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भगवई
पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणावी एसा रोहा !
२६५. पुब्बिं भंते ! अंडए, पच्छा कुक्कुडी ? कुकडी, पच्छा अंड ?
रोहा ! से णं अंडए कओ ? भयवं ! कुक्कुडीओ । साणं कुकुडी कओ ? भंते ! अंडयाओ ।
एवमेव रोहा ! से य अंडए, साथ कुक्कुडी पुब्बिं पेते, पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणाणुपुब्बी एसा रोहा !
२६६. पुबिं भंते! लोयंते, पच्छा अलोयंते ? पुधिं अलोयंते, पच्छा लोयंते ?
रोहा ! लोयंते य अलोयंते य पुबिं पेते, पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणापुव्वी एसा रोहा !
२६७. पुब्बिं भंते! लोयंते, पच्छा सत्तमे ओवासंतरे ? पुव्विं सत्तमे ओवासंतरे, पच्छा लोयते ?
रोहा ! लोयंते य सत्तमे ओवासंतरे य पुब्बिं पेते, पच्छा पेते—दो वेते सासया भावा, अणापुबी एसा रोहा !
२६८. एवं लोयंते य सत्तमे य तणुवाए । एवं घणवाए, घणोदही, सत्तमा पुढवी । एवं लोयंते एक्केकेणं संजोएतव्ये इमेहिं ठाणेहिं, तं जहा
संगहणी गाहा
ओवास-वात- घणुदहिपुढवि-दीवाय सागरा वासा । नेरइयादि अत्थिय, समया कम्माइ लेस्साओ ||१||
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पश्चादपि एतौ दौ वा एती शाश्वती भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह !
पूर्वं भदन्त ! अण्डकः, पश्चात् कुक्कुटी ? पूर्वं कुक्कुटी पश्चाद् अण्डकः ?
रोह ! स अण्डकः कुतः ? भगवन्! कुक्कट्याः । साकुक्कुटी कुतः ?
भदन्त ! अण्डकात् । एवमेव रोह ! स च अण्डकः, सा च कुक्कुटी, पूर्वम् अपि एतौ पश्चादपि एतौ द्वौ वा एती शाश्वती भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह !
पूर्वं भदन्त ! लोकान्तः, पश्चाद् अलोकान्तः ? पूर्वम् अलोकान्तः पश्चाद् लोकान्तः ?
रोह ! लोकान्तः च अलोकान्तः च पूर्वम् अपि एतौ पश्चादपि एतौ द्वौ वा एतौ शाश्वती भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह !
पूर्वं भदन्त ! लोकान्तः पश्चात् सप्तमम् अवकाशान्तरम् ? पूर्वं सप्तमम् अवकाशान्तरं पश्चाद् लोकान्तः ?
रोह ! लोकान्तः च सप्तमम् अवकाशान्तरं च पूर्वम् अपि एते, पश्चादपि एते द्वे वा एते शाश्वती भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह !
एवं लोकान्तः च सप्तमः च तनुवातः । एवं घनवातः घनोदधिः सप्तमी पृथिवी । एवं लोकान्तः एकैकेन संयोजयितव्यः एभिः स्थानैः, तद्यथा—
संग्रहणी गाथा
अवकाश-वात- घनोदधिपृथिवी - द्वीपाश्च सागराः वर्षाणि । नैरयिकादि अस्तिकायः, समयाः कर्माणि लेश्याः ॥
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श. १: उ.६ः सू.२६४-२६८
भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है— सिद्ध और असिद्ध में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है।
२६५. भन्ते ! क्या पहले अण्डा और फिर मुर्गी पैदा हुई ? क्या पहले मुर्गी और फिर अण्डा पैदा हुआ?
रोह ! वह अण्डा कहां से पैदा हुआ ? भगवन् ! मुर्गी से ।
वह मुर्गी कहां से पैदा हुई ? !
भन्ते ! अण्डे से ।
रोह ! इसी प्रकार वही अण्डा है, वही मुर्गी है। ये पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है-अण्डे और मुर्गी में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है।
२६६. भन्ते ! क्या पहले लोकान्त और फिर अलोकान्त बना ? क्या पहले अलोकान्त और फिर लोकान्त बना ?
रोह ! लोकान्त और अलोकान्त पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है— लोकान्त और अलोकान्त में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है ।
२६७. भन्ते ! क्या पहले लोकान्त और फिर सातवां अवकाशान्तर बना? क्या पहले सातवां अवका शान्तर और फिर लोकान्त बना ? रोह ! लोकान्त और सातवां अवकाशान्तर पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है— लोकान्त और सातवें अवकाशान्तर में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है।
२६८. इस प्रकार लोकान्त के साथ सातवें तनुवात, घनवात, घनोदधि और सातवीं पृथ्वी वक्तव्य हैं। इस प्रकार लोकान्त के साथ आगे बताए जाने वाले प्रत्येक विषय की संयोजना करणीय है, जैसे—
संग्रहणी गाथा
अवकाशान्तर, वात, (तनुवात और धनवात), धनोदधि, पृथ्वी, द्वीप, समद्र, वर्ष (क्षेत्र), नैरयिक आदि (चौबीस दण्डक) अस्तिकाय, समय (काल-विभाग), कर्म, लेश्या, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा,
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