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सूयगडो १
अध्ययन E : टिप्पण ६३-६६ पादत्राण ।' साधु के लिए जूते पहनना अनाचार है।
विशेष विवरण के लिए देखें---दशवकालिक ३/४ 'पाणहा' का टिप्पण । ६३. छाता (छत्तं)
वर्षा तथा आतप-निवारण के लिए जिसका उपयोग किया जाए, उसे 'छत्र' कहते हैं । मुनि के लिए छत्रधारण का निषेध है।'
विशेष विवरण के लिए देखें-दशवकालिक ३।४ का टिप्पण । ६४. नालिका (नलिका से पासा डालकर जुआ खेलना) (णालियं)
नालिका-यह छूत का ही एक विशेष प्रकार है । चतुर द्यूतकार अपनी इच्छा के अनुकूल पासे न डाल दे, इसलिए पासों को नालिका द्वारा डालकर जो जुआ खेला जाता है उसे 'नालिका द्यूत' कहा जाता है।
नालिका शब्द के अनेक अर्थ हैं । जैसे-छोटी-बड़ी डंडी, नली वाली रेत की घड़ी, मुरली आदि-आदि।
जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति की वृत्ति में ७२ कलाओं के नाम हैं। उनमें जुए के लिए तीन शब्द आए हैं-छूत, अष्टापद और नालिकाखेल । वृत्तिकार ने चूत का अर्थ साधारण जुआ, अष्टापद का अर्थ सारी-फलक से खेला जाने वाला जुआ (शतरंज) और नालिकाखेल क अर्थ नालिका द्वारा पासे डालकर खेला जाने वाला धुत किया है। प्रस्तुत सूत्र के चूर्णिकार ने नालिका का अर्थ नालिका-क्रीड़ा और वृत्तिकार ने द्यूतक्रीड़ा विशेष किया है।'
देखें-दशवकालिका ३।४ का टिप्पण । ६५. चमर (बालवीयणं)
बालवीजन का अर्थ है- बालों से बना पंखा, चमर । वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं१. चमर। २. मयूरपिच्छ ।
चमर, मयूरपिच्छ आदि से हवा करना अनाचार है। मुनि भीषणगर्मी में भी पंखा आदि झलकर हवा नहीं ले सकता। ६६-६७. परक्रिया .......... अन्योन्यक्रिया (परकिरियं अण्णमण्णं च)
परक्रिया का अर्थ है-दूसरे से संबंधित क्रिया और अन्योन्यक्रिया का अर्थ है-परस्पर की क्रिया । आयारचूला का तेरहवां अध्ययन परक्रिया से और चौदहवां अध्ययन अन्योन्य क्रिया से संबंधित है। दोनों अध्ययनों की विषय-वस्तु समान है। अन्तर केवल इतना ही है कि पर क्रिया में मुनि के लिए गृहस्थ या अन्यतीर्थिक से पैर आदि का आमर्जन, प्रमर्जन, संबाधन आदि कराने का निषेध है और अन्योन्यक्रिया में परस्पर आमर्जन, प्रमर्जन आदि का निषेध है।
श्लोक २०:
६८. गृहस्थ के पात्र में (परमत्ते)
'परमत्त' में दो शब्द हैं-'पर' और 'अमत्र' । पर का अर्थ है गृहस्थ और अमत्र का अर्थ है-बर्तन । मुनि गृहस्थ के पात्र १. दश वैकालिक ३१४, अगस्त्यचूणि, पृ०६१ : उवाहणा पादत्राणं । २ चूणि, पृ० १७६ : छत्रमपि आतप-प्रवर्षपरित्राणार्थ न धार्यम् । ३. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, २०६४, वृत्ति, पत्र १३७ : द्यूतं सामान्यतः प्रतीतम् । ......... · अष्टापदं-शारिफलका तं तद्विषयककलाम् ।
वृत्ति, पत्र १३६ : नालिकाखेलं त्रु तविशेषं मा भूदिष्टदायविपरीतपाशकनिपातनमिति नालिकया यत्र पाशक: पास्यते। ४. चूणि, पृ० १७६ : नालिका नाम नालिकाक्रीडा कुदुक्काकीड ति । ५. वृत्ति, पत्र १८१ : नालिका-छू तक्रीडाविशेषः । ६. वृत्ति, पत्र १३१ : वाल: मयूरपिच्छैर्वा व्यजनकम् । ७. चूणि, पृ० १७६ : परस्य पात्रं गहिमात्र इत्यर्थः ।
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