________________
भगवई
शब्द-विमर्श
भवधारणीय- भवधारण करने का प्रयोजन यानि मनुष्य आदि भवधारण करने में जो उपग्राहक है ।
३५४. से केणद्वेणं भंते एवं बुच्चइअत्येगइए उववज्जेज्जा, अत्येगइए नो उववजेजा ?
गोयमा ! से णं सण्णी पंचिंदिए सव्वाहि पत्तीहिं पजत्तए वीरियलद्धीए वेउव्वयद्धी पराणीयं आगयं सोचा निसम्म पसे निच्छुभइ, निच्छुभित्ता वेउब्वियसमुग्धाणं समोहण, समोहणित्ता चाउ - रंगिण सेणं विउब्वइ, विउब्वित्ता चाउ - रंगिणीए सेणाए पराणीएणं सद्धिं संगामं संगामेइ ।
गव्भस्स नरगगमण-पदं
३५३. जीवे णं भंते ! गन्भगए समाणे नेरइएस उववज्जेज्जा ?
गोयमा ! अत्थेगइए उवयजेज्जा, अत्येगइए गौतम ! अस्त्येककः उपपद्येत, अस्त्येककः नो उववज्जेज्जा ।। नो उपपद्येत ।
से णं जीवे अत्यकामए रज्जकामए भोगकामए कामकामए, अत्थकंखिए रज्जकंखिए भोगकखिए कामकंखिए, अत्थपिवासिए रज्जपिवासिए भोगपिवासिए कामपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वझवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए, एयंसि णं अरंसि कालं करेज नेरइएसु उववज्जइ । से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुचइ - अत्येगइए उववज्जेज्जा, अत्येगइए नो उववज्जेजा ॥
१५५
Jain Education International
अव्यापन — अविनष्ट, जो नष्ट नहीं हुआ है।
अब उपचय के अन्तिम समय के अनन्तर केवल यह अम्बापैतृक शरीर होता है । '
गर्भस्य नरकगमन-पदम्
गर्भ का नरकगमन - पद
9
जीवः भदन्त ! गर्भगतः सन् नैरयिकेषु ३५३ 'भन्ते ! क्या गर्भगत जीव नैरयिकों में उपपन्न उपपद्येत ? होता है ?
तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते— अस्त्येककः उपपद्येत, अस्त्येककः नो उपपद्येत ?
गब्भस्स देवलोगगमण-पदं
३५५. जीवे णं भंते! गभगए समाणे देव
which the sex cells arise. Atmaiosis, these 46 chromosomes form 23 pairs, one of the chromosomes of each pair being of maternal and the other of paternal origin.
गौतम ! स संज्ञी पंचेन्द्रियः सर्वाभिः पर्याप्तिभिः पर्याप्तकः वीर्यलब्धिकः वैक्रियलब्धिकः परानीकम् आगतं श्रुत्वा निशम्य प्रदेशं निक्षिपति, निक्षिप्य वैक्रियसमुद्घातेन समवहन्ति, समवहत्य चतुरङ्गिणीं सेनां विकुरुते, विकृत्य चतुरङ्गिण्या सेनया परानीकेन सार्द्धं सङ्ग्रामं सङ्ग्रामयति ।
स जीवः अर्थकामकः राज्यकामकः भोगकामकः कामकामकः, अर्थकाङ्क्षितः राज्यकाङ्क्षितः भोगकाङ्क्षितः कामकाङ्क्षितः, अर्थपिपासितः राज्यपिपासितः भोगपिपासितः कामपिपासितः, तच्चित्तः तन्मनाः तल्लेश्यः तदध्यवसितः तत्तीव्राध्यवसानः तदर्थोपयुक्तः तदर्पितकरणः तद्भावनाभावितः एतस्मिन् अन्तरे कालं कुर्यात् नैरयिकेषु उपपद्येत । तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते—– अस्त्येककः उपपद्येत, अस्त्येककः नो उपपद्येत ।
श. १: ३.७: सू.३५२-३५५
गर्भस्स देवलोगगमण-पदं
जीवः भदन्त ! गर्भगतः सन् देवलोकेषु
For Private & Personal Use Only
गौतम ! कोई उपपन्न होता है, कोई उपपन्न नहीं होता ।
३५४. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - कोई उपपन्न होता है, कोई उपपन्न नहीं होता?
गौतम ! सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, वीर्यलब्धि और वैक्रियलब्धि से सम्पन्न, संज्ञी पंचेन्द्रिय गर्भगत शिशु शत्रु सेना का आगमन सुनकर, अवधारण कर अपने आत्म-प्रदेशों का गर्भ से बाहर प्रक्षेपण करता है, उनका प्रक्षेपण कर वैक्रिय समुद्घात से समवहत होता है, समवहत होकर चतुरङ्गिणी सेना का निर्माण करता है। निर्माण कर उस चतुरङ्गिणी सेना के द्वारा शत्रु सेना के साथ युद्ध करता है।
वह जीव (गर्भगतशिशु) अर्थकामी, राज्यकामी, भोगकामी और कामकामी, अर्थकांक्षी राज्यकांक्षी, भोगकांक्षी और कामकांक्षी तथा अर्थपिपासु, राज्यपिपासु, भोगपिपासु और कामपिपासु होकर उस अर्थ आदि में ही अपने चित्त, मन, लेश्या, अध्यवसाय और तीव्र अध्यवसान का नियोजन करता है। वह उसी विषय में उपयुक्त हो जाता है। उसके लिए अपने सारे करणों (इन्द्रियों) का समर्पण कर देता है। वह उसकी भावना से भावित हो जाता है। उस अंतर (युद्धकाल) में यदि वह मरणकाल को प्राप्त होता है, तो नैरयिकों में उपपन्न होता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है— कोई उपपन्न होता है, कोई उपपन्न नहीं होता ।
गर्भ का देवलोकगमन-पद
३५५. भन्ते ! क्या गर्भगत जीव देवलोकों में उपपन्न
१. भ. वृ. १ । ३५४ - भवधारणीयं भवधारणप्रयोजनं मनुष्यादिभवोपग्राहकमित्यर्थः । 'अब्बावन्ने 'ति अविनष्टम्, 'अहे णं'ति उपचयान्तिमसमयादनन्तरमेतद् अम्वापैतृकं शरीरम् ।
www.jainelibrary.org