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________________ सूयगडो १ ११२. धनुष्य (सरपायगं) इसका अर्थ है-धनुष्य । बच्चे इसका उपयोग खेलने के लिए करते थे । वे इससे एक-दूसरे पर तीर चलाते और प्रसन्न होते थे।' ११३. श्रामणेर (श्रमण-पुत्र) (सामणेराए) यहां श्रामणेर का प्रयोग श्रमणपुत्र के अर्थ में किया गया है।' ११४. तीन वर्ष का बैल (गोरहग) ११५. बच्चे के लिए (कुमारभूयाए) इसके दो अर्थ हैं - छोटे बच्चे के लिए अथवा वह पुरुष स्त्री से पूछता है- तू अपने बेटे के की मां तो मर चुकी । यह मेरा लाडला देवकुमार है । तुम फिर ऐसा कभी मत कहना । ११६. घंटा (डिगं २२१ तीन वर्ष का बैल जो रथ में जुतने योग्य हो जाता है उसे 'गोरथक' कहा जाता है ।' विशेष विवरण के लिए देखें- दसवेआलियं ७।२४ का टिप्पण | श्लोक ४५ अध्ययन ४ टिप्पण ११२ ११६ राजकुमार रूप मेरे बच्चे के लिए। लिए इतनी चीजें मंगा रही है, क्या वह राजपुत्र है ? वह कहती है- राजपुत्र देवता की कृपा से मैंने ऐसे देवकुमार सदृश बेटे को जन्म दिया है। मुझे भूमिकार ने इसका अर्थ बच्चे का खिलौना किया है। वृतिकार ने इसे मिट्टी की कुल्नविका माना है। यह एक प्रकार का घंटा होना चाहिए जिससे बच्चे खेलते हैं । ११७. डमरू (डिडिएणं) चूर्णिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं- छोटा पटह और डमरू ।' वृत्तिकार ने इसे पटह आदि बाजे का वाचक माना है ।" ११. कपड़े की गेंद (चेलगोलं) ८. चूर्ण, पृ० ११८ : डिण्डिमगो णाम पडहिका डमरुगो वा । 1 इसका अर्थ है - वस्त्र या धागे से बना गेंद ।" १. (क) चूणि, पृ० ११८ : सरो अनेन पात्यत इति शरपातकं धणुहुल्लकम् । (ख) वृत्ति, पत्र ११७ : शरा- इषवः पात्यन्ते – क्षिप्यन्ते येन तच्छरपातं धनुः । २. (क) पूर्णि, पृ० ११८ अमणस्यापत्यं श्रामणेरः तस्मै श्रामणेराय । (ख) वृति, पत्र ११७ : सामणेराए त्ति श्रमणस्यापत्यं श्रामणिस्तस्मै श्रमणपुत्राय । ३. बुति पत्र ११० गोरगं ति त्रिहायणं बलीवर्दम् । ४. वृत्ति, पत्र ११७, ११८: कुमारभूताय क्षुल्लकरूपाय राजकुमारभूताय वा मत्पुत्राय । ५. चूर्ण, पृ० ११८: स तेनापदिश्यते-- किमेसो रायपुत्तो ? । सा भणति -माता हता रायपुत्तस्स, एसो मम देवकुमारभूतो, देवतापसादेण चैवाहं देवकुमारसच्छहं पुत्तं पसूता, मा हु मे एवं भणेज्जासु । ६. चूर्णि, पृ० ११८: घडिगा णाम कुंडिल्लगा चेडरूवरमणिका । ७. वृति पत्र ११७ घटिकां मृन्मयकुल्लडिकाम् । Jain Education International ६. वृत्ति, पत्र ११७ : डिण्डिमेन पटहकादिवादित्रविशेषेण । १०. (क) पुर्णि, पृ० ११५ चेतगोलो नाम चेतमओ गोल] तन्तुम। : (ख) वृत्ति, पत्र ११७ : चेलगोलं ति वस्त्रात्माकं कन्दुकम् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003592
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages700
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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