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भगवई
रेइ, तम्हा परिणामेइ ।
अवरा वि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउ - जीवफुडा तम्हा चिणाइ, तम्हा उवचिणाइ । से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ -- जीवे णं गब्भगए समाणे नो पभू मुहेणं कावलियं आहारमाहारित्तए ।
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रति, तस्मात् परिणमयति।
अपरापि च पुत्रजीवप्रतिबद्धा मातृजीवस्पृष्टा, तस्मात् चिनोति, तस्माद् उपचिनोति । तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते—जीवः गर्भगतः सन् नो प्रभुः मुखेन कावलिकम् आहारम् आहर्तुम् ।
भाष्य
१. सूत्र ३४०-३४६
शरीर का निर्माण कर्म के निमित्त से होता है अथवा भूतमात्र के संयोग से ? यह प्रश्न प्राचीन काल से चर्चित रहा। दर्शन के क्षेत्र में दोनों मतवाद प्रचलित थे। वात्स्यायन ने न्यायसूत्र के भाष्य में इन दोनों मतों की चर्चा कर कर्मनिमित्तक शरीर-सृष्टि का समर्थन किया है। उनके अनुसार पूर्वकृत कर्म के फल से नए शरीर का निर्माण होता है।' विषय के निगमन में भाष्यकार ने लिखा हैअकर्मनिमित्तक शरीर-सृष्टि और अकर्मनिमित्तक सुख-दुःख का योग ——यह मिथ्या दृष्टिकोण है। चरक में भी इन दोनों प्रतिपत्तियों का उल्लेख मिलता है। जैन दर्शन में कर्मनिमित्तक शरीरनिर्माण की प्रतिपत्ति मान्य है। गर्भ का पूरा प्रकरण इसी संदर्भ में पठनीय है। इसके समर्थन में महावीर और गौतम का एक संवाद जानना उपयोगी होगा—
गौतम ने पूछा-भन्ते ! जो प्राणी अगले जन्म में उत्पन्न होने वाला है —— क्या वह सायुष्क संक्रमण करता है या निरायुष्क ? भगवान् गौतम ! वह सायुष्क संक्रमण करता है, निरायुष्क संक्रमण नहीं करता ।
गौतम — भन्ते ! वह आयुष्य का बंध कहां करता है ? भगवान्—वह आयुष्य का बंध पूर्वभव में कर लेता है। ' गर्भ के विषय में गणधर गौतम ने छह प्रश्न पूछे। भगवान् ने उनके उत्तर दिए ।
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अष्टांगहृदय के अनुसार शुद्ध शुक्र और शुद्ध रज से तथा स्वकृत कर्मों के कारण जीव की गर्भ-रूप में उत्पत्ति होती है। जैसे
१. न्याय दर्शन, वात्स्यायन भाष्य, ३ । २ । ५६, ६० तत्र खलु विप्रतिपत्तेः संशयः -- किमयं पुरुषकर्मनिमित्तः शरीरसर्गः ? आहोस्विद् भूतमात्रादकर्मनिमित्त इति ? श्रूयते खल्वत्र विप्रतिपत्तिरिति । तत्रेदं तत्त्वम् — पूर्वकृतफलानुबन्धात् तदुत्पत्तिः । पूर्वशरीरे या प्रवृत्तिर्वाग्बुध्द्धिशरीरारम्भलक्षणा तत्पूर्वकृतं कर्मोक्तम् तस्य फलं तज्जनितौ धर्माधर्मी, तत्फलस्यानुबन्ध आत्मसमवेतस्यावस्थानम्, तेन प्रयुक्तेभ्यो भूतेभ्यस्तस्योत्पत्तिः शरीरस्य, न स्वतन्त्रेभ्य इति । २ . वही, ३।२।७२ - सेयं पापिष्ठानां मिथ्यादृष्टिरकर्मनिमित्ता शरीरसृष्टि: अकर्मनिमित्तः सुखदुःखयोग इति ।
श. १: उ.७: सू.३४०-३४६
और पुत्रजीव से स्पृष्ट होती है। (गर्भ की नाभि में नाड़ी लगी रहती है, नाड़ी में 'अपरा' लगी रहती है।) उससे गर्भगत जीव आहार करता है और उसे परिणत करता है।
'अपरा' पुत्रजीव से प्रतिबद्ध और मातृजीव से स्पृष्ट होती है, उससे गर्भगत जीव चय और उपचय करता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है—गर्भगत जीव मुख से कवल-आहार करने में सक्षम नहीं है।
अरणि को घिसने से अग्नि।'
कोई जीव पूर्व जीवन को समाप्त कर नए जन्म में प्रवेश करता है, तब वह पूर्व जीवन से किन-किन वस्तुओं को साथ लेकर जाता है, इसकी चर्चा उपनिषद् और आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी उपलब्ध है । चरक के अनुसार जीव चार तन्मात्राओं (स्पर्श तन्मात्रा, रस तन्मात्रा, रूप तन्मात्रा और गंध तन्मात्रा) को साथ लेकर नए जन्म में प्रवेश करता है।' इस सन्दर्भ में गौतम द्वारा प्रस्तुत प्रथम जिज्ञासा बहुत महत्त्वपूर्ण बन जाती है। भगवान् महावीर ने उस जिज्ञासा का सापेक्ष दृष्टि से समाधान किया है। एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रवेश करते समय जीव द्रव्येन्द्रिय की अपेक्षा से अनिन्द्रिय होता है। और भावेन्द्रिय की अपेक्षा से स-इन्द्रिय होता है । द्रव्येन्द्रिय का अर्थ है— इन्द्रिय की रचना और इन्द्रिय-ज्ञान की उपकारक शक्ति । ये दोनों स्थूल शरीर से सम्बन्ध रखती हैं; इसलिए नए जन्म में प्रवेश करते समय ये दोनों जीव के साथ नहीं रहतीं। भावेन्द्रिय का अर्थ है— इन्द्रिय-ज्ञान की शक्ति । वह उस अवस्था में भी होती है। प्रत्येक जीव नए जन्म में होने वाले इन्द्रिय-विकास की योग्यता के अनुरूप ही शरीर का निर्माण करता है।
गौतम की दूसरी जिज्ञासा है—गर्भ में प्रवेश करते समय जीव सशरीर होता है या अशरीर ? इसका समाधान भी सापेक्ष दृष्टि से किया गया है। मृत्यु का अर्थ है-स्थूल शरीर का परित्याग । गर्भ में प्रवेश का अर्थ है— नए शरीर का निर्माण । स्थूल शरीर तीन हैं - १. औदारिक—यह मनुष्य और तिर्यञ्च के होता है । २. वैक्रिय – यह देव और नारक के होता है।
३. भ. ५/५६, ६० ।
४. अष्टांगहृदय, शारीरस्थान, १19
शुद्धे शुक्रार्तवे सत्त्वः स्वकर्मक्लेशचोदितः । गर्भः सम्पद्यते युक्तिवशादग्निरिवारणौ ||
५. चरकसंहिता, शारीरस्थान, २।३१
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भूतैश्चतुर्भिः सहितः सुसूक्ष्मैर्मनोजवो देहमुपैति देहात् । कर्मात्मकत्वान्न तु तस्य दृश्यं, दिव्यं विना दर्शनमस्तिरूपम् ।।
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