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श.१: उ.६: सू.२८८-२६४ १३०
भगवई पयणुकोहमाणमायालोमे मिउमद्दवसंपन्ने मानमायालोभः मृदुमार्दवसम्पन्नः आलीनः उपशान्त था । उसके क्रोध, मान, माया और लोभ अल्लीणे विणीए समणस्स भगवओ महा- विनीतः श्रमणस्य भगवतः महावीरस्य अदूर- प्रतनु (पतले) थे। वह मृदुमार्दवसम्पत्र, आलीन वीरस्स अदूरसामंते उटुंजाणू अहोसिरे सामन्ते ऊर्ध्वजानुः अधःशिराः ध्यानकोष्ठो- (संयतेन्द्रिय) और विनीत था। वह श्रमण भगवान् झाणकोवोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं पगतः संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् ___ महावीर के न अति दूर और न अति निकट भावेमाणे विहरइ॥ विहरति।
ऊर्ध्वजानु अधःसिर–इस मुद्रा में और ध्यानकोष्ठ में लीन होकर संयम और तप से अपने आपको भावित करता हुआ रह रहा है।
२६६. तते णं से रोहे अणगारे जायसढे जाव
पज्जवासमाणे एवं वदासी
ततः स रोहः अनगारः जातश्रद्धः यावत् २८६. उस समय अनगार रोह के मन में एक श्रद्धा पर्युपासीनः एवमवादीत्
उत्पन्न हुई यावत् भगवान् महावीर की पर्युपासना करता हुआ वह इस प्रकार बोला
२६०. पुदि भंते ! लोए, पच्छा अलोए ? पूर्वं भदन्त ! लोकः, पश्चाद् अलोकः ? पूर्वम् २६०. भन्ते ! क्या पहले लोक और फिर अलोक पुब्बिं अलोए, पच्छा लोए? अलोकः, पश्चाद् लोकः ?
बना? क्या पहले अलोक और फिर लोक बना? रोहा ! लोए य अलोए य पुट्विं पेते, पच्छा रोह ! लोकः च अलोकः च पूर्वम् अपि एतौ, रोह! लोक और अलोक पहले भी थे और आगे भी पेते-दो वेते सासया भावा, अणाणुपुब्बी पश्चाद् अपि एतौ-द्वौ वा एतौ शाश्वती होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह एसा रोहा! भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह !
अनानुपूर्वी है-लोक और अलोक में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है।
२६१. पुदि भंते ! जीवा, पच्छा अजीवा ? पुचिं अजीवा, पच्छा जीवा ? रोहा ! जीवा य अजीवा य पुब्बिं पेते, पच्छा पेते-दो वेते सासया भावा, अणाणुपुब्बी एसा रोहा !
पूर्वं भदन्त ! जीवाः, पश्चाद् अजीवाः ? २६१. भन्ते ! क्या पहले जीव और फिर अजीव पूर्वम् अजीवाः, पश्चाद् जीवाः ? बने ? क्या पहले अजीव और फिर जीव बने ? रोह ! जीवाः च अजीवाः च पूर्वम् अपि एतौ, रोह ! जीव और अजीव पहले भी थे और आगे पश्चादपि एती-द्वौ वा एतौ शाश्वती भावौ, भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी एषा रोह !
अनानुपूर्वी है—जीव और अजीव में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है।
२६२. पब्बिं भंते ! भवसिद्धिया, पच्छा अभ- पूर्वं भदन्त ! भवसिद्धिकाः, पश्चाद् अभव- २६२. भन्ते ! क्या पहले भवसिद्धिक और फिर वसिद्धिया ? पुब्बिं अभवसिद्धिया, पच्छा सिद्धिकाः ? पूर्वम् अभवसिद्धिकाः, पश्चाद् अभवसिद्धिक बने ? क्या पहले अभवसिद्धिक भवसिद्धिया ? भवसिद्धिकाः?
और फिर भवसिद्धिक बने ? रोहा ! भवसिद्धिया य अभवसिद्धिया य । रोह ! भवसिद्धिकाः च अभवसिद्धिकाः च रोह ! भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक पहले भी पुब्बिं पेते, पच्छा पेते-दो वेते सासया पूर्वम् अपि एतौ, पश्चादपि एतौ द्वौ वा थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव भावा, अणाणुपुब्बी एसा रोहा ! एतौ शाश्वतौ भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह ! हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है—भवसिद्धिक और
अभवसिद्धिक में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है।
२६३. पुब्बिं भंते ! सिद्धि, पच्छा असिद्धि?
पुबिं असिद्धि, पच्छा सिद्धि ?
पूर्वं भदन्त ! सिद्धिः, पश्चाद् असिद्धि: ? २६३. भन्ते ! क्या पहले सिद्धि और फिर असिद्धि पूर्वम् असिद्धिः, पश्चाद् सिद्धिः ? बनी ? क्या पहले असिद्धि और फिर सिद्धि
बनी?
रोहा ! सिद्धि य असिद्धि य पुब्बिं पेते, पच्छा पेते-दो वेते सासया भावा, अणा- णुपुब्बी एसा रोहा !
रोह ! सिद्धिःच असिद्धिः च पूर्वम् अपि एते, पश्चादपि एते-द्वे वा एते शाश्वतौ भावी, अनानुपूर्वी एषा रोह !
रोह ! सिद्धि और असिद्धि पहले भी थी और आगे भी होगी। ये दोनों शाश्वत भाव है। रोह! यह अनानुपूर्वी है--सिद्धि और असिद्धि में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है।
२६४. पुदि भंते ! सिद्धा, पच्छा असिद्धा? पूर्वं भदन्त ! सिद्धाः, पश्चाद् असिद्धाः ? २६४. भन्ते ! क्या पहले सिद्ध और फिर असिद्ध पुब्बिं असिद्धा, पच्छा सिद्धा? पूर्वम् असिद्धाः, पश्चाद् सिद्धाः ?
बने ? क्या पहले असिद्ध और फिर सिद्ध बने? रोहा ! सिद्धा य असिद्धा य पुब्बिं पेते, रोह ! सिद्धाः च असिद्धाः च पूर्वम् अपि एतौ, रोह ! सिद्ध और असिद्ध पहले भी थे और आगे
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