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सूयगडो १
७. संति पंच इहमेगेसिमाहिया
पुढवी
बाऊ
महम्भूषा
आऊ लेक आवासपंचम ॥७॥
एए पंच
महसूया
तेभो एगो त्ति आहिया अह एसि विनासे विणासो होइ देहिणो |८|
६. जहा
य पुढवीवूमे एगे जागा हि दोसह । एवं भो ! [कविणे लोए विष्णू णाणा हि बोलए ||
१०. एवमे त्ति जंपंति मंदा आरंभमिलिया| एगे किव्वा सयं पार्व तिथ्यं विण् ॥१०
११. पसेवं कसिणे आया जे बाला जे य पंडिया । संति पेन्वा ण ते संति स्थि तवाया। १२. वि पुणे व पावे वा
पत्थि लोए इस परे । सरोरस्स विनासेणं विणासो होइ देहिणो । १२ ।
१३. कुवं च कारयं चेत्र सव्वं कु ण विज्जइ । एवं अकारओ अप्पा ते उ एवं पगनिया | १३ |
१४. जे ते उ वाइणो एवं लोए तसि कुओ सिया ? तमात्र ते तमं जंति मंदा
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आरंभजिसिया | २४
१५. संति पंच
इहमेगेलि
आयछट्ठा
पुणेगाहु आया लोगे य सासए । १५ ।
महब्भूया
आहिया
सन्ति पञ्च महाभूतानि, वह एकेषा आहृतानि । पृथ्वी आप तेजो, वायुः आकारापमानि ॥
एतानि पञ्च महाभूतानि, तेभ्यः एक इति आहृताः । अथ एषां विनाशे तु, विनाशो भवति देहिनः || यथा च पृथिवी स्तूप:, एको नाना हि दृश्यते । एवं भो ! कृत्स्नो लोको, विज्ञो नाना हि यते ॥
एवमेके इति जल्पन्ति, मंदा: आरम्भनिचिताः ।
एक: कृत्वा स्वयं पापं, तीव्रं दुःखं नियच्छति ।।
प्रत्येकं कुसन: आरमा, ये बालाः ये च पंडिता: । सन्ति प्रेत्य न ते सन्ति, न सन्ति सरवा ओपालिकाः ।।
नास्ति पुण्यं वा पापं वा, नास्ति लोकः इतः परः । शरीरस्य विनाशेन, विनाशो भवति देहिनः ॥
कुर्वंश्च कारयश्चैव, सर्व कुर्वन् न विद्यते । एवं अकारकः आत्मा, ते तु एवं प्रगल्भिताः ॥
ये ते तु वादिनः एवं, लोकः कुतः स्वात् ? तमसः ते तमो यान्ति, मन्दा: आरम्भनिश्रिताः ॥
सन्ति पञ्च महाभूतानि, हमे आतानि । आत्मषष्ठाः पुनरेके आहुः, आत्मा लोकश्च शाश्वतः ।।
०१ समय: श्लो० ७-१५
७. कुछ दार्शनिकों" (भूतवादियों) के मत में यह निरूपित है कि इस जगत् में पांच महाभूत हैं"पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश ।
८. ये पांच महाभूत हैं। इनके संयोग से" एकआत्मा उत्पन्न होता है। इन पांच महाभूतों का विनाश होने पर " आत्मा (देही) का विनाश हो जाता है । २०३०
६. जैसे – एक ही पृथ्वी- स्तूप ( मृत्- पिण्ड ) नानारूपों में दिखाई देता है, उसी प्रकार समूचा लोक एक विज्ञ" ( ज्ञानपिण्ड ) देता है ।
है,
वह नानारूपों में दिखाई
१०. क्रिया करने में अलस और हिंसा से प्रतिवद्ध" कुछ दार्शनिक उक्त सिद्धांत का निरूपण करते हैं । (यदि आत्मा एक है तो वह कैसे घटित होगा कि ) अकेला व्यक्ति स्वयं पाप करता है और वही तीव्र" दुःख भोगता है । ३४.३५
११. प्रत्येक शरीर में पृथक्-पृथक् अखंड" आत्मा है, इसीलिए कुछ अज्ञानी हैं और कुछ पंडित है जो शरीर से ही आत्माएं "आत्माएं परलोक में नहीं जाती " उनका पुनर्जन्म नहीं होता।"
१२. न पुण्य है, न पाप है और न इस लोक से भिन्न दूसरा कोई लोक है । शरीर का विनाश होने पर आत्मा (देही) का भी विनाश हो जाता है । ४०.४९
१३. आत्मा सब करता है, सब करवाता है, फिर भी वह ( पुण्य-पाप का बंध) करने वाला नहीं होता, इसलिए वह अकर्ता है। अक्रियावादी इस सिद्धांत की स्थापना करते हैं ।
१४. ऐसा कहते है उनके मतानुसार यह लोकर कैसे घटित होगा ? अक्रियावादी पुरुषार्थ करने में अलस और हिंसा से प्रतिबद्ध" होकर तम से घोर तम ( अज्ञान से घोर अज्ञान) की ओर चले जाते हैं । ४४.४५
१५. पाच महाभूत हैं यह पंचमहाभूतवादी दार्शनिकों काए। कुछ महानुवादी दार्शनिक पांच महाभूत तथा आत्मा को छठा तत्त्व" मानते हैं । उनके मतानुसार आत्मा और लोक शाश्वत हैं ।
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