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सूयगडो १
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अध्ययन ८: टिप्पण ३१-३६
श्लोक १५: ३१. आयुक्षेम का (आउक्खेमस्स)
__ चूणिकार ने इसका अर्थ-आयुष्य का क्षेम अर्थात् शरीर का आरोग्य किया है । वृत्तिकार ने इसका अर्थ केवल 'आयुष्य' ही किया है। ३२.कोई उपक्रम (विघ्न) (किंचुवक्कम)
यहां दो पदों 'किंचि' और 'उवक्कम' में संधि की गई है। उपक्रम का अर्थ है-आयुष्य-क्षय का उपाय ।
चणिकार ने इसका वैकल्पिक अर्थ-अनशन किया है। उसके तीन प्रकार बतलाए गए हैं-भक्तपरिज्ञा, इंगिनीमरण और प्रायोपगमन । ३३. शिक्षा (संलेखना) का (सिक्खं)
यहां शिक्षा का अर्थ है-मरण-विधि, संलेखना-विधि ।' देखें-आयारो ८।१०५-१३०, गाथा १-२४ ।
श्लोक १६: ३४. अध्यात्म में (अज्झप्पेण)
जो आत्मा से संबंधित है उसे अध्यात्म कहते हैं । ध्यान, स्वाध्याय, वैराग्य, एकाग्रता-ये सब अध्यात्म के प्रकार हैं।'
श्लोक १७: ३५. बुरे परिणामों (पापगं च परीणाम)
निदान, इहलोक में सुख प्राप्ति की कामना-आदि पापमय परिणाम हैं।'
श्लोक १८: ३६. अणुमात्र भो मान (अणु माणं ............)
साधक संयम में पराक्रम करता है। उसके संयम से आकृष्ट होकर लोग उसकी पूजा करते हैं, फिर भी वह अहंभाव न लाए।
इसी प्रकार माया, क्रोध और लोभ का भी साधक विवर्जन करे । कषायों के स्वरूप को जानकर, उनके विपाकों का चिन्तन कर, साधक उनसे निवृत्त हो।
१. चूणि, पृ० १६६ : आयुषः क्षेममित्यारोग्यं शरीरस्य। २. वृत्ति, पत्र १७२ : आयुः क्षेमस्य स्वायुष इति । ३. (क) चणि पृ० १६६ : यत्किञ्चिदिति उपक्रमाद्वा अवाएण वा। अधवा तिविहो उवक्कमो भत्तपरिणा-इंगिणावि।
(ख) वृत्ति, पत्र १७२ : उपक्रम्यते-संवयते क्षयमुपनीयते आयुर्येन स उपक्रमः । ४. चूणि, पृ० १६६ : संलेहणाविधि शिक्षेत् । ५. चूणि, पृ० १७० : आत्मानमधिकृत्य यत् प्रवर्तते तद् अध्यात्मम्, ध्यानं स्वाध्यायो वैराग्यं एकाग्रता इत्यादिनाऽध्यात्मेन । ६. (क) चूणि, पृ० १७० : पावगं च परीणामं ... ... ... ..णिदाणादि इहलोगासंसप्पयोगं च ।
(ख) वृत्ति, पत्र १७२ : पापकं परिणाममैहिकामुष्मिकाशंसारूपम् । ७. वृत्ति, पत्र १७२।
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