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[३३] ३-५. नरक-गमन की हेतुभूत प्रवृत्तियां
७. अग्नि का समारम्भ-सब जीवों का समारम्भ ६-७. नैरयिकों का दिशाभ्रम और करुण क्रन्दन
८. बनस्पति की हिंसा : अनेक जीवों की हिंसा ८-१०. वैतरणी नदी का त्रास
६. अनार्यधर्मा कौन ? ११-१२. असूर्य नरकावास का संताप
१०-११. कुशील का विपाक-दर्शन १३. नैरयिकों को तपाना
१२-१८. कुशील व्यक्तियों का दर्शन और उसका निरसन १४. संतक्षण नरकावास का दुःख
१६. दृष्टि की परीक्षा १५-१६. कडाही में पकाना, असह्य दुःख-वेदन
२०. संयम का अवबोध १७-१८, शीत नरकावास के दुःख
२१. श्रामण्य से दूर कौन ? १६-२३. विविध प्रकार की वेदना
२२. सचित्त परिहार २४-२५. रक्त तथा पीब से भरी कुम्भी में पकाना
२३-२६. रस की आसक्ति का कु-परिणाम २६-२७. जैसा कर्म वैसा भार
२७. अनासक्ति का अवबोध २८-३४. नरकपालों द्वारा दी जाने वाली वेदना का चित्रण २८. पांच कारणों से गुणवर्धन ३५. विधूम अग्निस्थान की वेदना
२६-३०. मुक्ति का उपाय ३६. संजीवनी नरक भूमि की प्रताड़ना
आठवां अध्ययन ३७. मानसिक ग्लानि की पराकाष्ठा ३८-३६. सदाज्वला वध-स्थान की वेदना
१. वीर्य क्या और बीर कौन ? ४०-४३. वेदना के विविध प्रकार
२. दो प्रकार के बीर्य ४४. वैतालिक पर्वत की विचित्रता
३. कर्मवीर्य और अकर्मवीर्य की निष्पत्ति ४५-४७. बन्धन और आक्रन्दन
४-९. बालवीर्य या कर्मवीर्य का स्वरूप और फल-निष्पत्ति ४८. सदाजला नदी की दुर्गमता
१०-२२. पण्डितवीर्य या अकर्मवीर्य का दर्शन, स्वरूप और ४६. पत्तेयं दुक्खं
आचरण ५०. जैसा कर्म वैसा फल
२३. अबुद्ध के पराक्रम की फलश्रुति ५१-५२. नरक की अप्राप्ति के हेतुभूत साधनों का निर्देश
२४-२७. बुद्ध के पराक्रम, तप और संयम की फलश्रुति छठा अध्ययन
नौवां अध्ययन १-२. जम्बू द्वारा ज्ञातपुत्र के ज्ञान, दर्शन और शील की
१. धर्म की जिज्ञासा जिज्ञासा
२-३. हिंसा और परिग्रह से दुःख-विमोचन नहीं ३. सुधर्मा द्वारा प्रदत्त समाधान
४. धन का विभाजन, कर्मी का छेदन ४-६. महावीर के ज्ञान, दर्शन और शील विषयक अभि
५-७. अशरण का अवबोध वचन
८-१०. मूलगुणों का निर्देश १०-१४. महावीर की मेरु पर्वत से तुलना
११-२४. उत्तरगुण-चर्या का विवेक १५-२४. विविध उपमाओं से महावीर का गुण-वर्णन
२५-२७. भाषा का विवेक २५. अनन्तचक्षु महावीर
२८. संसर्ग-वर्जन २६. अध्यात्म दोषों का पूर्ण विसर्जन
२६-३२. श्रमण की चर्या २७. वाद-निर्णय और यावज्जीवन संयम की स्थिति
३३. आचार्य की उपासना २८. सर्ववर्जी महावीर
३४. पुरुषादानीय कौन ? २६. धर्म-श्रवण की फलश्रुति
३५. त्रैकालिक धर्म का स्वरूप
३६. सतत साधना का निर्देश सातवां अध्ययन १. षड्जीवनिकाय का निरूपण
दसवां अध्ययन २-४. जीवहिंसा का परिणाम
१-३. समाधि धर्म के कुछ निर्देश ५. कुशीलधर्मी का लक्षण
४. बंधन-मुक्ति का निर्देश ६. आग जलाने वाला और बुझाने वाला-दोनों हिंसक ५. पाप-कर्म का आवर्त
सोमो हिसक
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