१३८
उद्देशक अक्षर-परिमाण
११
२३४४
२८
३६३
१२४
३०८६
१२४
८६६६
१३२
४१८१
१३२
७३१
१३२
११५
१३२
१३२
२३१
१६६
८७
१३६
२७३४
३५१६
८. ८/२६२,२६३ |
६. ६१८६११८। १०. ६ | ७०-८८ ११. १६।११६ १२.५१०३ ।
१३. सम. प. सू. ६३, नंदी, सू. ८५ ।
१४. बीसवें शतक के छुट्टे उद्देशक में पृथ्वी, अप्, और वायु इन तीनों की उत्पत्ति का निरूपण है। एक परम्परा के अनुसार यह एक उद्देशक है, दूसरी परम्परा
के मत में ये तीन उद्देशक हैं। इस परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के कुल उद्देशक १६२५ हैं ।
१६२३४ ६१७२१४
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