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सूयगडो १
९३ सबसे सीधे मार्ग (संयम) पर ( सब्वज्जुयं )
इसका अर्थ है - संयम । संयम सब ओर से ऋजु होता है ।
वृत्तिकार ने इसके तीन बर्ष किए हैं- संयम, सद्धर्म और सत्य दशवंकालिक सूत्र में ऋदर्शी का अर्थ संयमदर्शी
मिलता है।'
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१४. कुछ अज्ञानवादी (एगे )
चूर्णिकार ने 'एगे' का अर्थ परतंत्र तीर्थंकर किया है। जैन आगमों में तीर्थंकर शब्द का प्रयोग प्रचुरता से मिलता है । बौद्ध साहित्य में छह तीर्थंकरों का उल्लेख उपलब्ध है ।" तीर्थंकर का अर्थ होता है- प्रवचनकार । शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्र के भाष्य में कपिल, कणाद आदि को सीकर कहा है। इन सारे संदर्भों में चूर्णिकार का 'परतंत्र तीर्थंकर' यह प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण है।
६५. दूसरे ( विशिष्टज्ञानी) की ( अण्णं)
श्लोक ४८ :
यहां 'अन्य' से सर्वज्ञ और सर्वदर्शी का ग्रहण किया गया है।"
४. पकुधो कच्चायनो
५. सञ्जयो बेलट्ठपुत्तो"
६. निगण्ठो माटपुत्तो...
६. वे अपने वितर्कों के द्वारा (अध्पणो य वियक्काह)
इसका अर्थ है - अपने वितर्कों के द्वारा। वे अज्ञानवादी मन ही मन वितकंणा करते हैं कि व्यास ने अमुक ऋषि के द्वारा कथित इतिहास का प्रणयन किया था। कणाद ऋषि ने महेश्वर की आराधना कर उनकी कृपा से वैशेषिक मत का प्रवर्तन किया था। इस प्रकार आत्म-वितर्क और परोपदेश के द्वारा वे बतलाते हैं—यह मार्ग ऋजु है, अथवा यह मार्ग ऋजु नहीं है ।" बितर्क और मीमांसा एकार्थक हैं।'
७. ऋजु (अंजू )
चूर्णिकार ने इसका अर्थ ऋजु किया है।" वृत्तिकार ने इसका प्रधान अर्थ व्यक्त या स्पष्ट तथा वैकल्पिक अर्थ ऋजु या अकु
१. भूपृष्ठ ३६ सजग नाम जो
२. वृत्ति, पत्र ३७ : सर्वैः प्रकारैर्ऋऋ जु: - प्रगुणो विवक्षितमोक्षगमनं प्रत्यकुटिलः सर्वर्जु :- संयमः सद्धर्मो वा'
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अध्ययन १ टिप्पण ६३-६७
...तित्थकरो
'तित्थकरो
लिकरो.....
सर्वर्जुकं — सत्यम् ।
३. दसवेलियं ३ / ११, वृत्ति पत्र ११६ : ऋजुदर्शन इति ऋजुर्मोक्षं प्रति ऋजुत्वात् संयमस्तं पश्यन्त्युपादेयतयेति ऋजुर्दाशिनः ।
४. चूर्ण, पृष्ठ ३६ : एते इति ये उक्ताः परतन्त्रतीर्थकराः ।
५. दोघनिकाय I, २ / २ / २-७ पृ० ४१, ४२ :
१. पूरण कस्सपो...... .तित्थकरो
२. मक्ख लिगोसालो "तित्थकरो
३. अजितो केसकम्बलो
'यदि वा
"तित्थकरो *******
६. ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य, अ० २, पाद १, सूत्र ११, भाष्य, पृ० ३८८ प्रसिद्ध माहात्म्यानुमतानामपि तीर्थकराणां कपिलकणभुवमभूतीनां .....।
७. चूर्णि पृष्ठ ३६ : अन्ये नाम ये छद्मस्थलोकादुत्तीर्णाः सर्वज्ञाः सर्वदर्शनः ।
वही, पृष्ठ २६ यथा व्यासः अमुकेन ऋषिणा एवमुक्तमितिहासमानयति यथा रुणादो ऽपि महेश्वरं किलाऽऽराध्य तत्प्रसादपूतमनाः वैशेविक [म] मकरोत् एतंरारम वितर्कः परोपदेशश्च यथास्वं अयमस्मिन् मार्गः ऋजुः अजु
. वही, पृष्ठ २६ वितक मीमांसेत्यनर्थान्तरम् ।
१०. वही, पृष्ठ ३६ : ऋजुः ।
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