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________________ श. १: उ. ६ः सू. २६८-३०४ दिट्ठी दंसण-नाणे, सण- सरीरा य जोग-उवओगे । दव्व-पएसा पज्जव, अद्धा किं पुब्बिं लोयंते ॥ २ ॥ २६६. पुब्बिं भंते! लोयंते, पच्छा अतीतद्धा ? पुब्बिं अतीतद्धा, पच्छा लोयंते ? रोहा ! लोयंते य अतीतद्धा य पुबिं पेते, पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणाणुपुव्वी एसा रोहा ! ३००. पुब्बिं भंते! लोयंते, पच्छा अणागतद्धा ? पुचिं अणागतद्धा, पच्छा लोयंते ? रोहा ! लोयंते य अणागतद्धा य पुळिं पेते, पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणापुब्बी एसा रोहा ! रोहा ! लोयंते य सव्वद्धा य पुव्विं पेते, पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणापुची एसा रोहा ! ३०२. जहा लोयंतेणं संजोइया सव्वे ठाणा एते, एवं अलोयंतेणं वि संजोएतव्या सव्वे ॥ ३०३. पुल्लिं भंते ! सत्तमे ओवासंतरे, पच्छा सत्तमे तवाए ? पुब्बिं सत्तमे तणुवाए, पच्छा सत्तमे ओवासंतरे ? रोहा ! सत्तमे ओवासंतरे य सत्तमे तणुवाए य पुब्बिं पेते, पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणाणुपुबी एसा रोहा ! १३२ दृष्टिः दर्शन-ज्ञाने, संज्ञा शरीराणि च योग-उपयोगी । द्रव्य-प्रदेश- पर्यवा अद्ध्वा किं पूर्वं लोकान्तः ॥ Jain Education International पूर्वं भदन्त ! लोकान्तः पश्चाद् अतीताद्धवा ? पूर्वम् अतीतावा, पश्चाद् लोकान्तः ? रोह ! लोकान्तश्च अतीताद्द्वा च पूर्वम् अपि एतौ पश्चादपि एतौ द्वौ वा एतौ शाश्वतौ भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह ! पूर्वं भदन्त ! लोकान्तः पश्चात्, अनागता वा? पूर्वं अनागताद्धवा, पश्चाद् लोकान्तः ? रोह ! लोकान्तश्च अनागताद्ध्वा च पूर्वम् अपि एतौ पश्चादपि एतौ द्वौ वा एतौ शाश्वती भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह ! ३०१. पुब्बिं भंते! लोयंते, पच्छा सव्वद्धा ? पूर्वं भदन्त ! लोकान्तः, पश्चात् सर्वावा ? ३०१. भन्ते ! क्या पहले लोकान्त और फिर सर्वपुब्बिं सव्वद्धा, पच्छा लोयंते ? पूर्वं सर्वाद्धवा, पश्चाद् लोकान्तः ? काल बना ? क्या पहले सर्वकाल और फिर लोकान्त बना ? रोह ! लोकान्त और सर्वकाल पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है— लोकान्त और सर्वकाल में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है । रोह ! लोकान्तश्च सर्वाद्ध्वा च पूर्वम् अपि एतौ पश्चादपि एतौ द्वौ वा एती शाश्वती भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह ! यथा लोकान्तेन संयोजितानि सर्वाणि स्थानानि एतानि एवम् अलोकान्तेन अपि संयोजयितव्यानि सर्वाणि । पूर्वं भदन्त ! सप्तमम् अवकाशान्तरम्, पश्चात् सप्तमः तनुवातः ? पूर्वं सप्तमः तनुवातः, पश्चात् सप्तमम् अवकाशान्तरम् ? रोह ! सप्तमम् अवकाशान्तरञ्च सप्तमः तनुवातश्च पूर्वम् अपि एतौ पश्चादपि एतौ - द्वौ वा एतौ शाश्वती भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह ! भगवई शरीर, योग, उपयोग, द्रव्य, प्रदेश, पर्यव और काल । 'क्या पहले लोकान्त बना' - इस वाक्य में सूत्र-रचना का निर्देश है। २६६. भन्ते ! क्या पहले लोकान्त और फिर अतीतकाल बना ? क्या पहले अतीतकाल और फिर लोकान्त बना ? रोह ! लोकान्त और अतीतकाल पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है लोकान्त और अतीतकाल में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है। For Private & Personal Use Only ३०० भन्ते ! क्या पहले लोकान्त और फिर अनागतकाल बना ? क्या पहले अनागतकाल और फिर लोकान्त बना ? रोह ! लोकान्त और अनागतकाल पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है— लोकान्त और अनागतकाल में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है । ३०२. जिस प्रकार लोकान्त के साथ इन सब पदों की संयोजना की गई, उसी प्रकार अलोकान्त के साथ भी इन सबकी संयोजना करणीय है। ३०४, एवं सत्तमं ओवासंतरं सब्वेहिं समं एवं सप्तमम् अवकाशान्तरं सर्वैः समं संयो- ३०४. इस प्रकार सातवें अवकाशान्तर की तनुवात संजोएतव्वं जाव सव्वद्धाए ॥ जयितव्यं यावत् सर्वाध्वनः । से लेकर सर्वकाल तक के सब पदों के साथ संयोजना करणीय है। ३०३. भन्ते ! क्या पहले सातवां अवकाशान्तर और फिर सातवां तनुवात बना ? क्या पहले सातवां तनुवात और फिर सातवां अवकाशान्तर बना ? रोह ! सातवां अवकाशान्तर और सातवां तनुवात पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है— सातवें अव काशान्तर और सातवें तनुवात में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है। www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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