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श.१ : उ.७: सू.३४४-३४६
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भगवई
३४४. जीवेणं भंते ! गभं वक्कममाणे तप्पट- मयाए किमाहारमाहारेइ ? गोयमा ! माउओयं पिउसुकं तं तदुभयसंसिटुं तप्पढमयाए आहारमाहारेइ ॥
जीवः भदन्त ! गर्भम् अवक्रामन् तत्प्रथमतया ३४४. भन्ते ! जीव गर्भ में उत्पन्न होता हुआ सबसे कम् आहारम् आहरति ?
पहले क्या आहार लेता है ? गौतम ! मातुरोजः पितुः शुक्रम् तत् तदु- गौतम ! जीव सबसे पहले माता का ओज और भयसंसृष्टं तत्प्रथमतया आहारम् आहरति ।। पिता का शुक्र-इन दोनों से मिश्रित आहार लेता
३४५. जीवे णं भंते ! गभगए समाणे किं जीवः भदन्त ! गर्भगतः सन् कम् आहारम् ३४५. भन्ते ! गर्भगत जीव क्या आहार लेता है ? आहारमाहारेइ ?
आहरति ? गोयमा ! जसे माया नाणाविहाओ रसविग- गौतम ! यत् तस्य माता नानाविधाः रस- गौतम ! गर्भगत जीव की माता जो नाना प्रकार तीओ आहारमाहारेइ, तदेकदेसेणं ओय- विकृतीः आहारम् आहरति, तदेकदेशेन की रस-विकृतियों का आहार लेती है, उसके एक माहारेइ॥
ओजः आहरति।
देश के साथ ओज का आहार लेता है।
३४६. जीवस्स णं भंते ! गन्भगयस्स समाण-
स्स अस्थि उचारे इ वा पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा?
जीवस्य भदन्त ! गर्भगतस्य सतः अस्ति ३४६. भन्ते ! क्या गर्भगत जीव के मल, मूत्र, उच्चारः इति वा, प्रस्रवणम् इति वा, वेलः श्लेष्म, सिङ्घाण (नाक का मल) वमन और पित्त इति वा, सिंघाणः इति वा, वान्तम् इति वा, होता है ? पित्तम् इति वा? नो अयमर्थः समर्थः।
यह अर्थ संगत नहीं है।
णो इणडे समडे ॥
३४७. से केणद्वेणं?
तत् केनार्थेन ? गोयमा! जीवेणंगभगए समाणे जमाहारेइ गौतम ! जीवः गर्भगतः सन् यद् आहरति तं चिणाइ, तं जहा सोइंदियत्ताए, तच् चिनोति, तद् यथा--श्रोत्रेन्द्रियतया चक्विंदियत्ताए, पाणिदियत्ताए, रसिंदिय- चक्षुरिन्द्रियतया घ्राणेन्द्रियतया रसेन्द्रियतया ताए, फासिदियत्ताए, अट्ठि-अद्विमिंज- स्पर्शेन्द्रियतया अस्थि-अस्थिमज्जा-केश-श्मश्रुकेस-मंसु-रोम-नहत्ताए। से तेणडेणं रोम-नखत्वेन। तत् तेनार्थेन गौतम ! एव- गोयमा ! एवं बुचइ-जीवस्स णं गब्भ- मुच्यते-जीवस्य गर्भगतस्य सतः नास्ति गयस्स समाणस्स णस्थि उचारे इ वा उच्चारः इति वा, प्रखवणम् इति वा, श्वेलः पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इति वा, सिंघाणः इति वा, वान्तम् इति वा, इ वा पित्ते इ वा॥
पित्तम् इति वा।
३४७. यह किस अपेक्षा से?
गौतम ! गर्भगत जीव जो आहार लेता है, उसका वह श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय, अस्थि, अस्थिमञ्जा, केश, श्मश्रु, रोम
और नख के रूप में चय करता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-गर्भगत जीव के मल, मूत्र, श्लेश्म, सिंघाण, वमन और पित्त नहीं होता।
३४८. जीवेणं भंते ! गभगए समाणे किं पभू जीवः भदन्त ! गर्भगतः सन् प्रभुः मुखेन ३४८. भन्ते ! क्या गर्भगत जीव मुख से कवलमुहेणं कावलियं आहारमाहारित्तए ? कावलिकम् आहारम् आहर्तुम् ?
-आहार करने में सक्षम है ? गोयमा ! णो इणद्वे समझे ॥ गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः ।
गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है।
३४६. से केणद्वेणं?
तत् केनार्थेन ? गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे सचओ गौतम ! जीवः गर्भगतः सन् सर्वतः आहरति, आहारेइ, सचओ परिणामेइ, सबओ सर्वतः परिणमति, सर्वतः उच्छ्वसिति, सर्वतः उस्ससइ, सबओ निस्ससइ; अभिक्खणं निःश्वसिति; अभीक्ष्णम् आहरति, अभीक्ष्णं आहारेइ, अभिक्खणं परिणामेइ, अभि- परिणमति, अभीक्ष्णम् उच्छ्वसिति, अभीक्ष्णं क्खणं उस्ससइ, अभिक्खणं निस्ससह निःश्वसिति; आहत्य आहरति, आहत्य आहच आहारेइ, आहच परिणामेइ, परिणमयति, आहत्य उच्छ्वसिति, आहत्य आहच उस्ससइ, आहच निस्ससइ । निःश्वसिति ।
३४६. यह किस अपेक्षा से ?
गौतम ! गर्भगत जीव समग्र शरीर से आहार लेता है, समग्र शरीर से परिणत करता है, समग्र शरीर से उच्छ्वास लेता है और समग्र शरीर से निःश्वास करता है; वह बार-बार आहार लेता है, बार-बार परिणत करता है, बार-बार उच्छ्वास लेता है और बार-बार निःश्वास करता है; कदाचित् आहार लेता है, कदाचित् परिणत करता है, कदाचित् उच्छ्वास लेता है और कदाचित् निःश्वास करता है। मातृजीवरसहरणी और पुत्रजीवरसहरणी-ये दो नाड़ियां होती हैं। वे मातृजीव से प्रतिबद्ध
माउजीवरसहरणी, पुत्तजीवरसहरणी, माउ- जीवपडिबद्धा पुत्तजीवफुडा–तम्हा आहा-
मातृजीवरसहरणी, पुत्रजीवरसहरणी, मातृजीवप्रतिबद्धा, पुत्रजीवस्पृष्टा-तस्माद् आह-
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