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सूपपडो १
२६. अस
पाणासि
अप्पं भासेज्ज सुव्वए ।
ते
खं तेऽभिव्विडे वीतही
सया जए ॥
२७. झाणजोगं
समाहट्ट
कायं वोसेज्ज सव्वसो । तितिक्खं परमं णच्चा आमोक्साए परिव्वज्जाति ॥ - तिमि ॥
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अपपिण्डाक्षिपानाशी, अल्पं भाषेत सुव्रतः । क्षान्तः अभिनिर्वृतो दान्तः, वीतगृद्धिः सदा यतः ॥
ध्यानयोगं समाहृत्य, कार्य व्युत्सृज्य सर्वशः । तितिक्षां परमां ज्ञात्वा आमोक्षाय परिव्रजेत् ॥
- इति ब्रवीमि ॥
प्र० ८ : वीर्य : श्लोक २६-२७
२६. सुव्रत पुरुष थोड़ा भोजन करे, " थोड़ा जल पीए, थोड़ा बोले ।" सदा क्षमाशील, शांत, दांत और
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अनासक्त होकर संयम में रहे ।
२७. ध्यानयोग को " सम्यग् स्वीकार कर सभी प्रकार से काया का व्युत्सर्ग करे । तितिक्षा (मोक्ष का ) परम साधन है - यह जानकर जीवन पर्यन्त" परिव्रजन (संयम की साधना ) करे।
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- ऐसा मैं कहता हूँ।
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