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पढमं अज्झयणं : पहला अध्ययन
समए : समय पढमो उद्देसो : पहला उद्देशक
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
१. बुज्झज्ज तिउटेज्जा बंधणं परिजाणिया। किमाह बंधणं वीरे? किंवा जाणं तिउदृ? ।।
बुध्येत त्रोटयेत्, बन्धनं
परिज्ञाय । किमाह बन्धनं वीरः? किं वा जानन् त्रोटयति ? ॥
१. सुधर्मा ने कहा-'बोधि को प्राप्त करो।' बंधन को
जानकर उसे तोड़ डालो। जम्बू ने पूछा- 'महावीर ने' बंधन किसे कहा है ? किस तत्त्व को जान लेने पर उसे तोड़ा जा सकता है ?"
२. चित्तमंतमचित्तं वा
परिगिझ किसामवि। अण्णं वा अणुजाणाइ एवं दुक्खा मुच्चई ।।
चित्तवत् अचित्तं वा, परिगृह्य कृशमपि । अन्यं वा अनुजानाति, एवं दुःखात न मुच्यते ।।
२. सुधर्मा ने कहा- 'जो मनुष्य चेतन' या अचेतन
पदार्थों में तनिक भी' परिग्रह-बुद्धि (ममत्व) रखता है और दूसरों के परिग्रह का अनुमोदन करता है वह दुःख से' मुक्त नहीं हो सकता।'
३. सयं तिवातए पाणे
अदुवा अण्णेहिं घायए। हणतं वाणुजाणाइ वेरं वड्डइ अप्पणो ।३।
स्वयं अतिपातयेत् प्राणान्, अथवा अन्यैः घातयेत् । घ्नन्तं वा अनुजानाति, वैरं वर्धयति आत्मनः ।।
३. परिग्रही मनुष्य प्राणियों का स्वयं हनन करता है,
दूसरों से हनन कराता है अथवा हनन करने वाले का अनुमोदन करता है, वह अपने वैर को बढ़ाता है"वह दुःख से मुक्त नहीं हो सकता।
जस्सि कुले समुप्पण्णे जेहिं वा संबसे गरे। ममाती लुप्पती बाले अण्णमण्णेहि मुच्छिए।४।
यस्मिन् कुले समुत्पन्नः, यैर्वा संवसेत् नरः । ममत्ववान् लुप्यते बालः, अन्योऽन्यं मूच्छितः ।।
४. जो मनुष्य जिस कुल में उत्पन्न होता है और जिनके साथ संवास करता है वह उनमें ममत्व रखता है" तथा वे भी उसमें ममत्व रखते हैं। इस प्रकार परस्पर होने वाली मूर्छा से मूच्छित होकर" वह बाल (अज्ञानी) नष्ट होता रहता है—वह दुःख से मुक्त नहीं हो सकता।
५. वित्तं सोयरिया चेव
सब्वमेयं ण ताणइ। संधाति जीवितं चेव कम्मणा उ तिउदृइ ।।
वित्तं सौदर्याश्चैव, सर्वमेतद् न त्राणाय । संधावति जीवितं चैव, कर्माणि तु त्रोटयति ।।
५. धन और भाई-बहिन -ये सब त्राण नहीं दे
सकते।" जीवन मृत्यु की ओर दौड़ रहा है,“ इस सत्य को जान लेने पर मनुष्य कर्म के बंधन को तोड़ डालता है।"
६. एए गंथे विउक्कम्म
एगे समणमाहणा। अयाणंता विउस्सिता सत्ता काहिं माणवा ।।
एतान् ग्रन्थान् व्युत्क्रम्य, एके श्रमण - ब्राह्मणाः । अजानन्तः व्युच्छिताः, सक्ताः कामेषु मानवाः ।।
६. कुछ श्रमण-ब्राह्मण इन उक्त ग्रन्थों (परिग्रह और
परिग्रह-हेतुओं) का परित्याग कर, विरति और अविरति के भेद को नहीं जानते हुए१२ गर्व करते हैं।" वे मननशील होने पर भी कामभोगों में आसक्त रहते हैं।
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