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सूयगडो १
अध्ययन १. प्रामुख ६. कुतीर्थसमय--अन्यतीथिकों की धार्मिक मान्यता । जैसे—कुछ दार्शनिक हिंसा में धर्म मानते हैं, कुछ ज्ञानवादी होते हैं,
कुछ स्नान, उपवास, गुरुकुलवास में ही धर्म मानते हैं । ७. संगारसमय—संकेत का समय-काल । जैसे—पूर्वकृत संकेत के अनुसार सिद्धार्थ नामक सारथी ने बलदेव को संबोधित
किया था। ८. कुलसमय-कुल का धर्म-आचार-व्यवहार । जैसे-शक जाति वालों के लिए पितृशुद्धि, आभीरकों के लिए मन्थनी ___ शुद्धि। ६. गणसमय-गण की आचार-व्यवस्था, जैसे—मल्लगण का यह आचार है कि जो मल्ल अनाथ होकर मरता है, उसका
दाह-संस्कार गण से होता है, अथवा जिसकी दुर्-अवस्था हो जाती है उसका उद्धार गण करता है । १०. संकरसमय-भिन्न-भिन्न जाति वालों का समागम और उनकी एकवाक्यता । वाममार्ग की परंपरा में अनाचार में प्रवृत्त
होने के लिए विभिन्न जाति वाले एक मत हो जाते हैं। ११. गण्डीसमय-उपासना की पद्धति, जैसे-भिक्षु को प्रातः पेज्जागंडी, मध्याह्न में भावणगंडी, अपरान्ह में धर्मकथा
करना, सन्ध्या में समिति का आचरण करना। वृत्तिकार ने भिन्न-भिन्न संप्रदायों की प्रथा को गंडी-समय माना है। जैसे-शाक्य भिक्षु भोजन के समय गंडी का ताडन करते हैं। १२. भावसमय-यह अध्ययन जो क्षयोपशम भाव का उद्बोधक है।
विषय-वस्तु
प्रस्तुत अध्ययन का विषय है स्वसमय-जैन मत और परसमय-जनेतर मतों के कुछेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन। इस अध्ययन के चार उद्देशक और अठासी श्लोक हैं । इनमें विभिन्न मतों का प्रतिपादन-खंडन और मंडन है। नियुक्तिकार ने उद्देशकों के अर्थाधिकार की चर्चा की है। पहले उद्देशक के छह अर्थाधिकार हैं
पंचभूतवाद, एकात्मवाद, तज्जीवतच्छरीरवाद, अकारकवाद, आत्मषष्ठवाद, अफलवाद । दूसरे उद्देशक के चार अर्थाधिकार हैं-नियतिवाद, अज्ञानवाद, ज्ञानवाद, कर्मचय-अभाववाद । तीसरे उद्देशक के दो अर्थाधिकार हैं-आधाकर्म, कृतवाद । चौथे उद्देशक का एक अर्थाधिकार है-परतीथिकों की अविरत-गृहस्थ-तुल्यता ।
वस्तुत: यह अध्ययन अनेक दार्शनिकों के कुछेक प्रचलित सिद्धान्तों के पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष का सुन्दर निरूपण करता है। हमने इस अध्ययन के विषयों का इस प्रकार वर्गीकरण किया है
१-६ बंधन और बंधन-मुक्ति का विवेचन । ७-८ पंचमहाभूतवाद । ९-१० एकात्मवाद। ११-१२ तज्जीव-तच्छरीरवाद । १३-१४ अकारकवाद ।
१५-१६ आत्मषष्ठवाद । १. चूणि पृ० १६-२०॥ २. वृत्ति पत्र ११ : गण्डी समयो-यथाशाक्यानां भोजनावसरे गण्डीताडनमिति । ३. नियुक्ति गाथा २७-२९ : मधपंचभूत एकप्पए य तज्जीवतस्सरीरी य।
तध य अकारकवादी आतच्छट्ठो अफलवादी ॥ बितिए णियतीवायो अण्णाणी तह य णाणवादी य । कम्मं चयं ण गच्छति चतुम्विधं भिक्खुसमयम्मि ।। तइए आहाकम्मं कडवादी जध य ते पवावी तु । किच्चुवमा य उत्थे परप्पवादी अविरतेसु ॥
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