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भगवई
१. सूत्र २१२-२१५
प्रस्तुत आलापक में आवासों की संख्या का निरूपण है । आवास एक प्रकार की वसति या नगर है। इन आवासों के पीछे कुछ विशेषण भी लगते हैं। व्यन्तर देवों के आवास 'नगरावास' भवनपति देवों के आवास 'भवनावास', ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के आवास 'विमानावास' कहलाते हैं। तिलोयपण्णत्ती में नरक के आवासों को 'बिल' कहा गया है।' वृत्तिकार ने रहने योग्य स्थान
भवनपतिदेव
१. असुरकुमार
२. नागकुमार
३. सुपर्णकुमार
४. वायुकुमार
५. द्वीपकुमार
६. दिशाकुमार
७. उदधिकुमार
८. विद्युत्कुमार
६. स्तनितकुमार
१०. अग्रिकुमार
२१६. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयस हस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ठितिट्ठाणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा जहण्णिया ठिती, समयाहिया जहण्णिया ठिती, दुसमयाहिया जहणिया ठिती जाव असंखेजसमयाहिया जहण्णिया ठिती । तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती ॥
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संयुक्त
१०७
६४ लाख
८४ लाख
७२ लाख
६६ लाख
७६ लाख
७६ लाख
७६ लाख
७६ लाख
७६ लाख
७६ लाख
भाष्य
को आवास बतलाया है।'
२. युगलों
१. स्थिति - स्थान
स्थिति-स्थान का अर्थ है - आयुष्य का विभाग । प्रत्येक नरकावास में असंख्येय स्थिति-स्थान बतलाए गए हैं। प्रथम पृथ्वी
१. ति.प.२ । २८,३६ ।
२. भ. वृ. १ । २१२ - आवसन्ति येषु ते आवासाः नरकाश्च ते आवासाश्चेति नरकावासाः ।
३. वही, २१ । २१३ - दक्षिणोत्तर - दिग्भेदेनासुरादिनिकायो द्विभेदो भवतीति
भवनपति देवों के आवास उत्तर और दक्षिण दोनों दिशाओं में विभक्त हैं। 'युगल' शब्द उन दोनों के लिए प्रयुक्त हुआ है। सभी भवनपति देवों के आवासों की संयुक्त और पृथक्-पृथक् संख्या इस प्रकार है
दक्षिण
अस्यां भदन्त ! रत्नप्रभायां पृथिव्यां त्रिंशत्षु निरयावासशतसहस्रेषु एकैकस्मिन् निरयावासे नैरयिकाणां कियन्ति स्थितिस्थानानि प्रज्ञतानि ?
गौतम ! असंख्येयानि स्थितिस्थानानि प्रज्ञप्तानि तद् यथा— जघन्यिका स्थितिः, समयाधिका जघन्यिका स्थितिः, द्विसमयाधिका जघन्यिका स्थितिः यावत् असंख्येयसमयाधिका जघन्यिका स्थितिः । तत्प्रायोग्योत्कर्षका स्थितिः ।
भाष्य
३४ लाख
४४ लाख
३८ लाख
५० लाख
४० लाख
४० लाख
४० लाख
४० लाख
४० लाख
४० लाख
३. पृथ्वियों में
यहां 'पुढवी' शब्द विभक्ति-रहित है। यह सप्तमी विभक्ति के बहुवचन के अर्थ में प्रयुक्त है। इसका तात्पर्यार्थ है— पृथ्वी आदि जीवावासों में । "
श.१: उ.५ः सू.२१२-२१६
उत्तर
३० लाख
४० लाख
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३४ लाख
४६ लाख
३६ लाख
३६ लाख
३६ लाख
३६ लाख
३६ लाख
३६ लाख
२१६. भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में रहने वाले 'नैरयिकों के कितने स्थिति-स्थान' ( आयु-विभाग) प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! उनके स्थिति-स्थान असंख्येय प्रज्ञप्त हैं, जैसे—जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्य स्थिति, दो समय अधिक जघन्य स्थिति यावत् असंख्येय समय अधिक जघन्य स्थिति । विवक्षित नरकावास के प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिति ।
की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है। 'दस हजार वर्ष की स्थिति' – यह प्रथम स्थिति-स्थान है।
युगलान्युक्तानि ।
४. वही, १ । २१५ -- तत्र पुढवीति लुप्तविभक्तिकत्वान् निर्देशस्य पृथिवीषु, उपलक्षणत्वाच्चास्य पृथिव्यादिषु जीवावासेष्विति द्रष्टव्यमिति !
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