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सूयगडो १
अध्ययन १ : टिप्पण ११८-१२० ११८. नदी को बालू सूख जातो है तब (सुक्क म्मि)
पानी का प्रवाह आता है और तत्काल चला जाता है तब वहां कुछ पानी शेष रह जाता है या कीचड़ बन जाता है। ये सारी अवस्थाएं 'शुष्क' शब्द से गृहीत हैं।' ११६. मांसार्थी (आमिसत्थेहि)
हमने इसको ढंक और कंक पक्षियों का विशेषण माना है ।
चूर्णिकार और वृत्तिकार ने इसे विशेषण न मान कर स्वतन्त्र माना है। मांसार्थी अर्थात् शृगाल, पक्षि, मनुष्य, मार्जार आदि । यह चूर्णिकार का अर्थ है।'
वृत्तिकार के अनुसार वे मनुष्य जो मांस और चर्बी पाने के इच्छुक हैं तथा वे जो मत्स्य आदि को बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं वे मांसार्थी कहलाते हैं । दुःखी (दुही)
कुछ मत्स्य जो ज्वार के साथ तट पर आ जाते हैं, वे भाटा के आने पर पानी के साथ पुनः समुद्र में चले जाते हैं और कुछ मत्स्य थोड़े से पानी में फंस जाते हैं । मांसार्थी पशु-पक्षी अपने तीक्ष्ण दांतों और चोंचों से उनका मांस नोंच-नोंच कर खाते हैं तब वे मत्स्य बहुत दुःखी होते हैं। १२०. ढंक और कंक पक्षियों के द्वारा (ढंकेहि य कंकेहि य)
प्रस्तुत आगम में ये शब्द तीन स्थानों पर आए हैं। दो स्थानों पर ढंक और कंक तथा एक स्थान पर ढंक आदि । १. ढंकेहि य कंकेहि य (१६११६२) २. जधा ढंका य कंका य (१।११।२७) ३. ढंकादि (१३१४१२)
चूर्णिकार ने प्रथम निर्दिष्ट स्थान में इनका कोई अर्थ नहीं किया है। तात्पर्यार्थ में ये मांसभक्षी पक्षी हैं । दूसरे स्थल पर इनका अर्थ जलचर पक्षी, जो तृण नहीं खाते, केवल उदक का आहार करते हैं-पानी के जीवों का भोजन करते हैं, किया है । तीसरे स्थल पर इन्हें केवल पक्षी माना है।'
वृत्तिकार ने तीन स्थानों पर इनके अर्थ इस प्रकार किए हैं१. मांस में आसक्त रहने वाले पक्षी विशेष । २. मांसाहारी पक्षी विशेष जो जलाशयों पर रहते हैं और मछलियों को पाने में तत्पर रहते हैं। ३. मांसभक्षी क्षुद्रजीव ।
बौद्ध शब्दकोष में ढंक का अर्थ काक (crow) किया है।' १. चूगि पृ०४० : प्रत्यावृत्ते उद्गे शुष्का एवं बालुका संवृत्ता पङ्को वा । २. चणि, पृ० ४० : आमिषाशिनः शृगाल-पक्षि-मनुष्य-मार्जारादयः । ३. वृत्ति, पत्र ४२ : मांसवसाथिभिर्मत्स्यबन्धादिभिर्जीवन्त एव । ४. चूणि, पृ० ४० : यहच्छया च केचित् पुन: वीची नासाद्य वर्द्धमाने च उदके समुद्रमेव विशन्ति । दुहि ति तैस्तीक्ष्णतुण्डः पिशिता
शिभिरश्यमानास्तीव दुःखमनुभवन्तो अट्टदुहट्टवसट्टा मरंति । ५. (क) चूणि पृ० ४० ... एतेनान्ये आमिषाशिनः ।
(ख) वही, पृ० २०१...''जलचरपक्षिजातिरेव..."एते हि न तृणाहारा: केवलोदकाहारा वा।
(ग) वही, पृ० २२८...."ढङ्कः पंखो। ६. (क) वृत्ति पत्र ४२ : आभिषप्रध्नुभिङ्कः कङ्कश्च पक्षि विशेषः । (ख) वही, पृ० २०७ : ढङ्कादयः-पक्षिविशेषा जलाशयाश्रया आमिषजीविनो मत्स्यप्राप्तिं ध्यायन्ति ।
(ग) वही पृ० २४६ : 'ढङ्कादयः'-झुद्रसत्वाः पिशिताशिनः । ७. पालि इंगलिश डिक्शनरी (P.T.S.)
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