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श.१: उ.७: सू.३३६ १४८
भगवई आयु-पदं आयुः-पदम्
आयु-पद ३३६. देवे णं भंते ! महिडिए महजइए देवः भदन्त ! महर्द्धिकः महाद्युतिकः महाबलः ३३६. 'भन्ते ! महान् ऋद्धि और महान् धुति से महब्बले महायसे महेसक्खे महाणुभावे महायशाः महेशाख्यः महानुभावः अव्यु- सम्पत्र, महाबली, महान् यशस्वी, महान् ऐश्वर्यअविउक्कंतियं चयमाणे किंचिकालं हिरि- क्रान्तिकं च्यवमानं किञ्चित्कालं ह्रीप्रत्ययं शाली के रूप में प्रख्यात्, महान् सामर्थ्यवाला देव वत्तियं दुगंछावत्तियं परीसहवत्तियं आहारं जुगुप्साप्रत्ययं परीषहप्रत्ययम् आहारं नो अच्युत किन्तु च्यवमान अवस्था में कुछ समय नो आहारेइ। अहे णं आहारेइ आहा- आहरति । अथ आहरति आह्रियमाणः आहार नहीं लेता। उसके तीन हेतु हैं-लज्जा, रिजमाणे आहारिए, परिणामिजमाणे परि- आहृतः, परिणम्यमानः परिणामितः, प्रहीणं च जुगप्सा और परीषह। कुछ समय पश्चात् वह णामिए, पहीणे य आउए भवइ । जत्थ आयुः भवति । यत्र उपपद्यते तद् आयुष्कं आहार लेता है, तब आह्रियमाण आहृत और उववजइ तं आउयं पडिसंवेदेइ, तं जहा- प्रतिसंवेदयति, तद् यथा-तिर्यग्योनिकायुः परिणम्यमान परिणत होता है। (अंत में) उस देव तिरिक्खजोणियाउयं वा, मणुस्साउयं वा ? वा, मनुष्यायुः वा ?
का आयुष्य क्षीण हो जाता है। उसे जहां उत्पन्न होना है, उस आयुष्य का प्रतिसंवेदन प्रारम्भ हो जाता है, जैसे--तिर्यग्योनिक का आयुष्य अथवा
मनुष्य का आयुष्य ? हंता गोयमा ! देवे णं महिडिए महजुइए हन्त गौतम ! देवः महर्द्धिकः महाद्युतिकः हां, गौतम ! महान् ऋद्धि और महान् धुति से महब्बले महायसे महेसक्खे महाणुभावे महाबलः महायशाः महेशाख्यः महानुभावः सम्पन्न, महाबली, महान् यशस्वी, महान् ऐश्वर्यअविउक्कंतियं चयमाणे किंचिकालं हिरि- अव्युत्क्रान्तिकः च्यवमानः किञ्चित्कालं ह्री- शाली, महान् सामर्थ्यवाला देव अच्युत किन्तु वत्तियं दुगंछावत्तियं परीसहवत्तियं आहारं प्रत्ययं जुगुप्साप्रत्ययं परीषहप्रत्ययम् आहारं च्यवमान अवस्था में कुछ समय आहार नहीं लेता। नो आहारेइ। अहे णं आहारेइ नो आहरति। अथ आहरति आह्रियमाणः उसके तीन हेतु हैं-लजा, जुगुप्सा और परीषह । आहारिजमाणे आहारिए, परिणामिजमाणे आहृतः, परिणम्यमानः परिणामितः, प्रहीणं च । कुछ समय पश्चात् वह आहार लेता है, तब परिणामिए, पहीणे य आउए, भवइ । जत्थ आयुः भवति । यत्र उपपद्यते तद् आयुष्कं आह्रियमाण आहृत और परिणम्यमान परिणत उववजइ तं आउयं पडिसंवेदेइ, तं जहा- प्रतिसंवेदयति, तद् यथा-तिर्यग्योनिकायुः । होता है। (अन्त में) उस देव का आयुष्य क्षीण तिरिक्खजोणियाउयं वा, मणुस्साउयं वा॥ वा, मनुष्यायुः वा।
हो जाता है। उसे जहां उत्पत्र होना है, उस आयुष्य का प्रतिसंवेदन प्रारम्भ हो जाता है, जैसे -तिर्यग्योनिक का आयुष्य अथवा मनुष्य का
आयुष्य।
भाष्य १. सूत्र ३३६ प्रस्तुत सूत्र में देव के सात विशेषण निरूपित हैं
७. अव्युत्क्रान्तिक व्यवमान–'व्युत्क्रान्ति' का अर्थ है च्युति या
मरण। जो देव अच्युत-च्यवमान अवस्था में है, अभी च्युत नहीं हुआ १. महर्द्धिक विमान और परिवार आदि की सम्पन्नता से सहित।।
है, किन्तु च्यवमान अवस्था के लक्षण प्रकट हो चुके हैं, उसके लिए २. महायुतिक–महान् दीप्तिमान् ।
'अव्युत्क्रान्तिक च्यवमान' विशेषण का प्रयोग किया गया है। वृत्तिकार ३. महाबल-शारीरिक बल से सम्पन्न ।
ने 'व्युत्क्रान्ति' का अर्थ 'उत्पत्ति' और वैकल्पिक रूप में 'त्यवक्रान्ति' ४. महायश-अतिशय प्रख्याति वाला अथवा जिसकी ख्याति तीनों का अर्थ 'मरण' किया है।' यह विमर्शनीय है। लोकों में फैली हुई है।'
इसका तात्पर्य यह है कि व्यवमान अवस्था में महर्द्धिक देवों ५. महेशाख्य-जो महान् ईश्वर या स्वामी के रूप में जाना जाता का मन अपनी भावी स्थिति को देखकर ग्लानि से भर जाता हैहै। वृत्तिकार ने 'आख्या' का अर्थ अभिधान किया है। उनके अनु- मझे इस दिव्य शरीर को छोड़कर मनुष्य या तिर्यञ्च के शरीर में सार 'महेशाख्य' का अर्थ 'महेश्वर नाम वाला' होगा।'
उत्पन्न होना होगा। उस आत्म-ग्लानि से पीड़ित होकर वह कुछ समय ६. महानुभाव—'अनुभाव' का अर्थ है सामर्थ्य। जिसमें शाप और के लिए आहार छोड़ देता है। सूत्रकार ने उस मनोदशा के तीन अनुग्रह की सामर्थ्य होती है अथवा जिसमें नानारूपों के निर्माण की
कारण बतलाए हैंअचिन्त्य सामर्थ्य होती है, उसे 'महानुभाव' कहा जाता है।' १. वि.भा.गा.१०६४–तिहुयणविक्खाय जसो महाजसो ।
४. वही,१।३३६-व्युत्क्रान्तिः-उत्पत्तिस्तन्निषेधादव्युत्क्रान्तिकम् । अथवा २. भ.वृ.१।३३६ महेशो---महेश्वर इत्याख्या-अभिधानं यस्यासी महेशा- व्यवक्रान्तिः-मरणं तनिषेधादव्यवक्रान्तिकम् तद्यथा भवत्येवं च्यवमानो ख्यः।
जीवमानो, जीवन्नेव मरणकाल इत्यर्थः । ३. वही, ११३३६—'महानुभावः' विशिष्टवैक्रियादिकरणाचिन्त्यसामर्थ्यः ।
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