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सूयगडो ।
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प्रध्ययन १० : टिप्पण ५९-६० विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है । इनके ग्रहण की विधि, इनके भेद-प्रभेद, गुण आदि का विस्तार से कथन किया गया है।'
आचारांग के छठे अध्ययन का नाम 'धुत' है । वहां दश धुतों का निर्देश है'१. स्वजन परित्याग धुत । २. कर्म परित्याग धुत । ३. उपकरण परित्याग धुत । ४. शरीरलाघव धुत । ५. संयम धुत । ६. विनय धुत । ७. गौरव-त्याग धुत। ८. तितिक्षा धुत । ६. धर्मोपदेश धुत । १०. कषायपरित्याग धुत । चूणिकार ने शाक्यों के नाम से बारह धुतगुणों का उल्लेख मात्र किया है', जबकि विशुद्धिमग्ग में तेरह धुतों का उल्लेख है ।
श्लोक १७: ५६. छन्द (अभिप्राय) नाना प्रकार के (पुढो छंदा) _ 'पूढो' का अर्थ है-अनेक प्रकार के और 'छंद' का अर्थ है-अभिप्राय । संसार में मनुष्यों के अभिप्राय अनेक प्रकार के होते हैं । अनेक प्रकार के मतवाद उन्हीं के परिणाम हैं । ६०.नानावाद (पुढोवाद)
इसमें दो शब्द हैं-पुढो-पृथग और वादं-वाद या मत । चूर्णिकार ने 'पुढ' और 'उवादं'-ये दो शब्द मानकर 'उवादं' के दो अर्थ किए हैं । एक अर्थ है-ग्रहण करना और दूसरा है-दृष्टि ।
इसी प्रसंग में उन्होंने नाना प्रकार की दृष्टियों (वादो) का उल्लेख किया है।
कुछ आत्मवादी हैं, कुछ अनात्मवादी हैं। कुछ आत्मा को सर्वगत मानते हैं। कुछ आत्मा को नित्य और कुछ अनित्य, कुछ कर्ता और कुछ अकर्ता, कुछ मूर्त और कुछ अमूर्त, कुछ क्रियावान् और कुछ निष्क्रिय मानते हैं । कुछ सुखवाद में विश्वास करते हैं और कुछ दु,खवाद में । कुछ शौचवादी हैं और कुछ अशौचवादी, कुछ हिंसा से मोक्षप्राप्ति मानते हैं और कुछ स्वर्ग मानते हैं।
इतना ही नहीं, एक ही अनुशास्ता को मानने वाले व्यक्तियों में भी भिन्न-भिन्न मत होते हैं । कुछ (बौद्ध) शून्यवाद की प्रज्ञापना करते हैं और कुछ अनिर्वचनीयवाद का प्रतिपादन करते हैं, जैसे- पुद्गल है, मैं नहीं कर सकता कि पुद्गल नहीं है। जो मैं कहता हूं, वह मैं कह सकता हूं-यह भी अनिर्वचनीय है । अवचनीय अवचनीय ही है, केवल स्कन्ध मात्र ही है।
वैशेषिक मतानुयायी नौ तत्त्व स्वीकार करते हैं । उनमें भी कुछ दश तत्त्व मानते हैं।
सांख्य इन्द्रियों को सर्वगत मानते हैं । १. विशुद्धिमग्ग, भाग १, पृ० ६०-८० । २. आयरो, पृ० २३२-२६२ । ३. चूणि, पृ० १६० : यथा शाक्या द्वादश धुतगुणान् बवते। ४. चूणि, पृ० १६० : पृथक् पृथक् छन्दाः, नानाछन्दा इत्यर्थः ।
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