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श.१ : उ.६: सू.२६०-२६७
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भगवई
२६०. तं भंते ! किं अणंतरोगाढं ओभासेइ? परंपरोगाढं ओभासेइ ?
गोयमा ! अणंतरोगाढं ओभासेइ, नो परंपरोगाढं।
तद् भदन्त ! किम् अनन्तरावगाढम् अव- २६०. भन्ते ! क्या सूर्य अनन्तरावगाढ क्षेत्र को भासयति ? परम्परावगाढम् अवभासयति ? अवभासित करता है ? अथवा परम्परावगाढ क्षेत्र
को अवभासित करता है ? गौतम ! अनन्तरावगाढम् अवभासयति, नो गौतम ! वह अनन्तरावगाढ क्षेत्र को अवभासित परम्परावगाढम् अवभासयति।
करता है, परम्परावगाढ क्षेत्र को अवभासित नहीं करता।
२६१.तं भंते ! किं अणुं ओभासेइ ? बायरं
ओभासेइ ?
तद् भदन्त ! किम् अणुम् अवभासयति ? २६१. भन्ते ! क्या सूर्य अणु (सूक्ष्म) क्षेत्र को बादरम् अवभासयति ?
अवभासित करता है ? अथवा बादर (स्थूल)
क्षेत्र को अवभासित करता है ? गौतम ! अणुमपि अवभासयति, बादरमपि गौतम ! सूर्य अणु क्षेत्र को भी अवभासित करता अवभासयति।
है और बादर क्षेत्र को भी अवभासित करता है।
गोयमा ! अणुं पि ओभासेइ, बायरं पि ओभासेइ॥
२६२.तं भंते ! किं उर्ल्ड ओभासेइ ? तिरियं
ओभासेइ ? अहे ओमासेइ ? ।
तद् भदन्त ! किं ऊर्ध्वम् अवभासयति ? २६२. भन्ते ! क्या सूर्य ऊर्ध्व क्षेत्र को अवभासित तिर्यग् अवभासयति ? अधः अवभासयति? करता है ? तिरछे क्षेत्र को अवभासित करता
है? अथवा अधः क्षेत्र को अवभासित करता है? गौतम ! ऊर्ध्वमपि अवभासयति, तिर्यगपि । गौतम ! वह ऊर्ध्व क्षेत्र को भी अवभासित करता अवभासयति, अधोऽपि अवभासयति । है, तिरछे क्षेत्र को भी अवभासित करता है और
अधः क्षेत्र को भी अवभासित करता है।
गोयमा ! उर्ल्ड पि ओभासेइ, तिरियं पि ओमासेइ, अहे पि ओमासेइ ॥
२६३. तं भंते ! किं आई ओभासेइ ? मज्झे
ओभासेइ ? अंते ओभासेइ ?
तद् भदन्त ! किम् आदिम् अवभासयति ? २६३. भन्ते ! क्या सूर्य क्षेत्र के आदि भाग को मध्यम् अवभासयति ?अन्तम् अवभासयति? अवभासित करता है ? मध्य भाग को अवभासित
करता है ? अथवा अन्त भाग को अवभासित
करता है? गौतम ! आदिमपि अवभासयति, मध्यमपि गौतम ! वह क्षेत्र के आदि भाग को भी अवभासित अवभासयति, अन्तमपि अवभासयति । करता है, मध्य भाग को भी अवभासित करता
है और अन्त भाग को भी अवभासित करता है।
गोयमा ! आई पि ओभासेइ, मझे पि ओभासेइ, अंते पि ओभासेइ ।
२६४. तं भंते ! किं सविसए ओभासेइ ?
अविसए ओभासेइ ?
तद् भदन्त ! किं स्वविषयम् अवभासयति ? २६४. भन्ते ! क्या सूर्य अपने विषय को अवभासित अविषयम् अवभासयति ?
करता है अथवा अविषय को अवभासित करता
गोयमा ! सविसए ओभासेइ, नो अविसए॥ गौतम ! स्वविषयम् अवभासयति, नो अवि-
षयम्।
गौतम ! वह अपने विषय को अवभासित करता है. अविषय को अवभासित नहीं करता।
२६५. तं भंते ! किं आणुपुत्विं ओभासेइ ? । तद् भदन्त ! किं आनुपूर्वीम् अवभासयति ? २६५. भन्ते ! क्या सूर्य अपने विषय को क्रम से अणाणुपुत्विं ओभासेइ ? अनानुपूर्वीम् अवभासयति ?
अवभासित करता है ? अथवा अक्रम से अव
भासित करता है ? गोयमा ! आणुपुब्बिं ओभासेइ, नो गौतम ! आनुपूर्वीम् अवभासयति, नो अना- गौतम ! वह अपने विषय को क्रम से अवभासित अणाणूपुबिं॥ नुपूर्वीम् अवभासयति।
करता है, अक्रम से अवभासित नहीं करता।
२६६. तं भंते ! कइदिसि ओभासेइ ?
तद् भदन्त ! कति दिशः अवभासयति ?
२६६. भन्ते ! सूर्य कितनी दिशाओं को अवभासित करता है ? गौतम ! वह नियमतः छहों दिशाओं को अवभासित करता है।
गोयमा ! नियमा छहिसिं ओभासेइ ॥
गौतम ! नियमात् षड्दिशः अवभासयति।
२६७. एवं-उज्जोवेइ तवेइ पभासेइ ।।
एवम्-उद्द्योतयति, तापयति, प्रभासयति। २६७. उयोतित, तप्त और प्रभासित इन
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