SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुढवि-पदं पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद पृथिवी-पदम् पृथ्वी-पद २११. कति णं भंते ! पुढवीओ पण्ण- कति भदन्त ! पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः ? २११. भन्ते ! पृथ्वियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ? त्ताओ? गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तं गौतम ! सप्त पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा- गौतम ! पृथ्वियां सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रलप्रभा, जहा–रयणप्पभा, सकरप्पभा, बालुय- रलप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्क- शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, प्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पमा, तमप्पभा, प्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमाः। तमःप्रभा, तमस्तमाः। तमतमा॥ भाष्य १. पृथ्वियां क्षेत्र की दृष्टि से लोक तीन भागों में विभक्त है-ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक । अधोलोक में सात पृथ्वियां बतलाई गई हैं। २१२. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुटवीए अस्यां भदन्त ! रलप्रभायां पृथिव्यां कति २१२. 'भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कितने लाख कति निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता? निरयावासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? नरकावास प्रज्ञप्त हैं ? गोयमा ! तीसं निरयावाससयसहस्सा गौतम ! त्रिंशन् निरयावासशतसहस्राणि गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावास पण्णत्ता । प्रज्ञप्तानि । प्रज्ञप्त हैं। संगहणी गाहा संग्रहणी गाथा संग्रहणी गाथा तीसा य पत्रवीसा, पत्ररस दसेव या सयसहस्सा। तिनेगं पंचूर्ण, पंचेच अणुत्तरा निरया ॥१॥ त्रिंशच् च पञ्चविंशतिः, पञ्चदश दश एव च शतसहस्राणि । त्रीण्येकं पञ्चोनं, पञ्चैव अनुत्तराः निरयाः॥ सातों पृथ्वियों के नरकावास क्रमशः इस प्रकार हैं-१. तीस लाख २. पच्चीस लाख ३. पंद्रह लाख ४. दस लाख ५. तीन लाख ६. निनानवें हजार नौ सौ पिचानवे ७. पांच अनुत्तर नरकावास। आवास-पदं आवास-पदम् आवास-पद २१३. केवइया णं भंते ! असुरकुमारा- वाससयसहस्सा पण्णता ? गोयमा ! चोयट्ठी असुरकुमारावाससय- सहस्सा पण्णत्ता। कियन्ति भदन्त ! असुरकुमारावास शत- २१३. भन्ते ! असुरकुमारों के कितने लाख आवास सहस्राणि प्रज्ञप्तानि ? प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! चतुःषष्टिः असुरकुमारावास शत- गौतम ! असुरकुमारों के चौसठ लाख आवास सहस्राणि प्रज्ञप्तानि। प्रज्ञाप्त हैं। संगहणी गाहा संग्रहणी गाथा संग्रहणी गाथा एवंचोयही असुराणं, चउरासीई य होइ नागाणं। बावत्तरि सुवण्णाणं, वाउकुमाराण छनउई ॥१॥ एवंचतुःषष्टिः असुराणां, चतुरशीतिः च भवति नागानाम् । द्विसप्ततिः सुपर्णानां, वायुकुमाराणां षण्णवतिः ॥ इस प्रकार---- असुरकुमारों के चौसठ लाख, नागकुमारों के चौरासी लाख, सुपर्णकुमारों के बहत्तर लाख, वायुकुमारों के छियानवें लाख। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy