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________________ सूयगडो। ४८० प्रध्ययन ११: टिप्पण ४१-४६ श्लोक २७: ४१. ढंक कंक (ढंका य कंका य) देखें-१/६२ का टिप्पण । ४२. मछली की खोज में ध्यान करते हैं (मच्छेसणं झियायंति) ढंक आदि जलचर पक्षी मछली की खोज में निश्चल होकर जल के मध्य में खड़े रहते हैं। वे इतने निश्चल हो जाते हैं कि जल हिले-डुले नहीं । जल के हिलने से मछलियां त्रस्त होकर भाग न जाएं-यह उनका ध्यान रहता है।' श्लोक ३० ४३. जन्मान्ध व्यक्ति (जाइअंधो) जात्यन्ध का शाब्दिक अर्थ है-जन्मान्ध । वह पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण इन दिशाओं में कितना चला, कितना चलना शेष है, को नहीं जानता। श्लोक ३१: ४४. महाभय को (महन्भयं) इसका शाब्दिक अर्थ है-महान् भय । चूर्णिकार ने इसका भावात्मक अर्थ-जन्म-जरा-मरण-बहुल संसार किया है। वह पुरुष एक गर्भ से दूसरे गर्भ में, एक जन्म से दूसरे जन्म में, एक मृत्यु से दूसरी मृत्यु में और एक दुःख से दूसरे दुःख में जाता है। इस प्रकार वह हजारों भव करता है। यह उसके महान् भय का हेतु बनता है। वृत्तिकार ने बार-बार संसार में पर्यटन करने से होने वाले दुःख को 'महाभय' माना है।' श्लोक ३३: ४५. ग्राम्य-धर्मों (शब्द आदि विषयों) से (गामधम्महिं) ग्राम्यधर्म का अर्थ है मैथुन । चूर्णिकार और वृत्तिकार ने इसका अर्थ शब्द आदि विषय किया है।' ४६. जीव है (जगा) यह देशी शब्द है। इसका अर्थ है—प्राणी। १. चूणि, पृ० २०२: मच्छेसणं झियायंति, निश्चलास्तिष्ठन्ति जलमज्झे उदगमक्खोभेन्ता, मा भन्मत्स्यादयो नक्षयन्ति उत्तसिष्यन्ति वा। २.चूणि, पृ० २०२ : जातित एव अन्धो जात्यन्धः पूर्वा-पर-दक्षिणोत्तराणां दिशां मार्गाणां गत-गन्तव्यस्थानभिज्ञः एतावद् गतं एतावद् गन्तव्यम् । ३. चूणि, पृ० २०२: महन्भयमिति संसार एव जाति-जरा-मरणबहुलो। तं जधा--गमतो गब्भं जम्मतो जम्मं मारयो मारं दुक्खतो दुवखं, एवं भवसहस्साई पर्यटन्ति बहून्यपि । ४. वृत्ति, पत्र २०८ : 'महाभयं' पौन: पुन्येन संसारपर्यटनया नारकादिस्वभावं दुःखम् । ५. (क) चूणि पृ० २०३ : ग्रामधर्माः शब्दादयः । (ख) वृत्ति, पत्र २०६ : ग्रामधर्माः---शब्दादयो विषयाः। ६. (क) चूणि, पृ०२०३ : जग त्ति जायत इति जगत् तस्मि जगति विद्यन्ते ये, जायन्त इति वा जगाः जन्तवः । (ख) वृत्ति, पत्र २०६ : जगा इति जन्तवो जीवितापिनः । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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