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पहला अध्ययन
१. बंधन और बंधन मुक्ति की जिज्ञासा
२. दुःख का मूल —परिग्रह
३. हिंसा से बेर की वृद्धि
४. ममत्व और मूर्च्छा
५. कर्ममुक्ति का उपाय
६. विरति और अविरति का विवेक
७. पांच भूतों का निर्देश
८. पांच भूतों से आत्मा की उत्पत्ति
६- १०. एकात्मवाद की स्वीकृति और उसकी विप्रतिपत्ति
११-१२ तज्जीव- तच्छरीरवाद का स्वरूप और निष्पत्ति १३-१४. अक्रियावाद और उसकी विप्रतिपत्ति १५-१६. पांच महाभूतों के अतिरिक्त अजर-अमर आत्मा और लोक की स्वीकृति
१७. बौद्ध सम्मत पांच स्कंधों से अतिरिक्त आत्मा का अस्तित्व नहीं
१५. धातुवादी बौद्धों का मत
१६-२७. बौद्ध दर्शन के एकान्तवाद से दुःख-मुक्ति के आश्वासन का निरसन
२८-४०. नियतिवादी की स्थापना और दोषापत्ति ४१-५०. अज्ञानवाद की स्थापना और दोषापत्ति ५१-५५. बौद्धों का कर्मोंपचय विषयक दृष्टिकोण ५६ - ५६. कर्मोपचय सिद्धान्त की समीक्षा ६० - ६३.
६४. लोक देव या ब्रह्म द्वारा निर्मित
६५. लोक ईश्वरकृत
विषय सूची
पूतिकर्म आहार और उसके सेवन से होने वाले दोष
६६. लोक स्वयंभूकृत
६७. लोक अंडकृत
६८. लोक अनादि
६६. दुःखोत्पत्ति और दु:ख निरोध का ज्ञान ७०-७१. अवतारवाद की स्थापना
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७२-७३. अपने अपने मत की प्रशंसा ७४-७५. सिद्धवाद की स्थापना और निष्पत्ति ७६. प्रावायुकों की वाचार-विचार विषयक विसंगति ७७. भिक्षु को तटस्थ रहने का निर्देश
७८. अपरिग्रह और अनारम्भ पथ का निर्देश ७६. आहार सम्बन्धी निर्देश
८०-८१. लोकवाद विषयक मान्यताएं
८२. मनुष्य परिमित - अपरिमित का कथन ८३-८५. अहिंसा की परिभाषा और पृष्ठभूमि ८६८८ भिक्षु की चर्या के निर्देश कुछ
दूसरा अध्ययन
१. सम्बोधि की दुर्लभता
२. मृत्यु की अनिवार्यता
३. हिंसा विरति का उपदेश
४. कर्म भोगे बिना छुटकारा नहीं ५-६. जीवन की अनित्यता
७८. कर्म विपाक का अनुचिन्तन ६. आचार और माया
१०-११. अहं द्वारा प्रवेदित अनुशासन
१२. वीर कौन ?
१३-१५. कर्मशरीर को कृश करने का निर्देश
१६- १६. कौटुम्बिक व्यक्तियों द्वारा श्रमण को श्रामण्य से
च्युत करने का प्रयास
२०. मोह-मूढ़ता से पुनः असंयम की ओर प्रस्थान
२१. महापथ के प्रति प्रणत होने का निर्देश २२. वैतालिक मार्ग के साधन २३-२४. मान विवर्जन का निर्देश
२५. अधिकार नहीं, मुनिपद वन्दनीय २६-२७. समता धर्म का अनुशीलन
२८-३०. समता धर्म की पृष्ठभूमि और उसका निरूपण
३१. धर्म का पारगामी कौन ? ३२. घर में कौन रहेगा ? ३३. वन्दना - पूजा है सूक्ष्म शल्य ३४-३८. एकलविहारी की चर्या
३६. सामायिक किसके ?
४०. राज संसर्ग असमाधि का कारण
४१. कलहू-विवर्जन का निर्देश
४२. गृहस्थ के भाजन में भोजन का निषेध
४३. मद न करने का कारण
४४. सहनशीलता का निर्देश
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