________________
सूयगडो १
अध्ययन १: टिप्पण ११०-११३ वृत्तिकार ने केवल 'चार प्रकार का कर्म उपचय को प्राप्त नहीं होता'-इस बौद्ध दृष्टि को स्वीकार किया है।' शारीरिक सुखों में आसक्त (सायागारवणिस्सिया)
चूणिकार ने इसका अर्थ शरीर-सुख के प्रति आसक्त किया है।'
गौरव के तीन प्रकार हैं-ऋद्धि गौरव, रस गौरव, और साता गौरव । प्रस्तुत प्रसंग में साता गौरव का कथन है। इसका अर्थ है-सुखशीलता में आसक्त ।'
श्लोक ५८: ११०. सच्छिद्र नौका (आसाविणि णावं)
__ ऐसी नौका जिसके कोष्ठ (चहारदिवारी) नहीं किया गया है या जिसका कोष्ठ भग्न हो गया है, उसे आश्राविणी नौका कहते हैं। जन्मान्ध (जाइअंघो)
___इसका अर्थ है-जन्मान्ध । चूर्णिकार के अनुसार जात्यंध का ग्रहण इसलिए किया गया है, कि वह न नौका के मुख-अग्रभाग को जानता है और न उसके पृष्ठभाग को जानता है और न वह नाव खेने के उपकरणों का उपयोग जानता है। वह निश्च्छिद्र नौका को भी नहीं चला सकता, फिर छेद वाली नौका को कैसे चला सकता है ?
श्लोक ६० १११. श्रद्धालु गृहस्थ (सड्डी)
यह विभक्ति रहित पद है। यहां 'सड्डीहिं'-तृतीया विभक्ति होनी चाहिए। चूर्णिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं-श्रद्धावान् अथवा एक साथ रहने वाले।' ११२. पूतिकर्म (पूइकडं)
पूतिकृत-आधाकर्म से मिश्रित आहार आदि ।
देखें-दसवेआलियं ५।११५५ का टिप्पण न० १५४ । ११३. फिर भी वह द्विपक्ष का सेवन करताहै (दुपक्खं चेव सेवई)
वृत्तिकार ने इसके तीन अर्थ किए हैं(१) गृहस्थ पक्ष और प्रवजित पक्ष । (२) ईर्यापथ और सांपरायिक ।
(३) पूर्वबद्ध कर्म-प्रकृतियों को गाढ करना तथा नये कर्मों को बांधना। १. वृत्ति, पत्र ४१ : 'इत्येताभिः' पूर्वोक्ताभिश्चतुविधं कर्म नोपचयं यातोति 'दृष्टिभिः' अभ्युपगमैः । २. चूणि, पृष्ठ ३६ : सातागारवो नाम शरीरसुक्खं तत्र निःसृताः (नि:श्रिताः) अज्झोववण्णा इत्यर्थः । ३. वृत्ति, पत्र ४१ : 'सातगौरवनिःधिताः' सुखशीलतायामासक्ताः । ४. आप्टे संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी-कोष्ठम् A Surrounding Wall, भागवत ४।२८५६ । ५. चूणि, पृष्ठ ३६ : आश्रवतीति आश्राविणी अकतकोट्टा भुण्णकोट्ठा वा। ६. वही, पृष्ठ ३६ : जात्यन्धग्रहणं नासौ नावामुखं पृष्ठं वा जानीते, यो वा अवल्लकपत्रादेरुपकरणस्य यथोपयोगः । ........
............... सो हि णिछिटुं पि ण सक्केइ वट्टावेत, किमंग पुण सचिहुं ? ७. चणि, पृष्ठ ४०: श्रद्धा अस्यास्तीति श्राद्धी...............अधवा सडि ति जे एगतो वसंति । ८. वृत्ति, पत्र ४२ : 'द्विपक्ष' गृहस्थपक्ष प्रवजितपक्षं. ............. यदि वा-'द्विपक्ष' मिति ईर्यापथः सांपरायिकं च, अथवा-पूर्वबद्धा निकाचिताद्यवस्थाः कर्मप्रकृतीनयत्यपूर्वाश्चादत्ते ।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org