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समय
अध्ययन १: प्रामुख
१७-१८ बौद्धों का पंचस्कंध और चतुर्धातुवाद । १६-२७ एकान्तवादी दर्शनों की निस्सारता । २८-४० नियतिवाद। ४१-५० अज्ञानवाद। ५१-५६ बौद्धों की कर्मोपचय की चिन्ता और उसका समाधान । ६०-६३ आधाकर्म-दोष का प्रतिपादन । ६४-६६ जगत्कर्तृत्व के विभिन्न दर्शनों की चर्चा । ७०-७१ अवतारवाद । ७२-७३ आत्मप्रवाद की प्रशंसा । ७३-७५ सिद्धवाद। ७६-७६ याचना का सिद्धान्त । ८०-८२ लोक-स्वरूप की चर्चा । ८३-८५ अहिंसा का स्वरूप । ८६-८८ भिक्षुक की चर्या ।
इस प्रकार प्रस्तुन अध्ययन में भूवादी दर्शन के दोनो पक्षों-पंचभूतवाद और चतुर्भूतवाद का प्रतिपादन हुआ है। आगमयुग में पंचभूतवाद प्रचलित था । पकुध कात्यायन पंचभूतवाद को स्वीकार करते थे। दर्शनयुग में चार्वाक सम्मत चार भूतों का ही उल्लेख मिलता है । वे आकाश तत्त्व को नहीं मानते थे।
एकात्मवादी दर्शन उपनिषदों का उपजीवी है। 'सर्वत्र एक हो आत्मा है' -यह ६-१० श्लोक में प्रतिपादित है।
इसी प्रकार 'तज्जीव-तच्छरीरवादी' दर्शन का इस अध्ययन में संक्षिप्त वर्णन है। किन्तु दूसरे श्रुतस्कंध (१/१३-२२) में उसका विस्तार मिलता है। प्रस्तुत सूत्र में इस मत के प्रवर्तक का नाम नहीं मिलता, किन्तु बौद्ध साहित्य में अजितकेशकंबल को इस मत का प्रवर्तक माना है।
अक्रियावाद पूरण काश्यप का दार्शनिक पक्ष है। पकुध कात्यायन और पूरणकाश्यप-दोनों अक्रियावादी थे । बौद्ध साहित्य में इसका विस्तार से वर्णन प्राप्त है । वृत्तिकार शीलांक ने अकारकवाद को सांख्यदर्शन का अभिमत बतलाया है।
___पंचमहाभूतवाद पकुधकात्यायन के दार्शनिक पक्ष की एक शाखा है । पंचमहाभूतवादी की मान्यताओं का विशद वर्णन प्रस्तुत सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध (१/२५-२६) में प्राप्त है ।
सतरहवें, अठारहवें श्लोक में बौद्ध सम्मत पांच स्कंधों तथा चार धातुओं का उल्लेख है। प्रस्तुत अध्ययन में नियतिवाद का उल्लेख है । उसका विस्तार द्वितीय श्रुतस्कंध (१/४२-४५) में प्राप्त है।
एकतालीसवें श्लोक में अज्ञानवाद का उल्लेख है । अज्ञानवादी दार्शनिकों के विचारों का निरूपण इसी आगम के १२/२.३ में प्राप्त है । दीघनिकाय में प्ररूपित संजयवे लट्ठिपुत के अनिश्च पवाद के निरूपण को संशयवाद या अज्ञानवाद माना जा सकता है।
प्रस्तुत अध्ययन (श्लोक ६४-६६) में जगत् कर्तृत्व की प्रचलित विभिन्न मान्यताओं का निरूपण है। विभिन्न दार्शनिक सष्टिसंरचना की विभिन्न मान्यताओं को लेकर चलते थे। ६४ से ६७ श्लोक तक सूष्टिवाद का मत उल्लिखित कर ६८ वें श्लोक में सूत्रकार ने अपना अभिमत प्रदर्शित किया है ।
___श्लोक ७०,७१ में अवतारवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित है । चूणिकार ने इसे त्रैराशिक संप्रदाय का अभिमत माना है।' त्रैराशिक का अर्थ आजीवक संप्रदाय किया गया है । गोशालक उसके आचार्य थे।'
लोक के विषय में विभिन्न दार्शनिकों के मत को प्रदर्शित कर सूत्रकार ने जैन मत का प्रतिपादन किया है। (श्लोक
१. वृत्ति पत्र २१,२२। २. चूणि पृष्ठ ४३ : तेरासिइया इदाणि-ते वि कडवादिणो चेव । ३. (क) वृत्ति पत्र ४६ : त्रैराशिका गोशालकमतानुसारिणः ।
(ख) नंबो वृत्ति, हरिभद्रसूरी, पृष्ठ ८७ : राशिकाश्चाजीविका एवोच्यन्ते ।
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