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________________ सूपगडो १ ४१६ का अभाव बुढ़ापे के कारण, रोग या तपस्या के कारण हो सकता है । " १७. कामक्रीड़ा और कुमार कीड़ा (गाम कुमारियं कि) - ग्राम्यक्रीड़ा का अर्थ हैं— काम-क्रीड़ा । इसके अनेक प्रकार हैं- हास्य, कंदर्प हस्त-स्पर्श, आलिंगन आदि । चूर्णिकार ने कुमारक्रीड़ा का अर्थ गेंद खेलना या भूला भूलना भी किया है।" वृत्तिकार ने 'गामकुमारियं' को एक शब्द मानकर उसका अर्थ गांव में रहने वाले कुमारों की क्रीड़ा किया है। परस्पर हास्य, कंदर्प, हस्तसंस्पर्शन, आलिंगन आदि करना अथवा गेंद आदि खेलना । ' १८. मर्यादा रहित हो न हंसे (पाइवेलं हसे मुगी) बेला, मेरा, सीमा, मर्यादा ये एकार्थक हैं।" मुनि मर्यादा का अतिक्रमण कर न हंसे । क्योंकि इससे सात - आठ कर्मों का बंध होता है । गौतम ने भगवान् से पूछा -- भंते! जीव हंसता हुआ कितने कर्म बांधता है ? भगवान् ने कहा- गौतम ! सात या आठ कर्म बांधता है ।" चूर्णिकार ने इस आगमिक कारण के अतिरिक्त एक कारण और दिया है कि हंसने से संपातिम वायुकाय के जीवों का वध होता है ।" इन कारणों के अतिरिक्त मुनि यदि मर्यादा रहित होकर हंसता है, अट्टहास करता है तो वह अशिष्ट व्यवहार लगता है । सुनने वालों को छिछलेपन का भान होता है । इलोक ३० : अध्ययन ६ : टिप्पण ६७-६६ १२. सुन्दर पदार्थों के प्रति (उरालेसु) 'उराल' का संस्कृत रूप 'उदार' किया गया है। पिशेल के अनुसार मागधी में 'द' बहुत ही अधिक स्थलों पर 'उ' के द्वारा 'र' बनकर 'ल' हो गया है ।" १. (क) वृत्ति, पत्र १८४ : अन्तरायः शक्त्यभावः, स च जरसा रोगातङ्काभ्यां स्यात् । अंतरा जराए अभिवाहित तपस्वी इत्यादि (ख) पूणि पृ० १०१ २. पूर्ण पृ० ११०१, १०२ उदार का अर्थ है - सुन्दर, मनोज्ञ । चक्रवर्ती आदि विशिष्ट व्यक्तियों के कामभोग, वस्त्र, आभरण, गीत, नृत्य, यान, वाहन, सत्ता, ऐश्वर्य आदि उदार होते हैं, मनोज्ञ होते हैं । " वामकुमार प्रमधमेोडा कुमारकोडा वा गाम- कोमरिगं किं हस्तस्पर्शन-लिङ्गनादि ताभिः सार्द्ध एवं वा स्त्रीभिः फोडते इति क्रीडा कुमारको तेंद , । ४. चूर्ण, पृ० १८२ : वेला मेरा सीमा मज्जायत्ति वा एगळं । ५. भगवती ५।७१ : जीवे णं भंते । हसमाणे वा, उस्सुयमाणे वा कइ कम्मपगडीओ बंधइ ? 1 Jain Education International - ३. वृत्ति, पत्र १८४ : तथा ग्रामे कुमारका ग्रामकुमारकास्तेषामियं ग्रामकुमारिका काइसौ ? – 'क्रीडा' - हास्यकन्दर्पहस्तसंस्पर्शना लिङ्गनादिका यदि वा गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा इह हसां संपाइमवायुवधो । ६. पूर्ण पृ० १८२ ७. पिशेल, प्राकृत व्याकरण, पेरा २३७ । For Private & Personal Use Only तत्र ग्रामकोडा हास्यकन्दर्प पुम्भिरपि सार्द्धम् । कुमारकानां ८. (क) चूर्ण, पृ० १८२ : उराला नाम उदाराः शोभना इत्यर्थः तेषु चक्रवर्त्यादीनां सम्बन्धिषु शब्दादिषु कामभोगेषु अन्यैश्वर्य वस्त्रा मरण-गीत-गान्धर्वयान वाहनादिषु । (ख) वृत्ति, पत्र १८४ : 'उराला' उदारा: शोभना मनोज्ञा ये चक्रवर्त्यादीनां शब्दादिषु विषयेषु कामभोगा वस्त्राभरणगीतगन्धर्वयानबानादयस्तथा आश्यर्यादश्च एतेदारेषु । www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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