SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. १: उ. ७: सू. ३४०-३५२ १५४ भगवई पर निर्भर बतलाए गए हैं।' आयुर्विज्ञान के अनुसार माता द्वारा गृहीत आक्सीजन, पोषक तत्त्व 'प्लेसेंटा' (अपरा) के माध्यम से गर्भ तक पहुंचते हैं और कार्बन डाइआक्साइड, यूरिया आदि उत्सर्जनीय पदार्थ गर्भ से पुनः माता तक पहुंचाए जाते हैं। इस प्रकार गर्भ द्वारा आहार और श्वासोच्छ्वास का कार्य स्वतंत्र रूप से नहीं होता । ' माइय-पेय- अंग-पदं ३५०. कइ णं भंते! माइयंगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ माइयंगा पण्णत्ता, तं जहा — मंसे, सोणिए, मत्थुलुंगे ॥ ३५१. कइ णं भंते! पेतियंगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ पेतियंगा पण्णत्ता, तं जहा - अट्ठि, अट्ठिमिंजा, केस-मंसु-रोम - नहे ॥ ३५२. अम्मापेइए णं भंते! सरीरए केवइयं कालं संचिइ ? गोयमा ! जावइयं से कालं भवधारणिजे सरीरए अव्वावत्रे भवइ एवतियं कालं संचिट्ठइ, अहे णं समए - समए वोयसिज्ज - माणे- वोयसिज्जमाणे चरिमकालसमयंसि वोच्छिष्णे भवइ ॥ १. सुश्रुतसंहिता, शारीरस्थान, २ ।५५ मात्रिक- पैत्रिक- अंग-पदम् कति भदन्त ! मात्रङ्गानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! त्रीणि मात्रङ्गानि प्रज्ञप्तानि तद् यथा मांसं शोणितं, मस्तुलुङ्गम् । कति भदन्त ! पित्रङ्गानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! त्रीणि पित्रङ्गानि प्रज्ञप्तानि तद् यथा — अस्थि, अस्थिमज्जा, केश श्मश्रु-रोम -नखाः । Jain Education International गौतम ! यावन्तं तस्य कालं भवधारणीयः शरीरकः अव्यापन्नः भवति एतावन्तं कालं सन्तिष्ठते, अथ समये-समये व्यवकृष्यमाणःव्यवकृष्यमाणः चरमकालसमये व्यवच्छिन्नः भवति । १. सूत्र ३५०-३५२ आयुर्वेद के ग्रन्थों में मातृज और पितृज अंगों की विस्तृत जानकारी मिलती है । अष्टांगहृदय में रक्त, मांस, मज्जा और गुद को मातृज तथा शुक्र, धमनी, अस्थि एवं केश को पितृज अंग माना गया अम्बापैतृकः भदन्तः ! शरीरकः कियन्तं कालं ३५२. भन्ते ! मातृ-पैत्रिक शरीर (मातृ-अंग और सन्तिष्ठते ? पितृ - अंग) सन्तान के शरीर में कितने काल तक अवस्थित रहता है ? निःश्वासोच्छ्वास संक्षोभस्वप्नान् गर्भोऽधिगच्छति । मातुर्निश्वसितोच्छ्वाससंक्षोभस्वप्रसंभवान् ॥ भाष्य २. Encyclopaedia Britannica, Embryology, Human---Vol. VIII, p. 326– At the same time it readily passes oxygen, nutritive chemical substances (carbohydrates, nitrogenous foods and mineral salts) from maternal to fetal blood and waste products (carbon dioxide, urea etc.) from fetal to maternal blood to be carried away and disposed of through the mother's lungs and kidneys, the placenta is essentially an apposition of the fetal and maternal circulatory systems for purposes of chemical exchange. It serves the developing fetus as an organ of respiration, मात्रिक- पैत्रिक - अंग-पद ३५०. 'भन्ते! संतान में कितने मातृ-अंग प्रज्ञप्त हैं? गौतम ! तीन मातृ-अंग प्रज्ञप्त हैं, जैसे—मांस, शोणित और मस्तुलुंग (मस्तिष्कीय मज्जा ) | ३५१. भन्ते ! संतान में कितने पितृ-अंग प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! तीन पितृ-अंग प्रज्ञप्त हैं, जैसे—अस्थि, अस्थि - मज्जा, केश, श्मश्रु, रोम और नख । गौतम ! जितने काल तक उसका भवधारणीय शरीर अव्यापन्न (अविनष्ट) बना रहता है, उतने काल तक मातृ-पैत्रिक शरीर सन्तान के शरीर में अवस्थित रहता है। उपचय के अन्तिम समय के अनन्तर मातृ-पैत्रिक शरीर प्रतिक्षण हीयमान होता हुआ अंतिम क्षण में व्यवच्छिन्न हो जाता है। है । ' चरकसंहिता में इसकी विस्तृत तालिका मिलती है। आधुनिक आयुर्विज्ञान के अनुसार गर्भ को माता और पिता से २३-२३ गुणसूत्र (chromosomes ) मिलते हैं । ' For Private & Personal Use Only nutrition and excretion and serves the mother as an endocrine organ. ३. अष्टांगहृदय, शारीरस्थान, ३ । ४, ५ मृद्वत्र मातृजं रक्त-मांस-मज्ज-गुदादिकम् ।। पैतृकं तु स्थिरं शुक्र-धमन्यस्थि-कचादिकम् । ४. चरकसंहिता, शारीरस्थान, ३ । ६७ त्वक् च लोहितं च मांसं च मेदश्च नाभिश्च हृदयं च क्लोमं च यकृच्च प्लीहा च तुकौ च वस्तिश्च पुरीषाधानं चामाशयश्च पक्काशयश्चोत्तरगुदं चाधरगुदं च क्षुद्रान्त्रं च स्थूलान्त्रं च वपा च वपावहनं चेति (मातृजानि) । केश श्मश्रु-नख-लोम - दंतास्थि- सिरा-स्रायु-धमन्यः शुक्रं चेति (पितृजानि) । ५. Encyclopaedia Britannica ' Heredity', vol. XI, p. 422 A- As stated above, man has 46 chromosomes in his body cells and in the cells (oogonia and supermatogonia) from www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy