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________________ भगवई ११३ श.१: उ.५: सू.२२२-२२४ २२२. इमीसे णं मंते ! स्यणप्पभाए जाव वेउब्बियसरीरे वट्टमाणा नेरइया कि कोहो- वउत्ता? सत्तावीसं भंगा ॥ अस्यां भदन्त ! रत्नप्रभायां यावत् वैक्रियशरीरे २२२. भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी यावत् वैक्रिय वर्तमानाः नैरयिकाः किं क्रोधोपयुक्ताः ? सप्त- शरीर में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते विंशतिः भङ्गाः। हैं ? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २२३. एएणं गमेणं तिण्णि सरीरया भाणि- यव्वा॥ अनेन गमेन त्रीणि शरीरकाणि भणितव्यानि। २२३. इसी गमक (सदृश पाठ-पद्धति) के अनुसार तीनों (वैक्रिय, तैजस और कार्मण) शरीर वक्तव्य भाष्य १. सूत्र २२२,२२३ वृत्तिकार ने एक प्रश्न उपस्थित किया है-विग्रह गति में केवल तैजस और कार्मण शरीर होते हैं और वे दोनों अल्पकालिक हैं, इसलिए अस्सी भंग होने चाहिए। फिर उन दोनों के लिए सत्ताईस भंगों का निर्देश क्यों ? इसके समाधान में वृत्तिकार ने लिखा है"यहां केवल तैजस और कार्मण के भंग विवक्षित नहीं हैं। यहां वैक्रिय के सहवर्ती तैजस और कार्मण के सत्ताईस भंग निर्दिष्ट हैं।" २२४. इमीसे णं भंते ! स्यणप्पभाए जाव अस्यां भदन्त ! रत्नप्रभायां यावत् नैरयिकाणां २२४. 'भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी यावत् नैरयिकों नेरइयाणं सरीरया किंसंघयणा पण्णत्ता? शरीरकाणि किंसंहननानि प्रज्ञप्तानि ? के शरीर किस संहनन (अस्थि-संरचना) वाले प्रज्ञप्त हैं ? गोयमा ! छहं संघयणाणं असंघयणी गौतम ! षण्णां संहननानाम् असंहननाः । गौतम ! छह संहननों में से उनके कोई संहनन नेवडी, नेव छिरा, नेव पारूणि। जे नैवास्थीनि, नैव शिराः, नैव स्नायवः । ये पुद्- नहीं होता। उनके शरीर में न अस्थियां हैं, न पोग्गला अणिवा अकंता अप्पिया असुहा गलाः अनिष्टाः अकान्ताः अप्रियाः अशुभाः शिराएं हैं और न स्नायु हैं। जो पुद्गल अनिष्ट, अमणुण्णा अमणामा एतेसिं सरीर- अमनोज्ञाः ‘अमणामा' एतेषां शरीरसंघाततया अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनोरम संघायत्ताए परिणमंति॥ परिणमन्ति। होते हैं, वे इनके शरीर-संघात रूप में परिणत होते हैं। भाष्य १. सूत्र २२४ शरीर जीव एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय संहनन का अर्थ है—अस्थि-संरचना। यह अर्थ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में सम्मत है, किन्तु यह विमर्शनीय है। एकेन्द्रिय जीवों के अस्थि-रचना नहीं होती, फिर भी श्वेताम्बर परम्परा में उनके 'शेवात' तथा दिगम्बर परम्परा में 'असंप्राप्त सृपाटिका संहनन' माना गया है। इस आधार पर संहनन की व्याख्या अस्थि-रचना से हटकर करने की अपेक्षा है। एकेन्द्रिय के सन्दर्भ को ध्यान में रखकर इसकी व्याख्या यह की जा सकती है-औदारिक शरीर-वर्गणा के पुद्गलों से होने वाली शरीर-संरचना का नाम है संहनन । ठाणं में औदारिक शरीर-रचना के अनेक प्रकार बतलाए औदारिक अस्थि, मांस, शोणितबद्ध औदारिक शरीर। अस्थि, मांस, शोणित, स्नायु और शिराबद्ध औदारिक शरीर।' पंचेन्द्रिय संहनन के छह प्रकार हैं-१. वज्रऋषभनाराच २. ऋषभनाराच ३. नाराच ४. अर्धनाराच ५. कीलिका ६. शेवात। वैक्रिय शरीर में अस्थि, शिरा और स्नायु नहीं होते, इसलिए उसे संहनन-शून्य कहा गया है। समवाओ में भी इसका संवादी पाठ प्राप्त होता है।' १. भ.वृ.११२२३–ननु विग्रहगती केवले ये तैजसकार्मणशरीरे स्यातां तयोरल्पत्वेनाशीतिरपि भङ्गकानां संभवतीति कथमुच्यते तयोः सप्तविंशतिरेवेति। अत्रोच्यते सत्यमेतत्, केवलं वैक्रियशरीरानुगतयोस्तयोरिहाश्रयणं केवलयो- श्चानाश्रयणमिति सप्तविंशतिरेवेति। २. (क) भ.बृ.११२२४ –अस्थिसञ्चयरूपं च संहननमुच्यते । (ख) ष.ख.धवला,पु.६,खं.१,भा.६-१,सू.३६,पृ.७३-संहननमस्थि संचयः। ३. सम.प.सू.१९०। ४. द्रष्टव्य,जै.सि.को.भा.४,पृ.१५६ । ५. ठाणं, २११५५-१६०। ६. वही, ६।३०। ७. सम.प.सू. १८७-१८६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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