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________________ श. १ः उ. ४ः सू.१७५-१८८ गोयमा ! वीरियत्ताए अवक्कमेज्जा । नो अवीरित्ताए अवक्कमेजा ॥ १८६. जइ वीरियत्ताए अवक्कमेज्जा, किं बालवीरयत्ताए अवकमेज्जा ? पंडियवीरियत्ताए अवक्कमेज्जा ? बालपंडियवीरियताए अवकमेजा ? गोयमा ! नो बालवीरित्ताए अवक्कमेज्जा । नो पंडियवीरित्ताए अवक्कमेजा । बालपंडियवीरित्ताए अवक्कमेजा || १८७. से भंते ! किं आयाए अवक्कमइ ? अणायाए अवक्कमइ ? गोयमा ! आयाए अवक्कमइ, नो अणायाए अवक्कम — मोहणिजं कम्मं वेदेमाणे ॥ १८८. से कहमेयं भंते ! एवं ? गोमा ! पुब्बिं से एवं एवं रोयइ । इयाणि से एवं एवं नो रोयइ एवं खलु एवं एवं ॥ १. भ. ८ । १४५ । २. सूय. २।२।७५। ६६ गौतम ! वीर्यतया अपक्रामेत् । नो अवीर्यतया अपक्रामेत् । Jain Education International यदि वीर्यतया अपक्रामेत् किं - बालवीर्यतया अपक्रामेत् ? पण्डितवीर्यतया अपक्रामेत् ? बालपण्डितवीर्यतया अपक्रामेत् ? गौतम ! नो बालवीर्यतया अपक्रामेत् । नो पण्डितवीर्यतया अपक्रामेत् । बालपण्डितवीर्यतया अपक्रामेत्। स भदन्त ! किं आत्मना अपक्रामति ? अनात्मना अपक्रामति ? गौतम ! आत्मना अपक्रामति, नो अनात्मना अपक्रामति मोहनीयं कर्म वेदयन् । अथ कथमेतत् भदन्त ! एवं ? गौतम ! पूर्वं तस्मै एतद् एवं रोचते । इदानीं तस्मै एतद् एवं नो रोचते – एवं खलु एतद् एवम् । १. सूत्र १७५-१८८ प्रस्तुत आगम में वीर्यलब्धि के तीन प्रकार बतलाए गए हैं—बालवीर्यलब्धि, पण्डितवीर्यलब्धि, बालपण्डितवीर्यलब्धि ।' सूयगडो पूर्ण अविरति वाले व्यक्ति को बाल, विरति वाले व्यक्ति को पण्डित तथा विरति और अविरति दोनों से युक्त व्यक्ति को बालपण्डित कहा गया है। इस आलापक में मोह के उदय और उपशम के आधार पर उपस्थान और अपक्रमण की व्याख्या की गई है। सम्यग्दर्शन, देशव्रत और सर्वव्रत - अध्यात्म-विकास की क्रमिक भूमिकाएं हैं। मिथ्यादृष्टि जीव में भी यत्किञ्चित् मात्रा में अध्यात्म का विकास होता है । उपस्थान का अर्थ है— आध्यात्मिक विकास। अपक्रमण का अर्थ हैआध्यात्मिक विकास से ह्रास की ओर जाना। मिथ्यादर्शन विकास का न्यूनतम बिन्दु है । इस दृष्टि से सम्यग्दृष्टि का मिथ्यादृष्टि होना अपक्रमण है । सर्वव्रती का देशव्रती होना अपक्रमण है। मोह के उदयकाल में भाष्य भगवई गौतम ! वह वीर्य भाव में अपक्रमण करता है, अवीर्य भाव में अपक्रमण नहीं करता। १८६. यदि वह वीर्य भाव में अपक्रमण करता है, तो क्या बालवीर्य-भाव में अपक्रमण करता है ? पंडितवीर्य-भाव में अपक्रमण करता है ? बालपंडितवीर्य-भाव में अपक्रमण करता है ? गौतम ! वह बालवीर्य भाव में अपक्रमण नहीं करता, पंडितवीर्य-भाव में अपक्रमण नहीं करता, बालपंडितवीर्य-भाव में अपक्रमण करता है। १८७. भन्ते ! क्या वह अपक्रमण आत्मना (अपने आप) करता है ? अनात्मना (परनिमित्त से) करता है ? For Private & Personal Use Only गौतम ! वह आत्मना अपक्रमण करता है, अनात्मना अपक्रमण नहीं करता। मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ अपक्रमण करता है। १८८. भन्ते ! वह मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ अपक्रमण कैसे करता है ? गौतम ! अपक्रमण से पूर्व वह जो तत्त्व जैसा है, उस पर वैसी ही रुचि करता है। अब (मोहनीय कर्म के उदय-काल में) वह जो तत्त्व जैसा है, उस पर वैसी रुचि नहीं करता इस प्रकार वह मोहनीय कर्म का वेदन करता हुआ अपक्रमण करता है। उपस्थान बालवीर्य की भूमिका से आगे नहीं होता। मिथ्यादृष्टि के दर्शनमोह और चारित्रमोह दोनों का उदय रहता है; इसलिए वह सम्यग्दर्शन को उपलब्ध नहीं होता । सम्यग्दृष्टि के चारित्रमोह का उदय रहता है; इसलिए उसे व्रत उपलब्ध नहीं होता। दर्शनमोह के उदयकाल में सम्यग्दर्शन का ह्रास होने पर सम्यक्त्व, देशव्रत और सर्वव्रत - इन तीनों की हानि हो जाती है। चारित्रमोह के उदयकाल में व्रत का हास होता है; इसलिए व्रती सम्यग्दृष्टि बन जाता है अथवा देशव्रती । जब मोहकर्म उपशान्त होता है, उस काल में केवल पण्डितवीर्य काही उपस्थान होता है । उपशम की अवस्था में अपक्रमण करने वाला जीव देशव्रती बनता है। वह उपशम की अवस्था में मिध्यादृष्टि नहीं बनता। जयाचार्य ने वृत्तिकार की व्याख्या के साथ-साथ धर्मसी - कृत ३. भ. वृ. १ । १७५-१८३ – 'उवट्ठाएजत्ति 'उपतिष्ठेत' उपस्थानं परलोकक्रियास्वभ्युपगमं कुर्यादित्यर्थः, 'वीरियत्ताए'त्ति वीर्ययोगाद्वीर्यः प्राणी तद्भावो वीर्यता । www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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