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सूयगडो १
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अध्ययन ५ : टिप्पण ५-६
१. प्रश्न करने पर जिसको चिन्तन नहीं करना पड़ता, तत्काल सब कुछ समझ में आ जाता है, ऐसी शीघ्र प्रज्ञा से संपन्न व्यक्ति ।
२. जो सदा-सर्वत्र उपयोगवान होता है।'
३. केवलज्ञानी । *
४. सर्वज्ञ ।
५. तीर्थंकर ।"
६. क्षिप्रज्ञ - प्रतिक्षण जागरूक ।
७. पटु ।
५. दुःखदायी (दुमट्ठ)
'दुहम' शब्द में मकार अलाक्षणिक है। इसका संस्कृतरूप 'दुःखार्थ' है । 'जिसका अर्थ दुःख होता है, जिसका प्रयोजन दुःख होता है अथवा जो दुःख का निमित्त होता है, वह दुःखायें है। यह इसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है । इसका तात्पर्यार्थ है - नरक ।'
वृत्तिकार ने निम्नोक्त अर्थ भी किए है-
१. अस अनुष्ठान दुःख का हेतु है, इसलिए वह है।
२. नरकावास दुःख है ।
३. असातावेदनीय कर्म से तीव्र पीड़ा होती है, इसलिए वह दुःख है ।
६. विषम ( दुग्गं )
इसका शाब्दिक अर्थ है-दुर्ग । वह विषम होता है, अतः नरक को दुर्ग माना है ।'
१. (क) सूयगडो १।५।२ चूर्णि पृ० १२६ : आसुपण्णे त्ति न पुच्छितो चितेति, आशु एव प्रजानीते आशुप्रज्ञः । आमशः आशुरेव प्रजानीते न चितमिवेत्यर्थः ।
(ख) १२६७ पुर्ण पृ० १४४ (ग) सूथगडो १०६ । २५ वृत्ति, पत्र १५१ २. (क)१।५।२ वृति पत्र १२६ (ख) १।६।२५ वृत्ति पत्र १५१
: आशुप्रज्ञः न छद्मस्थवत् मनसा पर्यालोच्य पदार्थ परिच्छित्ति विधत्ते । आशुः सर्वत्र सदोपयोगात् ।
शुप्रज्ञः सर्वत्र सोपयोगात् ।
३.
१६० भूमि पृ० १४४ केवलज्ञानत्वादशुमः । (ख) गडो २०५१ चूर्णि पृ० ४०३: प्रो केवली ४. सूयगडो २।६।१८ वृत्ति, पत्र १४५ : आशुप्रज्ञः सर्वज्ञः ।
एव ।
५. सूयगडो २।५।१ चूर्णि पृ० ४०३ : आसुप्रज्ञः तीर्थंकर एव ।
६. (क) गट १०१४१४ ० २२६ आसुत इति प्रियतः सग-लब-मुहूर्त प्रतिमानता । (ख) सूयगडो १।१४१४ वृत्ति पत्र २५० ।
७. सूयगडो २०५१ वृत्ति, पत्र ११६ : आशुप्रज्ञः पटुप्रज्ञः ।
"दुःखस्यार्थं दुखमेवार्थः दुःखप्रयोजनो वा दुःखनिमित्तो वा अर्थ: दुहमठ्ठे । तस्य दुःखस्य कोऽर्थः ? वेदना, शरीरादि सुखार्था हि देवलोकाः, दुःखार्था नरकाः ।
२. पि१२६ दुखम् इति नरकं दुःखहेतुत्वात् अनुष्ठानं यदि वा नरकवास एवं दुःखयतीति दुःखं अथवा असातावेदनी
८. चूर्ण, पृ० १२६ : दुहमट्ठ
योदयात् तीव्रपीडात्मकं दुःखमिति । यदि वा — दुहमट्टदुग्गं ति दुःखमेवार्थो यस्मिन् दुःखनिमित्तो वा दुःखप्रयोजनो
वास दुःखार्थी - नरकः ।
१०. (क) वृषि, पृ० १२६ (ख) वृति पत्र १२६
"
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दुर्गम् नाम विषयम् । स (नरक)
पूर्वी विषम दुतरस्यात् ।
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