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४५-४६. कृतदाव से धर्म की तुलना ४७-४६. ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा और स्वाख्यात समाधि
५०. मुनि के लिये अकरणीय का विवेक ५१. कषाय-विजय से विवेक की उपलब्धि
५२. आत्महित की साधना के दुर्लभ अंग ५३-५४. महावीर की देन-सामायिक की परम्परा
५५. कर्म का अपचय कैसे? ५६. काममूर्छा और ऊर्ध्व (मोक्ष) दृष्टि ५७. पांच महाव्रत के धारक कौन ?
५८. महावीर की समाधि के अज्ञाता ५६-६०. कामैषणा का परिणाम
६१. असाधुता और शोक का अविनाभाव ६२. जीवन की अनित्यता का बोध ६३. हिंसा का परिणाम ६४. हिंसा की प्रवृत्ति का एक कारण-परलोक में संदेह ६५. द्रष्टा का वचन श्रद्धेय ६६. आत्म-तुला ६७. अगारवास में धर्म की परिपालना और निष्पत्ति ६८. सत्य का अनुसन्धान
६६. मोक्षार्थी की चर्या ७०-७१. अशरण भावना का चिन्तन
७२. अपना अपना कर्म
७३. बोधि का दुर्लभता ७४-७६. धर्म की त्रैकालिकता और निष्पत्ति का निर्देश
३७-३६. शिथिल व्यक्ति द्वारा भोग-निमंत्रण की स्वीकृति ४०-४१. अध्यात्म पथ में कायर की स्थिति ४२-४३. भविष्य का भय और ज्योतिष आदि का आलम्बन
४४. सन्देह की स्थिति ४५-४६. आत्महित साधक की परमवीर से तुलना ४७-५७. परतीथिकों के आरोप और उनका निराकरण
५८. बहुगुण उत्पादक चर्चा का निर्देश ५६-६०. रुग्ण-सेवा और उपसर्ग-सहन का उपदेश ६१-६५. अन्यान्य ऋषियों की चर्या को सुन, आत्म-विषीदन
की स्थिति ६६-६८. सुख से सुख प्राप्ति की स्थापना और निरसन ६६-७७. अब्रह्मचर्य का समर्थन, निरसन और विपाक
७८. कामभोग की निवृत्ति से संसार-पारगामिता ___७६. संयतचर्या का निर्देश
८०. विरति, शान्ति और निर्वाण ८१-८२. रुग्ण-सेवा और उपसर्ग-सहन का उपदेश
चौथा अध्ययन १-६. श्रामण्य से च्युत करने वाली स्त्रियों का चरित्र
चित्रण १०. स्त्री-संवास से होने वाला अनुताप ११. स्त्री को विषबुझे कांटे की उपमा
१२. तपस्वी और स्त्री-संवास १३-१६. स्त्री-परिचय और उससे होने वाली दोषापत्तियां
१७. द्विपक्ष-सेवन की विडम्बना १८-१६. कुशील भिक्षु का आचरण और मनःस्थिति
२०. प्रज्ञावान् का स्त्री-संवास २१-२२. व्यभिचार की फलश्रुति २३-२६. स्त्रियों की चंचल मनःस्थिति का चित्रण
२७. स्त्रियों के संवास से श्रामण्य का नाश २८-२९. पाप का अपलाप
३०. अन्न-पान का प्रलोभन
३१. मोह-मूढ़ की दशा ३२-४६. स्त्री में आसक्त व्यक्ति की विडम्बना
५०. कर्मबंध का कारण-कामभोग का सेवन ५१. कामभोग भय-उत्पादक ५२. परक्रिया-स्त्री के स्पर्श का निषेध ५३. कामवांछा से मुक्त होने का निर्देश
पांचवां अध्ययन १. सुधर्मा का नरक विषयक प्रश्न २. नरक का अभिवचन
तीसरा अध्ययन
१-३. लौकिक शूर और संयमी शूर की तुलना
४. शीत परीषह और मुनि
५. उष्ण परीषह और मुनि ६-७. याचना परिषह और मुनि
८. वध परीषह और मुनि ९-११. आक्रोश परीषह और मुनि १२. कठोर स्पर्श का परीषह और मुनि
१३. केशलोच और ब्रह्मचर्य की दुश्चरता और मुनि १४-१६. वध और बन्धन से पराजित मुनि की मनःस्थिति
१७. परीषह विजय का निर्देश १८-२८, ज्ञातिजनों द्वारा दिये जाने वाले अनुकूल परीषहों
के प्रकार २६. ज्ञाति-सम्बन्ध पाताल की भांति दुस्तर ३०-३१. संग आश्रव और आवर्त से तुलित २३-३६. भोगों के लिये निमन्त्रण
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