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सूयगड १
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कुमार अवस्था का विशेषण है। कभी-कभी मनुष्य इस अवस्था में भी मर जाता है ।
४२. अधेड (मभिम )
'मज्झिमा' के स्थान पर विभक्तिरहितपद 'मज्झिम' का प्रयोग किया गया है ।
इसका अर्थ है - मध्यम वय । पैंतीस और पचास के बीच की अवस्था मध्यम कहलाती है ।
४३. ( चयंति ते आउखये पलीणा )
सव प्राणियों का आयुष्य समान नहीं होता । कुछ दीर्घ आयुष्य का बंध करते हैं और कुछ अल्प आयुष्य का। उनके भिन्नभिन्न हेतु हैं । स्थानांग सूत्र में कहा गया है कि जीव तीन कारणों से अल्प आयुष्य कर्म का बंध करता है-'
१. जीव हिंसा से
से
२. मृषावाद
३. श्रमण-माहन को अप्रासुक, अनेषणीय दान देने से ।
इसी प्रकार जीव तीन कारणों से दीर्घ आयुष्य कर्म का बंध करता है ।
१. जीव - हिंसा न करने से,
२. झूठ न बोलने से,
३. श्रमण-माहन को प्रासुक, एषणीय दान देने से ।
अध्ययन ७ टिप्पण ४२-४४
यह आयुष्य भी सोपक्रम और निरुपक्रम -- दोनों प्रकार का होता है। जो प्राणी जैसा आयुष्य बांधता है, उसी के अनुसार उसका जीवन काल होता है। इसी आधार पर कुछ गर्भकाल में, कुछ प्रथम वय में, कुछ मध्यम वय में और कुछ अन्तिम वय में मृत्यु को प्राप्त होते हैं । मरणावस्था के पहले वे सुख या जीवन से च्युत होते हैं और फिर विलीन हो जाते हैं।
श्लोक ११:
४४. धर्म को समझ (बुल्झाहि)
प्राणी ! तू धर्म को समझ । देख, कुशील और पाखंडलोक कभी त्राण नहीं दे सकता। मनुष्य क्षेत्र, उत्तम कुल, रूप, आरोग्य, आयुष्य की दीर्घता, बुद्धि, धर्म का श्रवण, धर्म का आग्रह, धर्म-श्रद्धा और संयम - ये सब दुर्लभ हैं। इसे तू जान -
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मागुस्स- खेस- जाती-कुल-वा-रोमा बुढी।
सम (व) गोग्गह सद्धा दरिसणं च लोगम्मि दुलभाई ॥
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१. चूर्ण, पृ० १५६ : पञ्चशिखो नाम पञ्चचूडः कृमार:, अथवा पञ्च इन्द्रियाणि शिखाभूतानि बुद्धिसमर्थानि स्वे स्वे विषये तस्मात् पञ्चशिखः तस्मिन्नपि कदाचित् म्रियते ।
२. वृत्ति, पत्र १५७ : मध्यमा मध्यमवयसः ।
२.
२०१७१८
निहि मे जीवापायला कम्बं पतितं जहा पाणे अतिवाहिता भवति, मुसं वसा भवति तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिला भेत्ता भवति इच्चेते हि तिहि ठाणेह जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगति ।
तिहि ठाणे जीवा हातामं परेति तं जहा गोपा अतिवालिसा भव षो मुद्दा भवद, सहारू समणं वा माह का एवं एसणिक्जेणं असणपाणामसाइमे पडिलाइटि तिहि ठाणेह जीवा दोहाउयत्ताए कम्मं पगरेति :
४. चूर्ण, पृ० १५६
॥
२. णि, पृ० १५६ कि बोनहीपाखण्डलोकः प्राणाय धम्मं च युग्भणं बोधि । जहा मास्स
खेत्त...
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