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________________ श.१: उ.२ः सू.१०३-११० ६४ भगवई जीवाणं भवपरिवट्टण-पदं जीवानां भव-परिवर्तन-पदम् जीवों का भव-परिवर्तन-पद १०३.जीवस्सणं भंते ! तीतद्धाए आदिदुस्स जीवस्य भदन्त ! अतीताध्वनः आदिष्टस्य १०३. 'भन्ते ! आदिष्ट (विशेषणो से विशिष्ट) जीव कइविहे संसारसंचिट्ठणकाले पण्णत्ते ? कतिविधः संसारसंस्थानकालः प्रज्ञप्तः ? का अतीत काल में संसार में अवस्थान-काल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गोयमा ! चउबिहे संसारसंचिगुणकाले गौतम ! चतुर्विधः संसारसंस्थानकालः प्रज्ञप्तः, गौतम ! उसका संसार में अवस्थान-काल चार पण्णत्ते, तं जहा–नेरइयसंसारसंचिट्ठण- तद् यथा नैरयिकसंसारसंस्थानकालः, तिर्य- प्रकार का प्रज्ञाप्त है, जैसे-नैरयिक-संसारकाले, तिरिक्खजोणियसंसारसंचिगुण- ग्योनिकसंसारसंस्थानकालः, मनुष्यसंसार- अवस्थान-काल, तिर्यग्योनिक-संसार-अबस्थानकाले, मणुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, देव- संस्थानकालः, देवसंसारसंस्थानकालः । काल, मनुष्य-संसार-अवस्थान-काल और देवसंसारसंचिट्ठणकाले॥ -संसार-अवस्थान-काल। १०४. नेरइयसंसारसंचिगुणकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णते? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्र- काले, असुन्नकाले, मिस्सकाले। नैरयिकसंसारसंस्थानकालः भदन्त ! कतिविधः १०४. भन्ते ! नैरयिकों का संसार-अवस्थान-काल प्रज्ञप्तः ? कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम ! त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद् यथा- गौतम ! वह तीन प्रकार का प्रज्ञाप्त है, जैसेशून्यकालः, अशून्यकालः मिश्रकालः। शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल। १०५. तिरिक्खजोणियसंसारसंचिट्ठणकाले णं तिर्यग्योनिकसंसारसंस्थानकालः भदन्त ! १०५. भन्ते ! तिर्यग्योनिक जीवों का संसारभंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? कतिविधः प्रज्ञप्तः ? अवस्थान-काल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–असुन- गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद् यथा-अशून्य- गौतम ! वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेकाले य, मिस्सकाले य ॥ कालः, मिश्रकालः। अशून्यकाल और मिश्रकाल | १०६. मणुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते ! मनुष्यसंसारसंस्थानकालः भदन्त ! कतिविधः १०६. भन्ते ! मनुष्यों का संसार-अवस्थान-काल कतिविहे पण्णत्ते ? प्रज्ञप्तः ? कितने प्रकार का प्रज्ञाप्त है? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्र- गौतम ! त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद् यथा-शून्य- गौतम ! वह तीन प्रकार का प्रज्ञाप्त है, जैसेकाले, असुत्रकाले, मिस्सकाले कालः अशून्यकालः, मिश्रकालः। शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल | १०७. देवसंसारसंचिटणकाले णं भंते ! देवसंसारसंस्थानकालः भदन्त ! कतिविधः १०७. भन्ते ! देवों का संसार-अवस्थान-काल कितने कतिविहे पण्णत्ते ? प्रज्ञप्तः ? प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुत्र- गौतम ! त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद् यथा-शून्य- गौतम ! वह तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेकाले, असुन्नकाले , मिस्सकाले । कालः अशून्यकालः, मिश्रकालः । शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल | १०८. एतस्स णं भंते ! नेरइयसंसारसंचिट्ठण- एतस्य भदन्त ! नैरयिकसंसारसंस्थानकालस्य १०८. भन्ते ! नैरयिक जीवों के संसार-अवस्थानकालस्स-सुत्रकालस्स, असुत्रकालस्स, -शून्यकालस्य, अशून्यकालस्य मिश्र- काल के शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल मीसकालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे वा? कालस्य च कतरः कतरेभ्यः अल्पो वा ? में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा बहुए वा ? तुल्ले वा ? विसेसाहिए वा? बहुर्वा ? तुल्यो वा ? विशेषाधिको वा ? विशेषाधिक है? गोयमा ! सब्बत्थोवे असुत्रकाले, मिस्सकाले गौतम ! सर्वस्तोकः अशून्यकालः, मिश्रकालः । गौतम ! सबसे अल्प अशून्यकाल है, मिश्रकाल अणंतगुणे, सुत्रकाले अणंतगुणे॥ अनन्तगुणः, शून्यकालः अनन्तगुणः। उससे अनन्तगुना अधिक है और शून्यकाल मिश्रकाल से अनन्तगुना अधिक है। १०६. तिरिक्खजोणियाणं सव्वत्थोवे असुन- तिर्यग्योनिकानां सर्वस्तोकः अशून्यकालः, १०६. तिर्यग्योनिक जीवों के संसार-अवस्थान-काल काले, मिस्सकाले अणंतगुणे ॥ मिश्रकालः अनन्तगुणः । में सबसे अल्प अशून्यकाल है और मिश्रकाल उससे अनन्तगुना अधिक है। ११०. मणुस्स-देवाण य सबत्योवे असुत्र- मनुष्य-देवानां च सर्वस्तोकः अशून्यकालः, ११०. मनुष्य और देवों के संसार-अवस्थान-काल काले, मिस्सकाले अणंतगुणे, सुत्रकाले मिश्रकालः अनन्तगुणः, शून्यकालः अनन्त- में सबसे अल्प अशून्यकाल है, मिश्रकाल उससे अणंतगुणे॥ गुणः। अनन्तगुना अधिक है और शून्यकाल मिश्रकाल से अनन्तगुना अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003593
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages458
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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