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श.१: उ.. सू.३७५-३८२
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भगवई ३७७. नेरइया णं भंते ! किं सवीरिया ? नैरयिकाः भदन्त ! किं सवीर्याः ? अवीर्याः? ३७७. भन्ते ! क्या नैरयिक सवीर्य हैं ? अथवा अवीरिया ?
अवीर्य हैं ? गोयमा ! नेरडया लद्धिवीरिएणं सीरिया, गौतम ! नैरयिकाः लब्धिवीर्येण सवीर्याः, गौतम ! नैरयिक लब्धिवीर्य से सवीर्य हैं तथा करणवीरिएणं सवीरिया य, अवीरिया य॥ करणवीर्येण सवीर्याः च, अवीर्याः च । करणवीर्य से सवीर्य और अवीर्य दोनों हैं।
३७८. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ-
नेरइया लक्विीरिएणं सवीरिया ? करण- वीरिएणं सवीरिया य अवीरिया य? गोयमा ! जेसि णं नेरइयाणं अत्थि उहाणे कम्मे बले वीरिए परिसकार-परक्कमे, ते णं नेरइया लद्धिवीरिएण वि सवीरिया, करण- वीरिएण वि सवीरिया। जेसि णं नेरइयाणं णत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे, ते णं नेरइया लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया। से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुचइ-नेरइया लद्धिवीरिएणं सवीरिया। करणवीरिएणं सवीरिया य, अवीरिया य॥
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिकाः ३७६. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा लब्धिवीर्येण सवीर्याः ? करणवीर्येण सवी- है-नैरयिक लब्धिवीर्य से सवीर्य तथा करणवीर्य र्याः च अवीर्याः च ?
से सवीर्य और अवीर्य दोनों हैं ? गौतम ! येषां नैरयिकाणाम् अस्ति उत्थानं गौतम ! जो नैरयिक उत्थान, कर्म, बल, वीर्य कर्म बलं वीर्यं पुरुषकार-पराक्रमः, ते नैर- और पुरुषकार-पराक्रम से युक्त हैं, वे लब्धिवीर्य यिकाः लब्धिवीर्येण अपि सवीर्याः, करण- से भी सवीर्य हैं और करणवीर्य से भी सवीर्य हैं। वीर्येण अपि सवीर्याः। येषां नैरयिकाणां नास्ति उत्थानं कर्म बलं वीर्यं जो नैरयिक उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषपुरुषकार-पराक्रमः, ते नैरयिकाः लब्धिवीर्येण कार-पराक्रम से हीन हैं, वे लब्धिवीर्य से सवीर्य सवीर्याः, करणवीर्येण अवीर्याः । तत् तेनार्थेन और करणवीर्य से अवीर्य हैं। गौतम ! इस अपेक्षा गौतम ! एवमुच्यते-नैरयिकाः लब्धिवीर्येण से यह कहा जा रहा है-नैरयिक लब्धिवीर्य से
सवीर्य हैं तथा करणवीर्य से सवीर्य और अवीर्य च।
दोनों हैं।
३७६. जहा नेरइया एवं जाव पंचिंदियतिरि- यथा नैरयिकाः एवं यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यग- ३७६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक तक नैरयिक की खजोणिया॥ योनिकाः।
भांति ज्ञातव्य हैं।
३६०. मणुस्सा णं भंते ! किं सवीरिया ?
अवीरिया ? गोयमा ! सवीरिया वि, अवीरिया वि॥
मनुष्याः भदन्त ! किं सवीर्याः ? अवीर्याः ? ३८०, भन्ते ! क्या मनुष्य सवीर्य हैं ? अथवा अ
वीर्य हैं ? गौतम ! सवीर्याः अपि, अवीर्याः अपि। गौतम ! मनुष्य सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं।
३८१. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते—मनुष्याः ३८१. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है मणुस्सा सवीरिया वि? अवीरिया वि? सवीर्याः अपि ? अवीर्याः अपि?
—मनुष्य सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं ? गोयमा ! मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा गौतम ! मनुष्याः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञाप्त हैं-सेलेसिपडिवण्णगा य, असेलेसिपडि- यथा-शैलेशीप्रतिपन्नकाः च अशैलेशीप्रति- शैलेशीप्रतिपन्न और अशैलेशीप्रतिपन्न । वण्णगाय।
पत्रकाः च। तत्थ णं जेते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं तत्र ये एते शैलेशीप्रतिपन्नकाः ते लब्धिवीर्येण इनमें जो शैलेशीप्रतिपन्न हैं, वे लब्धिवीर्य से सवीर्य लद्धिवीरिएणं सीरिया, करणवीरिएणं सवीर्याः, करणवीर्येण अवीर्याः। तत्र ये एते और करणवीर्य से अवीर्य हैं। इनमें जो अशैलेशीअवीरिया। तत्थ णं जेते असेलेसिपडि- अशैलेशीप्रतिपन्नकाः ते लब्धिवीर्येण स- प्रतिपन्न हैं, वे लब्धिवीर्य से सवीर्य और करणवीर्य वण्णगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, वीर्याः, करणवीर्येण सवीर्याः अपि, अवीर्याः से सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं। गौतम ! करणवीरिएणं सवीरिया वि, अवीरिया वि। अपि। तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है—मनुष्य सवीर्य से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुचइ-मणुस्सा -मनुष्याः सवीर्याः अपि, अवीर्याः अपि। भी हैं और अवीर्य भी हैं। सवीरिया वि, अवीरिया वि॥
३५२. वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया जहा
नेरइया॥
वानमन्तर-ज्यौतिष-वैमानिकाः यथा नैर- ३८२. वानमन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव यिकाः।
नैरयिक जीवों की भांति ज्ञातव्य हैं।
भाष्य
१. सूत्र ३७५-३८२
भ.१११४४ में वीर्य को शरीर से उत्पन्न बतलाया गया है। कर्मशास्त्रीय दृष्टि से अन्तराय कर्म का क्षायोपशमिक या क्षायिकभाव और
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