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सूयगडो १
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अध्ययन १३: टिप्पण ५३-५५
श्लोक १३ : ५३. सुसंस्कृतभाषी (भासवं)
भाषावान् के दो अर्थ हैं---सत्यभाषी या धर्मकथा करने की लब्धि से युक्त।'
भाषा के दोषों और गुणों को जानने के कारण सही भाषा बोलने वाला भाषावान् कहलाता है-यह वृत्तिकार का अर्थ है।" ५४. वाग्पटु (सुसाहुवावो)
___ जो हित, मित, और प्रिय बोलता है उसे सुसाधुवादी कहते हैं । जो मुनि क्षीरमध्वाश्रव आदि लब्धि से संपन्न होते हैं, उनकी वाणी बहुत ही मधुर होती है। वे सुसाधुवादी कहे जाते हैं।' ५५. प्रतिभा-संपन्न (पडिहाणवं)
वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं१. जो औत्पत्तिकी आदि बुद्धि के गुणों से युक्त है, जो दूसरे व्यक्ति द्वारा किए गए आक्षेपों का तत्काल उत्तर देने में समर्थ है,
वह प्रतिभावान होता है। २. जो धर्मकथा करने के समय परिषद् में उपस्थित व्यक्ति कौन-कैसे हैं ? वे किस देव को मानने वाले हैं ? वे किस दर्शन में विश्वास करते हैं ?- आदि का अपनी बुद्धि से संकलन कर फिर धर्मकथा में प्रवृत्त होता है, वह प्रतिभावान् कहलाता है।
चूर्णिकार ने आक्षेप का उत्तर देने वाले औत्पत्तिकी आदि बुद्धि से युक्त मुनि को प्रतिभानवान् बतलाया है। उनके अनुसार यह वैकल्पिक पाठ है । उनका मूल पाठ है-पणिधाण-प्रणिधानवान् ।' चर्णिकार ने इस शब्द की व्याख्या में आचारांग के प्रथम श्रु तस्कंध के दो स्थल उद्धृत किए हैं
१. वह भिक्षु कालज्ञ, बलज्ञ, मात्रज्ञ, क्षेत्रज्ञ, क्षणज्ञ, विनयज्ञ, समयज्ञ, भावज्ञ, .......... आदि होता है। २. यह पुरुष कौन है ? यह किस दर्शन का अनुयायी है ?, ऐसा विमर्श करना।।
प्रस्तुत आगम के १४११७ में 'पडिभाणवं' शब्द आया है। चूणिकार ने 'प्रतिभा' के दो निरुक्त किए हैं-'तांस्तान् प्रति अर्थान् भातीति प्रतिभा 'पभणति वा प्रतिभा ।' इनका अर्थ है-उन-उन लोगों के प्रति अर्थ का प्रकाश करने वाली तथा जो प्रकृष्टरूप में निरूपण करती है। उन्होंने प्रतिभावान् का अर्थ-श्रोताओं के संशय को मिटाने वाला किया है।'
वृत्तिकार ने यहां इसका अर्थ-उत्पन्न प्रतिभा वाला किया है।' १. चूणि, पृ० २२३ : सत्यभाषावान् धर्मकथालब्धियुक्तो वा भाषावान् । २. वृत्ति, पत्र २४२ : भाषागुणदोषज्ञतया शोभनभाषायुक्तो भाषावान् । ३. (ख) चुणि, पृष्ठ २२३ : सष्ठ साधु वदति सुसाधुवादी, मृष्ठाभिधानो वा क्षीरमध्वाधवादि ।
(ख) वृत्ति, पत्र २४२ : सुष्ठ साधु-शोभनं हितं नितं प्रियं ववितुं शीलमस्येत्यसौ सुसाधुवादी, क्षीरमध्वाधववादीत्यर्थः । ४. वृत्ति, पत्र २४२, २४३ : प्रतिभा प्रतिमानम् - औत्पत्तिक्यादिबुद्धिगुणसमन्वितत्वेनोत्पन्नप्रतिभत्वं तत्प्रतिमानं विद्यते यस्यासौ प्रति
मानवान्–अपरेणाक्षिप्तस्तदनन्तरमेवोत्तरदानसमर्थः । यदि वा धर्मकथावसरे कोऽयं पुरुषः? कं च देवताविशेष प्रणतः ? कतरद्वा दर्शनमाधित इत्येवमासनप्रतिभतयाऽवेत्य यथायोगमाचष्टे । ५. चूणि, पृ० २२४ : अक्षिप्तः पडिभणति उत्तरं भाषते प्रतिभणतीति (पडि) माणवं, औत्पत्तिक्यादिबुद्धियुक्तः सन् प्रतिभानवान् । ६. चूणि, पृ० २२३, फुटनोट १५ । ७. (क) आयारो २०११० : से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खेयण्णे खणयपणे विणयण्णे समयण्णे भावण्णे, परिग्गहं अममायमाणे,
कालेणुढाई अपडिण्णे। (ख) वही, २०१७७ : के यं पुरिसे ? कं च णए ? ८. चूणि पृ० २३३ : तांस्तान् प्रति अर्थान् भातीति प्रतिमा, पमणति वा पतिमा श्रोतृणां संशयोच्छेत्ता। ६. वृत्ति, पत्र २५४ : प्रतिभानवान् उत्पन्न प्रतिभः ।
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