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________________ १६० श.१: उ.. सू.३६०-३६३ किचा नेरइएसु उववञ्जति, णो तिरियाउयं उपपद्यते, नो तिर्यगायुः कृत्वा तिर्यक्षु उप- किचा तिरिएसु उववाति, णो मणुस्साउयं पद्यते, नो मनुष्यायुः कृत्वा मनुष्येषु उपपद्यते किचा मणुस्सेसु उववज्जति, देवाउयं किचा देवायुः कृत्वा देवेषु उपपद्यते । देवेसु उववजति ॥ भगवई आयुष्य बांधता है। वह न नरक का आयुष्य बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है, न तिर्यञ्च का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है, न मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है, वह केवल देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है। ३६१. से केणद्वेणं जाव देवाउयं किचा देवेसु उववजति? गोयमा ! एगंतपंडियस्स णं मणुस्सस्स केवलमेव दो गतीओ पण्णायंति, तं जहा --अंतकिरिया चेव, कप्पोववत्तिया चेव। से तेणटेणं गोयमा ! जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववञ्जति ॥ तत् केनार्थेन यावद् देवायुः कृत्वा देवेषु ३६१. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैउपपद्यते ? एकान्त पण्डित मनुष्य यावत् देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है ? गौतम ! एकान्तपण्डितस्य मनुष्यस्य केवलमेव गौतम ! एकान्त पण्डित मनुष्य की केवल दो ही द्वे गती प्रज्ञायेते, तद् यथा—अन्तक्रिया चैव, गतियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे—अन्तक्रिया और कल्पोपकल्पोपपत्तिका चैव । तत् तेनार्थेन गौतम! पत्तिका (वैमानिक देवों में उपपत्ति)। गौतम ! यावद् देवायुः कृत्वा देवेषु उपपद्यते । इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है। बालपंडियस्स आउय-पदं बालपण्डितस्य आयुष्क-पदम् बालपण्डित का आयुष्य-पद ३६२. बालपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेरइ- बालपण्डितः भदन्त ! मनुष्यः किं नैरयिकायुः ३६२. भन्ते ! बालपण्डित मनुष्य क्या नरक का याउयं पकरेति ? तिरिक्खाउयं पकरेति ? प्रकरोति ? तिर्यगायुः प्रकरोति ? मनुष्यायुः आयुष्य बांधता है ? तिर्यञ्च का आयुष्य बांधता मणुस्साउयं पकरेति ? देवाउयं पकरेति ? प्रकरोति ? देवायुः प्रकरोति ? नैरयिकायुः है ? मनुष्य का आयुष्य बांधता है ? देव का नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववजति ? कृत्वा नैरयिकेषु उपपद्यते ? तिर्यगायुः कृत्वा आयुष्य बांधता है ? वह नरक का आयुष्य तिरियाउयं किचा तिरिएस उववजति ? तिर्यक्षु उपपद्यते ? मनुष्यायुः कृत्वा मनुष्येषु बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है ? तिर्यञ्च मणुस्साउयं किच्चा मणुस्सेसु उववजति ? उपपद्यते ? देवायुः कृत्वा देवेषु उपपद्यते ? का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता देवाउयं किच्चा देवेसु उववजति ? है? मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है ? देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है ? गोयमा ! बालपंडिए णं मणुस्से णो नेर- गौतम ! बालपण्डितः मनुष्यः नो नैरयिकायुः गौतम ! बालपण्डित मनुष्य न नरक का आयुष्य इयाउयं पकरेति, णो तिरिक्खाउयं पकरेति, प्रकरोति, नो तिर्यगायुः प्रकरोति, नो मनुष्या- बांधता है, न तिर्यञ्च का आयुष्य बांधता है, न णो मणुस्साउयं पकरेति, देवाउयं पकरेति, युः प्रकरोति, देवायुः प्रकरोति, नो नैरयि- मनुष्य का आयुष्य बांधता है, वह केवल देव का णो नेरइयाउयं किचा नेरइएसु उववजति, कायुः कृत्वा नैरयिकेषु उपपद्यते, नो तिर्य- आयुष्य बांधता है। वह न नरक का आयुष्य णो तिरियाउयं किचा तिरिएसु उववञ्जति, गायुः कृत्वा तिर्यक्षु उपपद्यते, नो मनुष्यायुः बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है, न तिर्यञ्च णो मणुस्साउयं किचा मणुस्सेसु उववजति, कृत्वा मनुष्येषु उपपद्यते, देवायुः कृत्वा देवेषु का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है, देवाउयं किचा देवेसु उववज्रति । उपपद्यते। न मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है, वह केवल देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है। ३६३. से केणडेणं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जति ? गोयमा ! बालपंडिए णं मणुस्से तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म देसं उवरमइ, देसं णो उवरमइ, देसं पञ्चक्खाइ, देसंणो पच्चक्खाइ। तत् केनार्थेन यावद् देवायुः कृत्वा देवेषु ३६३. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा हैउपपद्यते ? बालपण्डित मनुष्य यावत् देव का आयुष्य बांध कर देवों में उपपन्न होता है ? गौतम ! बालपण्डितः मनुष्यः तथारूपस्य गौतम ! बालपण्डित मनुष्य तथारूप श्रमण अथवा श्रमणस्य वा माहनस्य वा अन्तिके एकमपि माहन के पास एक भी आर्य धार्मिक सुवचन सुन आर्य धार्मिकं सुवचनं श्रुत्वा निशम्य देशम्। कर, अवधारण कर आंशिक रूप से उपरत होता उपरमति, देशं नो उपरमति, देशं प्रत्याख्याति, है और आंशिक रूप से उपरत नहीं होता। देशं नो प्रत्याख्याति। आंशिक रूप से प्रत्याख्यान करता है और आंशिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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