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श.१: उ.७ :सू.३३४-३३८
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भगवई
किं-१. अद्धेणं अद्धं उववजइ ? २.अद्रेणं सब्बं उववजह? ३. सब्वेणं अद्धं उववजइ ? ४ सब्वेणं सब्बं उववजइ ?
जहा पढमिल्लेणं अट्ठ दंडगा तहा अरेण वि अटु दंडगा भाणियब्वा, नवरं-जहिं देसेणं देसं उववजइ, तहिं अद्धेणं अद्धं उववजइ इति भाणियब्बं, एवं नाणत्तं । एते सब्बे वि सोलस दंडगा भाणियब्वा।
किं-१. अर्धेन अर्धम् उपपद्यते ? २. अर्धेन क्या-१. अर्ध' के द्वारा अर्ध में उपपन्न होता सर्वम् उपपद्यते? ३. सर्वेण अर्धम् उपपद्यते? है? २. अर्ध के द्वारा सर्व में उपपन्न होता है ? ४. सर्वेण सर्वम् उपपद्यते ?
३. सर्व के द्वारा देश में उपपन्न होता है ? ४.सर्व
के द्वारा सर्व में उपपन्न होता है ? यथा प्रथमे अष्ट दण्डकाः तथा अर्धेनापि अष्ट जैसे पूर्ववर्ती आलापक के आठ दण्डक बतलाए दण्डकाः भणितव्याः, नवरं यत्र देशेन ___गए हैं, वैसे ही अर्ध के भी आठ दण्डक वक्तव्य देशम् उपपद्यते, तत्र अर्धेन अर्धम् उपपद्यते हैं। विशेष इतना है जहां देश के द्वारा देश में इति भणितव्यम्, एवं नानात्वम् । एते सर्वेऽपि
उपपन्न होता है, वहां अर्ध के द्वारा अर्ध में उपपन्न षोडश दण्डकाः भणितव्याः।
होता है-यह वक्तव्य है, यह नानात्व है। ये सभी सोलह दण्डक वक्तव्य हैं।
भाष्य
१. अर्घ
का आधा भाग।'
देश अनेक प्रकार का होता है, जैसे-तीसरा भाग, चौथा भाग आदि-आदि। अर्ध एक ही प्रकार का होता है, जैसे-वस्तु
विग्गहगइ-पदं
विग्रहगति-पदम्
विग्रहगति-पद
३३५. जीवे णं भंते ! किं विग्गहगइसमा- जीवः भदन्त ! किं विग्रहगतिसमापन्नकः ? ३३५. 'भन्ते ! क्या जीव विग्रहगति (अन्तरालगति) वण्णए ? अविग्गहगइसमावण्णए ? अविग्रहगतिसमापन्नकः?
-समापन्न होता है ? अथवा अविग्रहगति (उत्पत्ति
स्थान को प्राप्त)-समापन होता है ? गोयमा ! सिय विग्गहगइसमावण्णए, सिय गौतम ! स्यात् विग्रहगतिसमापनकः, स्याद् । गौतम ! वह स्यात् विग्रहगति-समापन्न होता है अविग्गहगइसमावण्णए॥ अविग्रहगतिसमापन्नकाः ।
और स्यात् अविग्रहगति-समापन्न होता है।
३३६. एवं जाव वेमाणिए।
एवं यावद् वैमानिकः।
३३६. इसी प्रकार वैमानिक तक ज्ञातव्य है ।
३३७. जीवा णं भंते ! किं विग्गहगइसमा- जीवाः भदन्त ! किं विग्रहगतिसमापनकाः? ३३७. भन्ते ! क्या जीव विग्रहगति-समापन्न होते वण्णया? अविग्गहगइसमावण्णगा? अविग्रहगतिसमापनकाः?
हैं ? अथवा अविग्रहगति-समापन्न होते हैं ? गोयमा ! विम्गहगइसमावण्णगा वि, गोतम ! विग्रहगतिसमापनकाः अपि, अवि- गौतम ! जीव विग्रहगति-समापन भी होते हैं, अविग्गहगइसमावण्णगा वि।। ग्रहगतिसमापनकाः अपि।
अविग्रहगति-समापन्न भी होते हैं।
३३८. नेरइया णं भंते ! किं विग्गहगइसमा- नैरयिकाः भदन्त ! किं विग्रहगतिसमा- ३३८. भन्ते ! क्या नैरयिक विग्रहगति-समापन्न होते वण्णगा? अविग्गहगइसमावण्णगा? पत्रकाः ? अविग्रहगतिसमापनकाः ? हैं ? अथवा अविग्रहगति-समापन होते हैं ? गोयमा ! सब्बे वि ताव होज अविग्गह- गौतम ! सर्वेऽपि तावद् भवेयुः अविग्रह- गौतम ! सभी नैरयिक अविग्रहगति-समापन्न होते गइसमावण्णगा। अहवा अविग्गहगइ- गतिसमापनकाः। अथवा अविग्रहगतिसमा- हैं। अथवा वे अविग्रहगति-समापन्न होते हैं, कोई समावण्णगा, विग्गहगइसमावण्णगे य। पत्रकाः विग्रहगतिसमापनकः च। अथवा एक विग्रहगति-समापन्न होता है। अथवा कुछ अहवा अविग्गहगइसमावण्णगा य, विग्गह- अविग्रहगतिसमापन्नकः च विग्रहगतिसमा- अविग्रहगति-समापन्न होते हैं, कुछ विग्रहगतिगइसमावण्णगा य। एवं जीवएगिदिय- पन्नकः च । एवं जीव-एकेन्द्रियवर्जः त्रिक- समापन होते हैं। इस प्रकार जीव (निर्विशेषण वजो तियभंगो॥
जीव) और एकेन्द्रिय को छोड़कर सबके तीन भंग होते हैं।
१. भ.बृ.१३३४—देशस्त्रिभागादिरनेकधा, अर्द्ध त्वेकधैवेति ।
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