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भगवई
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श.१: उ.७: सू.३३६-३४३
१. लजा की अनुभूति। २. जुगुप्सा की अनुभूति।
३. कष्ट की अनुभूति।
वृत्तिकार ने 'परीषह' शब्द को अरति परीषह का सूचक बतलाया है।' वह किञ्चित् काल के लिए आहार को छोड़ता है। इसका तात्पर्य है कि वह लम्बे समय तक भूख को सहन नहीं कर सकता, इसलिए किञ्चित् काल के लिए ही आहार को छोड़ता है।' फिर वह आहार लेना प्रारम्भ कर देता है। प्रसंगवश सूत्रकार ने 'आहियमाण, आहत' और 'परिणम्यमान, परिणत' की चर्चा की है। वह च्यवमान अवस्था में होता है, इसलिए कुछ समय पश्चात् उसकी
आयु क्षीण हो जाती है और तिर्यञ्च या मनुष्य जिस गति में उत्पन्न होता है, उसी की आयु को भोगना प्रारम्भ कर देता है।
ठाणं में देव में उद्वेग के तीन कारण बतलाए गए हैं१. अहो ! मुझे इस प्रकार की उपार्जित, प्राप्त तथा अभिसमन्वागत
दिव्य देवर्धि, दिव्य देवधुति, दिव्य देवानुभाव को छोड़ना पड़ेगा। २. अहो ! मुझे सर्वप्रथम माता के ओज तथा पिता के शुक्र के घोल
का आहार लेना होगा। ३. अहो ! मुझे असुरभि-पंकवाले, अपवित्र, उद्वेजनीय और भयानक गर्भाशय में रहना होगा।'
गब्भ-पदं
गर्भ-पदम्
गर्भ-पद
३४०. जीवे णं भंते ! गन्भं वक्कममाणे किं
सइंदिए वक्कमइ ? अणिंदिए वक्कमइ ?
जीवः भन्दत ! गर्भम् अवक्रामन् कि सेन्द्रियः ३४०. भन्ते ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव क्या अवक्रामति ? अनिन्द्रियः अवक्रामति ? स-इन्द्रिय उत्पन्न होता है ? अथवा अनिन्द्रिय
उत्पन्न होता है ? गौतम ! स्यात् सेन्द्रियः अवक्रामति । स्याद् । गौतम ! वह स्यात् स-इन्द्रिय उत्पन्न होता है। अनिन्द्रियः अवक्रामति ।
स्यात् अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है।
गोयमा ! सिय सइंदिए वक्कमइ । सिय अणिदिए वक्कमइ ॥
३४१. से केणडेणं मंते ! एवं बुचइ-सिय तत् केनार्थेन भदन्त ! एब मुच्यते---स्यात् ३४१. भन्ते ! यह किंस अपेक्षा से कहा जा रहा है सइंदिए वक्कमइ ? सिय अणिदिए वाइ? सेन्द्रियः अवक्रामति ? स्याद् अनिन्द्रियः -वह स्यात् स-इन्द्रिय उत्पन्न होता है ? स्यात् अवक्रामति ?
अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है ? गोयमा ! दबिंदियाई पडुच्च अणिदिए वक्क- गौतम ! द्रव्येन्द्रियाणि प्रतीत्य अनिन्द्रियः गौतम ! द्रव्येन्द्रिय की अपेक्षा से वह अनिन्द्रिय मइ । भाविंदियाई पडुच्च सइंदिए वक्कमइ। अवक्रामति। भावेन्द्रियाणि प्रतीत्य सेन्द्रियः । उत्पन्न होता है। भावेन्द्रिय की अपेक्षा से स-इन्द्रिय से तेणडेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ--सिय अवक्रामति। तत् तेनार्थेन गौतम ! एव- उत्पन्न होता है, गौतम इस अपेक्षा से यह कहा सइंदिए वक्कमइ। सिय अणिदिए वक्कमइ॥ मुच्यते-स्यात् सेन्द्रियः अवक्रामति । स्याद् जा रहा है---जीव स्यात् स-इन्द्रिय उत्पन्न होता अनिन्द्रियः अवक्रामति।
है, स्यात् अनिन्द्रिय उत्पन्न होता है।
३४२. जीवे णं भंते ! गम्भं वक्कममाणे किं
ससरीरी वक्कमइ? असरीरी वक्कमइ?
गोयमा ! सिय ससरीरी वक्कमइ। सिय असरीरी वक्कमइ ॥
३४३. से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचइ-सिय
ससरीरी वक्कमइ ? सिय असरीरी वक्कमइ?
जीवः भदन्त ! गर्भम् अवक्रामन् किं सशरीरी ३४२. भन्ते ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव क्या अवक्रामति ? अशरीरी अवक्रामति ? सशरीर उत्पन्न होता है ? अथवा अशरीर उत्पन्न
होता है ? गौतम ! स्यात् सशरीरी अवक्रामति । स्याद् गौतम ! वह स्यात् सशरीर उत्पन्न होता है । स्यात् अशरीरी अवक्रामति।
अशरीर उत्पन्न होता है। तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते—स्यात् ३४३. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सशरीरी अवक्रामति ? स्याद् अशरीरी अव- -वह स्यात् सशरीर उत्पन्न हाता है? स्यात् क्रामति ।
अशरीर उत्पन्न होता है ? गौतम ! औदारिक-वैक्रिय-आहारकाणि । गौतम ! औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर प्रतीत्य अशरीरी अवक्रामति। तैजस-कर्मणी की अपेक्षा वह अशरीर उत्पन्न होता है। तैजस प्रतीत्य सशरीरी अवक्रामति । तत् तेनार्थेन और कार्मण शरीर की अपेक्षा से वह सशरीर गौतम ! एवमुच्यते-स्यात् सशरीरी अव- उत्पन्न होता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा क्रामति । स्याद् अशरीरी अवक्रामति । जा रहा है-जीव स्यात सशरीर उत्पन्न होता है,
स्यात् अशरीर उत्पन्न होता है।
गोयमा ! ओरालिय-वेउब्विय-आहारयाइं पड़च्च असरीरी वक्कमइ । तेया-कम्माई पडुच्च ससरीरी वक्कमइ । से तेणडेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-सिय ससरीरी वक्कमइ। सिय असरीरी वक्कमइ॥
१. भ,वृ.१।३३६-इह प्रक्रमात् परिषहशब्देनारतिपरीषहो ग्राह्यः । २. वही,वृ.११३३६-'अहे णं' ति अथ लजादिक्षणानन्तरमाहारयति बुभुक्षा-
वेदनीयस्य चिरं सोढुमशक्यत्वादिति । ३. ठाणं,३।३६६।
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