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छठें अज्झयणं : छठा अध्ययन महावीरत्थुई : महावीर स्तुति
संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद
१. पुच्छिसु णं समणा माहणा य
अगारिणो या परतित्थिया य। से के इमं णितियं धम्ममाहु अणेलिसं? साहसमिक्खयाए॥
अप्राक्षः श्रमणा माहणाश्च, अगारिणश्च परतीथिकाश्च । स क: इमं नित्यं धर्ममाह, अनीदृशं? साधुसमीक्षया ॥
१. श्रमणों, ब्राह्मणों', गृहस्थों और पर
तीथिकों ने (जम्बू से और जम्बू ने सुधर्मा से) पूछा -- 'वह (ज्ञातपुत्र) कौन है जिसने भलीभांति देखकर इस शाश्वत' और अनुपम धर्म का निरूपण किया ?
२. कहं व णाणं? कह देसणं से ? सीलं कहं णायसुयस्स आसि?। जाणासि णं भिक्खु ! जहातहेणं अहासुयं बूहि जहा णिसंतं ।।
कथं वा ज्ञानं कथं दर्शनं तस्य, शीलं कथं ज्ञातसुतस्यासीत् ? जानासि भिक्षो ! यथातथेन, यथाश्रुतं ब्रूहि यथा निशान्तम् ।।
२. ज्ञातपुत्र का ज्ञान कैसा था ? उनका
दर्शन कैसा था ?' उनका शीलसदाचार कैसा था ? हे भिक्षु" ! (प्रत्यक्ष दर्शन के द्वारा) यथार्थ रूप में जो तुम जानते हो" और जो तुमने सुना है, जैसा तुमने अवधारित किया है" वह हमें बताओ। ३. (सुधर्मा ने कहा) ज्ञातपुत्र आत्मज्ञ,५
कुशल", मेधावी'', अनन्तज्ञानी और अनन्तदर्शी थे । उन यशस्वी और आलोक-पथ में स्थित" ज्ञातपुत्र के धर्म को जानो और उनकी घृति को देखो।
३. खेयण्णए से कुसले मेहावी
अणंतणाणी य अणंतदंसी। जसंसिणो चक्खुपहे ठियस्स जाणाहि धम्मं च धिइं च पेह॥
क्षेत्रज्ञकः स कुशलो मेधावी अनन्तज्ञानी च अनन्तदर्शी । यशस्विनः चक्षुष्पथे स्थितस्य, जानीहि धर्मञ्च धृतिञ्च प्रेक्षस्व॥
४. उड्ढं अहे यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा। से णिच्चणिच्चेहि समिक्ख पण्णे दीवे व धम्म समियं उदाहु ॥
ऊर्ध्वमधश्च तिर्यग् दिशासु, त्रसाश्च ये स्थावराश्च ये प्राणाः । स नित्यानित्याभ्यां समीक्ष्य प्रज्ञः, द्वीपमिव धर्म सम्यगुदाह ।
४. ऊंची, नीची और तिरछी दिशाओं में
जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं उन्हें नित्य और अनित्य-इन दोनों दृष्टियों से भलीभांति देखकर प्रज्ञ ज्ञातपुत्र ने" द्वीप की भांति सबको शरण देने वाले (अथवा दीपक की भांति सबको प्रकाशित करने वाले) धर्म का सम्यक प्रतिपादन किया है।
५. से सव्वदंसी अभिभूय गाणी णिरामगंधे धिइमं ठियप्पा। अणुत्तरे सव्वजगंसि विज्ज गंथा अतीते अभए अणाऊ॥
स सर्वदर्शी अभिभूय ज्ञानी, निरामगंधो धतिमान स्थितात्मा । अनुत्तरः सर्वजगति विद्वान, ग्रन्थाद् अतीतः अभयः अनायुः ॥
५. वे सर्वदर्शी थे। वे ज्ञान के आवरण
को अभिभूत कर केवली बन चुके थे ।२२ वे विशुद्ध-भोजी, धृति मान्" और स्थितात्मा" थे। वे संपूर्ण लोक में
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