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सूयगडो १ २७. किरियाकिरियं वेणइयाणवायं
अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं । से सव्ववायं इह वेयइत्ता उवट्टिए सम्म स दोहरायं ॥
२८. से वारिया इत्थि सराइभत्तं
उवहाणवं दुक्खखयट्ठयाए। लोगं विदित्ता अपरं परं च सव्वं पभू वारिय सव्ववारी॥
२८५ प्र०६ : महावीर स्तुति : श्लोक २७-२६ क्रियाऽक्रियं वैनयिकानुवादं, २७. ज्ञातपुत्र ने क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानिकानां प्रतीत्य स्थानम् । वैन यिकवाद और अज्ञानवाद" के पक्ष स सर्ववादमिह विदित्वा, का निर्णय किया। इस प्रकार सारे उपस्थितः सम्यक् स दीर्घरात्रम् ॥ वादों को जानकर वे दीर्घरात्र
यावज्जीवन तक संयम में उपस्थित
रहे। स वारयित्वा स्त्रियं सरात्रिभक्तं, २८. दुःखों को क्षीण करने के लिए तपस्वी" उपधानवान् दुःखक्षयाथम् । ज्ञातपुत्र ने स्त्री और रात्री-भोजन का लोकं विदित्वाऽपरं परं च,
वर्जन किया । साधारण और सर्वं प्रभुरितवान् सर्ववारी॥ विशिष्ट-दोनों प्रकार के लोगों को
जानकर सर्ववर्जी प्रभु ने सब (स्त्री, रात्री-भोजन, प्राणातिपात आदि सभी
दोषों) का वर्जन किना।" श्रुत्वा च धर्म अर्हद्भाषितं, २६. समाधान देने वाले," अर्थ और पद
समाहितं अर्थपदोपशुद्धम् ।। से विशुद्ध अर्हत्-भाषित धर्म को सुन, तं श्रद्दधाना आदाय जनाः अनायुषः, उसे श्रद्धापूर्वक स्वीकार कर' मनुष्य इन्द्रा वा देवाधिपाः आगमिष्ये ॥ मुक्त होते हैं अथवा अगले जन्म में
देवाधिपति इन्द्र होते हैं। -इति ब्रवीमि॥
-ऐसा मैं कहता हूं।
२६. सोच्चा य धम्म अरहंतभासियं
समाहियं अट्ठपदोवसुद्धं । तं सद्दहंताजय जणा अणाऊ इंदा व देवाहिव आगमिस्सं ॥
-ति बेमि॥
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