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श.१ : उ.२. सू.६०-१००
भगवई
और अनिदा-इन दो नियमों के आधार पर असंज्ञिभूत का उक्त का बन्ध तीव्र अध्यवसाय के साथ कर सकता है और वह वेदना अर्थ ही घटित होता है।
___ के मौलिक कारणों का विवेक भी कर सकता है। अमनस्क जीव में पुण्य या पाप का बन्ध तीव्र अध्यवसाय अमनस्क जीवों की वेदना को अल्प या महान् नहीं कहा जा के साथ नहीं होता, इसलिए वह अगले समनस्क जीवन में भी पुण्य सकता; उनकी वेदना अनिदा ही होती है, इसलिए वे समवेदना वाले या पाप का अल्प वेदन करता है। दूसरी बात यह है कि अमनस्क होते हैं। जीव समनस्क भव में उत्पन्न होकर भी अविकसित मस्तिष्क वाला ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में अमनस्क जीव उत्पन्न नहीं या मूर्छित चेतना वाला अथवा वेदना के मूल कारणों का सम्यग् होते। इसलिए उनके असंज्ञिभूत और संज्ञिभूत भेद नहीं किए जा निर्धारण न करने वाला होता है, इसलिए उसकी वेदना को अल्प
सकते। उनमें मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक देवों के सात वेदना अल्प वेदना और अनिदावेदना कहा गया है।' यह पुनर्जन्म के सिद्धान्त
होती है और अमायी सम्यग्दृष्टि उपपन्नक देवों के सात वेदना अधिक का भी महत्त्वपूर्ण सूत्र है।
होती है। मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक देवों के अनिदा वेदना होती है समनस्क जीव समनस्क भव से मरकर फिर समनस्क भव में
और अमायी सम्यग्दृष्टि उपपत्रक देवों के निदा वेदना होती है।' जन्म लेता है, उस संज्ञिभूत जीव के निदा और महावेदना होती है।
देखें यन्त्रइसका कारण स्पष्ट है-वह समनस्क होने के कारण पुण्य या पाप
संज्ञिभूत
असंज्ञिभूत
| सातवेदना
असातवेदना
मायी मिथ्यादृष्टि अमायी सम्यग्दृष्टि
नैरयिक
| गौण
महावेदना | अल्पवेदना (निदा) (अनिदा)
मुख्य
असुरकुमार
मुख्य
| गौण
महावेदना (निदा)
अल्पवेदना (अनिदा)
विमात्रा (अनियत परिमाण)
पृथ्वीकाय
समवेदना से चतुरिन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च | महावेदना | अल्पवेदना
(अनिदा)
विमात्रा (अनियत परिमाण)
(निदा)
मनुष्य
विमात्रा (अनियत परिमाण)
महावेदना | अल्पवेदना (निदा) (अनिदा)
वानमंतर
महावेदना (निदा)
गौण
अल्पवेदना (अनिदा)
| मुख्य
|
ज्योतिष, वैमानिक
मुख्य
गौण
अल्पवेदना (अनिदा)
महावेदना
| (निदा)
क्रियावाद
क्रिया का अर्थ है-कर्मबन्ध की हेतभत प्रवृत्ति। यहां क्रिया
के पांच प्रकारों की मार्गणा की गई है। ठाणं में इनका विस्तृत वर्णन है।' वेदना और क्रिया में कार्यकारणभाव सम्बन्ध है। मंडितपत्र ने
सञ्जिभवाः, ते चासज्ञित्वादेवात्यन्ताशुभाध्यवसायाभावाद्रलप्रभायामनति- तीव्रवेदननरकेषूत्पादादल्पवेदनाः अथवा सचिभूताः पर्याप्तकीभूताः, असज्ञिनस्तु-अपर्याप्तकाः, ते च क्रमेण महावेदना इतरे च भवन्तीति प्रतीयत एवेति।
(ख) प्रज्ञा.वृ.प.५५७,५८ १. (क) प्रज्ञा.वृ.प.५५७-तत्र नितरां निश्चितं वा सम्यग् दीयते चित्तमस्यामिति निदा। (ख) भ.वृ.१७'अणिदाए' ति अनिर्धारणया वेदनां वेदयन्ति । वेदना- मनुभवन्तोऽपि न पूर्वोपात्ताशुभकर्मपरिणतिरियमिति मिथ्यादृष्टित्वादवगच्छ-
ति। विमनस्कत्वाद् वा मत्तमूर्छितादिति भावना । २. (क) पण्ण.३५ /२२,२३।
(ख) भ.वृ.१।१०० यत्तु प्रागुक्तं सज्ञिनः सम्यग्दृष्टयोऽसज्ञिनस्त्वितरे इति तवृद्धव्याख्यानुसारेणैवेति । ज्योतिष्कवैमानिकेषु त्वसझिनो नोत्पधन्तेऽतो वेदनापदे तेष्वधीयते 'दुविहा जोतिसिया–मायिमिच्छदिट्ठी उववनगा येत्यादि, तत्र मायिमिथ्यादृष्टयोऽल्पवेदना इतरे च महावेदनाः शुभवेदनामाश्रि
त्येति।
३. (क) ठाणं,५।११२-१२२, देखें ठाणं,२।३७ का टिप्पण।
(ख) भ.३।१३४-१३६ ।
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