________________
सूयगडो १
२१६
अध्ययन ४ : टिप्पण १०२-१०६
वृत्तिकार ने तीन अर्थ (१, २, ४) किए हैं।' १०२. अंजनशलाका (अंजणसलागं)
इसका अर्थ है-आंख में अजन आंजने की शलाका । चूर्णिकार ने अजन के तीन अर्थ किए हैं-थोतांजन, जात्यंजन और काजल । वृत्तिकार ने अंजन का अर्थ सौवीरक अंजन किया है।'
श्लोक ४२
१०३. संदशक (संडासगं)
चूर्णिकार ने इसका मुख्य अर्थ इस प्रकार किया है-जिस व्यक्ति की जितनी संपन्नता होती है, वह उसके अनुसार मानदंड के रूप में सोने का कल्पवृक्ष बनाता है, उसे संदंशक कहा जाता है। इसका वैकल्पिक अर्थ है-नाक के केश उखाड़ने का उपकरण-संडसी, चिमटी।
वृत्तिकार ने यह वैकल्पिक अर्थ ही स्वीकार किया है। १०४. कंघी (फणिह)
चूर्णिकार ने कंघी के तीन प्रयोजन बताए हैं-बालों को जमाना, बालों को सुलझाना और बालों में पड़ी हुई जूओं को निकालना । १०५. केश-कंकण (सोहलिपासगं)
चूणिकार के अनुसार 'सीहली' का अर्थ है-चोटी । यह देशी शब्द है। उसको बांधने के उपकरण को 'सीहलीपासग' कहा जाता है। यह एक प्रकार का केश-कंकण है, जो अपने-अपने वैभव के अनुसार स्वर्ण आदि से बनाया जाता था।
वृत्तिकार ने इसका अर्थ चोटी को बांधने के लिए काम में आने वाला ऊन का कंकण किया है।' १०६. दतवन (वंतपक्खालणं)
दांतों को साफ करने के लिए दतवन ।"
१. वृत्ति, पत्र ११७। २. चूणि, पृ० ११७ : अञ्जनं अजनमेव श्रोताजनं जात्यञ्जनं कज्जलं वा, अंजनसलागा तु जाए अक्खि अंजिज्जंति । ३. वृत्ति, पत्र ११७ : अञ्जनं-सौवीरकादि शलाका-अक्षणोरञ्जननार्थ शलाका अञ्जनशलाका । ४. चूणि, पृ० ११७ : संडासओ कप्परुक्खओ कज्जति सोवग्णिओ, जस्स वा जारिसो विभवो। अधवा संडासगो जेण णासारोमाणि
उक्खणंति । ५. वृत्ति, पत्र ११७ : संडासकं नासिकाकेशोत्पाटनम् । ६. चूणि, पृ० ११७ : फणिगाए वाला जमिज्जति ओलिहिज्जति जूगाओ वा उद्धरिज्जंति । ७. देशीनाममाला ८.५५ : .............."सिहणोमालिआसु सोहलिआ॥
सोहलिआ-शिखा नवमालिका चेति द्वयर्था । ८. चूणि, पृ० ११७ : सीहलिपासगो णाम कंकणं, तं पुण जधाविभवेण सोवणियं पि कीरति । सिहली णाम सिहंडओ, तस्स पासगो
सिहलीपासगो। ६. वृत्ति, पत्र ११७ : सीहलिपासगं ति वेणीसंयमनार्थमूर्णामयं कङ्कणं । १०. वृत्ति, पत्र ११७ : बन्तप्रक्षालनं-दन्तकाष्ठम् ।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org