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________________ १०६ भगवई श.१: उ.५: सू.२१३-२१५ दीव-दिसा-उदहीण विज्ञकमारिंद-थणियमग्गीणं। छण्हं पि जुयलयाणं, छावत्तरिमो सयसहस्सा ॥२॥ द्वीप-दिशा-उदधीनाम्, विद्युत्कुमारेन्द्र-स्तनितानीनाम् । षण्णामपि युगलकानाम्, षट्सप्ततिः शतसहस्राणि॥ द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार--इन छहों युगलों के छिहत्तर लाख आवास हैं। २१४. केवइया णं मंते ! पुढविक्काइया- कियन्ति भदन्त ! पृथिवीकायिकावासशत- २१४. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने लाख वाससयसहस्सा पण्णत्ता ? सहस्राणि प्रज्ञप्तानि? आवास प्रज्ञप्त हैं ? गोयमा ! असंखेजा पुटविक्काइयावाससय- गौतम ! असंख्येयानि पृथिवीकायिकावास- गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्येय लाख सहस्सा पण्णत्ता जाव असंखिजा जोइसिय- शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि यावद् असंख्येयानि आवास प्रज्ञप्त हैं यावत् ज्योतिष्क देवों के विमाणा वाससयसहस्सा पण्णत्ता। ज्योतिषिकविमानावासशतसहस्राणि प्रज्ञ- असंख्येय लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं। प्तानि। २१५. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे कति विमा- सौधर्मे भदन्त ! कल्पे कति विमाना- २१५. भन्ते ! सौधर्म कल्प में कितने लाख विमानाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता? वासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? वास प्रज्ञाप्त हैं ? गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा गौतम ! द्वात्रिंशद् विमानावासशतसहस्राणि गौतम ! उसमें बत्तीस लाख विमानावास प्रज्ञप्त पण्णत्ता॥ प्रज्ञप्तानि। संगहणी गाहा संग्रहणी गाया संग्रहणी गाथा एकबत्तीसट्ठावीसा, बारस-अट्ठ-चउरो सयसहस्सा। पन्ना-चत्तालीसा, छच सहस्सा सहस्सारे ॥१॥ एवम्द्वात्रिंशदष्टविंशतिः, द्वादश-अष्ट-चतुः शतसहस्राणि। पञ्चाशत् चत्वारिंशत्, षट् च सहस्राणि सहवारे ॥ इस प्रकारसौधर्म में बत्तीस लाख, ईशान में अट्ठाईस लाख, सनत्कुमार में बारह लाख, माहेन्द्र में आठ लाख, ब्रह्म में चार लाख, लान्तक में पचास हजार, शुक्र में चालीस हजार, सहस्रार में छह हजार विमान आणय-पाणयकप्पे, चत्तारि सयारणचुए तिण्णि। सत्त विमाणसयाई, चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥२॥ आनत-प्राणत कल्पे, चत्वारि शतानि आरणाच्युते त्रीणि। सप्त विमानशतानि, चतुर्वपि एतेषु कल्पेषु ॥ आनत और प्राणत कल्प में चार सौ तथा आरण और अच्युत कल्प में तीन सौ विमान हैं। इन चार कल्पों में सात सौ विमान हैं। एकारसुत्तरं हेट्ठिमए, सत्तुत्तरं सयं च मज्झमए। सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा॥३॥ एकादशोत्तरं अधस्तने सप्तोत्तरं शतं च मध्यमके। शतमेकं उपरितने, पञ्चैव अनुत्तरविमानानि॥ अधस्तन ग्रैवेयक-त्रिक में एक सौ ग्यारह विमान हैं, मध्यम ग्रेवेयक-त्रिक में एक सौ सात विमान हैं और ऊपर के ग्रैवेयक-त्रिक में सौ विमान हैं। अनुत्तर विमान पांच ही हैं। नेरइयाणं नाणादसासु कोहोवउत्तादि-भंग-पदं नैरयिकाणां नानादशासु क्रोधोपयुक्तादि- नैरपिकों का नानादशाओं में क्रोधोपयुक्त -आदि-भंग-पद -भंग-पदम् पुढवी द्विति-ओगाहणसरीर-संघयणमेव संठाणे। लेस्सा दिट्ठी णाणे, जोगुवओगे य दस ठाणा ॥४॥ पृथिवीषु स्थिति-अवगाहनाशरीर-संहननमेव संस्थानम् । लेश्या दृष्टिः ज्ञानम्, योगोपयोगी च दश स्थानानि ॥ रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों में स्थिति-स्थान, अव गाहन, शरीर, संहनन, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग और उपयोग–ये दश स्थान इस उद्देशक में वर्णित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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