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श.१: उ.६: सू.२८८-३१०
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भगवई तिलोयपण्णत्ती में इनके वर्गों का भी उल्लेख मिलता है: तापमान पर हवा तरल हो जाती है तथा शून्य से २६०० कम घनोदधि का वर्ण गोमूत्र के समान है। धनवात का वर्ण मूंग के तापमान पर हवा ठोस हो जाती है। समान और तनुवात अनेक वर्ण वाला है।' तत्त्वार्थराजवार्तिक में वर्ण
प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त घनोदधि और धनवात से यदि यह तात्पर्य का निर्देश कुछ व्यत्यय के साथ मिलता है। घनोदधि का वर्ण मूंग
लिया जाए कि जब सम्पूर्ण वातवलय तरल रूप धारण कर ले, तब के समान, घनवात का वर्ण गोमूत्र के समान और तनुवात का अव्यक्त ।
उसे घनोदधि और ठोस रूप धारण कर ले तब उसे धनवात कहा वर्ण है।
जाय, तो ऐसा माना जा सकता है कि घनोदधि अवस्था में तापमान घनोदधि, घनवायु, तनुवायु : वैज्ञानिक मीमांसा
-१६० सें. ग्रे. तथा घनवात अवस्था में तापमान -२६०० सें. ग्रे. आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक पदार्थ की होता है। तरल अवस्था में हवा (liquid air) का रंग थोड़ा नीला-सा तीन अवस्थाएँ होती हैं-ठोस या घन (solid), तरल (liquid) हा जाता है तथा वह बहुताश में पानी
और वायु (gas)| जैसे-पानी सामान्य तापमान पर तरल अवस्था पृथ्वी के चारों और हवा का जो वातावरण है, उसमें भी में होता है। तापमान १००° सेंटीग्रेड होने पर वाष्प (या वायु भिन्न-भिन्न स्तर या वलय हैं। पृथ्वीतल से लगभग ५० मील (८० अवस्था) में परिणत हो जाता है, तथा तापमान ०(शून्य) डिग्री किलोमीटर) ऊपर जाने के पश्चात् जो स्तर है उसे थर्मोस्फीयर कहा सेंटीग्रेट होने पर बर्फ (या ठोस अवस्था) में परिणत हो जाता है। जाता है, जहां हवा बहुत ही पतली हो जाती है। इसकी तुलना यही स्थिति हवा की है। हवा (air) अपने आप में नाइट्रोजन, तनुवात से की जा सकती है। यह वलय लगभग ३०० मील (४५० आक्सीजन, आर्गोन आदि वायुओं का एक मिश्रण है। सामान्य कि. मी.) तक फैला हुआ है। थर्मोस्फीयर के नीचे मेसोस्फीयर है तापमान एवं दबाव की स्थिति में वह सदा वायु अवस्था में रहती जो बहुत ठंडा होता है, जहां का तापमान -६३° सें. ग्रे. तक हो है। सामान्य दबाव की स्थिति में शून्य से १६०° सेंटीग्रेड कम जाता है।'
३०८. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावद् ३०५. भन्ते ! वह ऐसा ही है, भन्ते ! वह ऐसा ही विहरति।
है-इस प्रकार मुनि रोह यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करता हुआ विहरण कर रहा है।
लाोयट्ठिति-पदं
लोकस्थिति-पदम्
लोकस्थिति-पद
३०६. भंतेति ! भगवं गोयमे समणं भगवं
महावीरं जाव एवं वयासी
भदन्त ! अयि ! भगवान् गौतमः श्रमणं ३०६. भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को भगवन्तं महावीरं यावद् एवमवादीत- 'भन्ते' इस संबोधन से संबोधित कर इस प्रकार
बोले
३१०. कतिविहा णं मंते ! लोयद्विती पण्ण-
कतिविधा भदन्त ! लोकस्थितिः प्रज्ञप्ता ?
३१०. 'भन्ते ! लोकस्थिति कितने प्रकार की प्रज्ञाप्त
त्ता?
गोयमा ! अदुविहा लोयद्विती पण्णत्ता, तं जहा-१.आगासपइट्ठिए वाए। २.वाय- पइदिए उदही। ३. उदहिपइडिया पुढवी। ४. पुढवीपइद्विया तसथावरा पाणा। ५.अजीवा जीवपइट्ठिया। ६. जीवा कम्म- पइडिया। ७. अजीवा जीवसंगहिया। .जीवा कम्मसंगहिया।
गौतम ! अष्टविधा लोकस्थितिः प्रज्ञप्ता, तद् यथा—१. आकाशप्रतिष्ठितः वातः २. वात- प्रतिष्ठितः उदधिः ३. उदधिप्रतिष्ठिता पृथिवी ४. पृथिवीप्रतिष्ठिताः त्रसस्थावराः प्राणाः ५.अजीवाः जीवप्रतिष्ठिताः ६. जीवाः कर्म- प्रतिष्ठिताः ७. अजीवाः जीवसंगृहीताः ८.जीवाः कर्मसंगृहीताः।
गौतम ! लोकस्थिति आठ प्रकार की प्रज्ञाप्त है, जैसे—१. वायु आकाश पर प्रतिष्ठित है।२. समुद्र वायु पर प्रतिष्ठित है। ३. पृथ्वी समुद्र पर प्रतिष्ठित है। ४. वस और स्थावर प्राणी पृथ्वी पर प्रतिष्ठित हैं। ५. अजीव जीव पर प्रतिष्ठित हैं। ६. जीव कर्म से प्रतिष्ठित हैं। ७. अजीव जीव के द्वारा संगृहीत हैं। ८. जीव कर्म के द्वारा संग्रहीत हैं।
त्रीण्यप्येतानि वलयान्यन्वर्थसंज्ञानि प्रत्येकं विंशतियोजनसहस्रबाहुल्यानि। १. ति.प.१।२६८
गोमुत्तमुग्गवण्णा घणोदधी तह घणाणिलो वाऊ । तणुवादो बहुवण्णो रुक्खस्स तयं व वलयतियं ।।
२. त.रा.वा.३।१,पृ.१६०--तत्र घनोदधयो मुद्गसन्निभाः, घनवाता गोमूत्र
वर्णाः, अव्यक्तवर्णास्तनुवाताः । ३.The World Book Encyclopaedia,vol.1,pp.154-157;vol.12,
p.304.
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