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सूपगडो १
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अध्ययन ७ : टिप्पण १०-१३
अंडज, जरायुज, संस्वेदज और रसज- ये सब त्रस प्राणियों के प्रकार हैं । आचारांग में इनके अतिरिक्त तीन प्रकार और मिलते हैं—ो उभिन और औपपातिक
१०. जाति पथ (जन्म-मरण) में ( जाईपहं)
'जाति' का अर्थ है जन्म, और 'पह' का अर्थ है- पथ, मार्ग । जाईपहं अर्थात् उत्पत्ति का मार्ग । तात्पर्य में इसका अर्थ है – संसार, जन्म-मरण की परंपरा । चूर्णिकार ने 'जाई वह' पाठ मानकर 'जाई' का अर्थ जन्म और 'वह' का अर्थ मरण किया है।
११. विनिघात (शारीरिक मानसिक दुःख) को (विविधा)
श्लोक ४८ :
विनिघात का अर्थ है - शारीरिक और मानसिक दुःख का उदय अथवा कर्मों का फल -बिपाक ।
वृत्तिकार ने इसका अर्थ विनाश किया है। "
१२. जन्म-जन्म में (जाति जाति)
चूर्णिकार ने इस दोहरे प्रयोग को 'बीप्सा' के अर्थ में माना है । अर्थात् उन उन जातियों में, त्रस स्थावर जातियों में । "
१३. भर जाता है (मिज्जति)
इसका संस्कृत रूप है --मीयते। यह रूप दो धातुओं से बनता है
१. माङ्क माने मीयते ।
२. मी हिंसायां - मीयते ।
एक का अर्थ है---भरना और दूसरे का अर्थ है - हिंसा करना ।
इन दोनों के आधार पर इस चरण का अर्थ होगा
१. वह अज्ञानी प्राणियों को पीड़ित करने वाला जो कर्म करता है, उससे वह भर जाता है ।
२. वह अज्ञानी उसी कर्म के द्वारा मारा जाता है अथवा 'यह चोर है' 'यह पारदारिक है'- इस प्रकार लोक में वह बताया
जाता है। "
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चूर्णिकार ने 'मज्जते' पाठ की भी सूचना दी है। उसका अर्थ है-निमग्न होना, डूबना
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१. आयारो, १११८ से बेमि-संतिमे तसा पाणा, तं जहा अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया समुच्छिमा उन्मिया ओववाइया ।
२. वृत्ति, पत्र १५५ ।
३. चूर्ण, पृ० १५३ : जातिश्च बधश्च जाति-वधौ, जन्म-मरण इत्युक्तं भवति ।
४. चूर्ण, पृ० १५३ : अधिको णियतो वा घातः निघातः, विविधो वा घातः शरीरमानसा दुःखोदया अट्ठपगार कम्मफलवित्रागो वा ।
५. वृत्ति, पत्र १५५ ६. णि, पृ० १५३ ७. वृत्ति पत्र १५५
विनिघातं विनाशम् । जातिजानीति बीसार्थ तेनेच कर्मणामीयते
:
८. वृत्ति, पत्र १५५ ।
६. चूर्ण, पृ० १५३ : मज्जते वा निमज्जइ इत्यर्थः ।
तासु तासु जाति त्ति तस-यावरजातिसु ।
यते पूर्वते यदि वा 'मी हिंसायां नीयते हिते।
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