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________________ श.१: उ.४: सू.१६१-१६६ १०० भगवई १६३. एस णं भंते ! पोग्गले अणागयं अणंतं सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा ! एस णं पोग्गले अणागयं अणंतं सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया॥ एष भदन्त ! पुद्गलः अनागतम् अनन्तं १६३. भन्ते ! यह परमाणु अनन्त अनागत काल में शाश्वतं समयं भविष्यतीति वक्तव्यं स्यात् ? शाश्वत रहेगा, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हन्त गौतम ! एष पुद्गलः अनागतम् अनन्तं हां, गौतम ! यह परमाणु अनन्त अनागत काल में शाश्वतं समयं भविष्यतीति वक्तव्यं स्यात्। शाश्वत रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है। १६४. एस णं भंते ! खंघे तीतं अणंतं सासयं समयं भुवीति वत्त सिया ? हंता गोयमा ! एस णं खंघे तीतं अणंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्बं सिया ॥ एष भदन्त ! स्कन्धः अतीतम् अनन्तं शाश्वतं १६४. भन्ते ! यह स्कन्ध अनन्त अतीतकाल में शाश्वत था, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हन्त गौतम ! एष स्कन्धः अतीतम् अनन्तं हां, गौतम ! यह स्कन्ध अनन्त अतीत काल में शाश्वतं समयम् अभूद् इति वक्तव्यं स्यात्। शाश्चत था, ऐसा कहा जा सकता है। १६५. एस णं भते ! खंघे पडुप्पण्णं सासर्य एष भदन्त ! स्कन्धः प्रत्युत्पत्रं शाश्वतं समयं १६५. भन्ते ! यह स्कन्ध वर्तमान काल में शाश्वत समयं भवतीति वत्तव्बं सिया ? भवतीति वक्तव्यं स्यात् ? रहता है, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हंता गोयमा ! एस णं खंघे पडुप्पण्णं सासयं । हन्त गौतम ! एष स्कन्धः प्रत्युत्पन्न शाश्वतं हां, गौतम ! यह स्कन्ध वर्तमान काल में शाश्वत समयं भवतीति वत्तव्बं सिया॥ समयं भवतीति वक्तव्यं स्यात् । रहता है, ऐसा कहा जा सकता है। १६६. एस णं भंते ! खंघे अणागयं अणंतं एष भदन्त ! स्कन्धः अनागतम् अनन्तं १६६. भन्ते ! यह स्कन्ध अनन्त अनागत काल में सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया ? शाश्वतं समयं भविष्यतीति वक्तव्यं स्यात् ? शाश्वत रहेगा, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हंता गोयमा ! एस णं खंधे अणागयं अणंतं हन्त गौतम ! एष स्कन्धः अनागतम् अनन्तं हां, गौतम ! यह स्कन्ध अनन्त अनागत काल में सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया || शाश्वतं समयं भविष्यतीति वक्तव्यं स्यात्। शाश्वत रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है। १६७. एस णं भंते ! जीवे तीतं अणंतं सासयं समयं भुवीति वत्तवं सिया ? हंता गोयमा ! एस णं जीवे तीतं अणंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया॥ एष भदन्त ! जीवः अतीतम् अनन्तं शाश्वतं १६७. भन्ते ! यह जीव अनन्त अतीतकाल में समयम् अभूद् इति वक्तव्यं स्यात् ? शाश्वत था, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हन्त गौतम ! एष जीवः अतीतम् अनन्तं हां, गौतम ! यह जीव अनन्त अतीत काल में शाश्वतं समयम् अभूद् इति वक्तव्यं स्यात्। शाश्वत था, ऐसा कहा जा सकता है। १६८. एस णं मंते ! जीवे पडुप्पण्णं सासयं समयं भवतीति क्त्तवं सिया ? हंता गोयमा ! एस णं जीवे पुडुप्पण्णं सासयं समयं भवतीति वत्तबं सिया।। एष भदन्त ! जीवः 'प्रत्युत्पन्न शाश्वतं समयं १६. भन्ते ! यह जीव वर्तमान काल में शाश्वत भवतीति वक्तव्यं स्यात् ? रहता है, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हन्त गौतम ! एष जीवः प्रत्युत्पन्नं शाश्वतं हां, गौतम ! यह जीव वर्तमान काल में शाश्वत समयं भवतीति वक्तव्यं स्यात्। रहता है, ऐसा कहा जा सकता है। १६६. एस णं भंते ! जीवे अणागयं अणंतं एष भदन्त ! जीवः अनागतम् अनन्तं शाश्वतं सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया ? समयं भविष्यतीति वक्तव्यं स्यात् ? हंता गोयमा! एसणं जीवे अणागयं अणंतं हन्त गौतम ! एष जीवः अनागतम् अनन्तं सासयं समयं भविस्सतीति वत्तवं सिया ॥ शाश्वतं समयम् भविष्यतीति वक्तव्यं स्यात्। १६६. भन्ते ! यह जीव अनन्त अनागत काल में शाश्वत रहेगा, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हां, गौतम ! यह जीव अनन्त अनागत काल में शाश्वत रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है। भाष्य १. सूत्र १६१-१६६ प्रस्तुत आलापक में पुद्गल और जीव की त्रैकालिकता का प्रतिपादन किया गया है। यह त्रैकालिकता अनन्त अतीत और अनन्त भविष्य से जुड़ी हुई त्रैकालिकता है। 'वह प्रातःकाल था, मध्याह्न में है और शाम को होगा'-यह भी त्रैकालिकता है। यहां यह विवक्षित नहीं है। इसलिए यहां अतीत और अनागत के साथ 'अनन्त' शब्द का प्रयोग किया गया है। द्रव्य त्रैकालिक होता है। पर्याय अल्पकालिक और दीर्घकालिक हो सकता है, किन्तु अनन्तकालिक नहीं होता; इसीलिए द्रव्य निरपेक्ष सत्य और पर्याय सापेक्ष सत्य हैं। सत्य के दो अर्थ हैं-१. अस्तित्व २. वार्तमानिक अभिव्यक्ति। यहां अस्तित्व-सत्य प्रतिपादित है। सत्य वह है, जो अनन्त अतीत में था, वर्तमान में है और अनन्त अनागत में रहेगा। उमास्वाति के अनुसार जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक है, वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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