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सूयगडो १
रखा जाता रहा हो।"
८५. आभूषण (अलंकार)
हार तथा केश के कुछ अलंकरण । वृत्तिकार ने अलंकार के अन्तर्गत कंकण, बाजूबंद आदि का ग्रहण किया है ।"
८६. तुंबवीणा (कुक्कययं )
चूर्णिकार ने इसका अर्थ तुंबवीणा किया है।" वृत्तिकार ने इस शब्द के समकक्ष 'खुखुणक' शब्द का प्रयोग किया है ।" देशी नाममाला में 'खुखुणय' का अर्थ 'नाक का अग्रभाग' ( नाक का छेद - पाइयसद्दमहण्णव ) किया है। इसके अनुसार यह कोई नाक का आभूषण प्रतीत होता है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ-विस्तार इस प्रकार दिया है.
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वह स्त्री कहती है- तुम मुझे 'खुंखुणक' दो, जिससे कि मैं सभी प्रकार के अलंकारों से विभूषित होकर वीणा बजाकर तुम्हारा मनोविनोद कर सकूं। संभव है यह एक प्रकार की वीणा भी रही हो । चूर्णिकार ने इसका अर्थ वीणा ही किया है । ८७. बांसुरी (वेणुपलासियं)
चूर्णिकार और वृत्तिकार ने इसको इस प्रकार समझाया है— बांस की कोमल छाल से बनी हुई बांसुरी जिसे दांतों में बाएं हाथ से पकड़कर दांएं हाथ से वीणा की भांति बजाया जाता है । चूर्णिकार ने इसका दूसरा नाम 'पिच्छोला' बताया है ।" गुटिका ( गुलि
भूमिकार ने तीन प्रकार की टिकानों का उल्लेख किया है(१) औषधगुटिका - यौवन को स्थिर रखने वाली गुटिका ।
(२) अर्धगुटिका आदि का निर्माण करने वाली गुटिका ।
(३) अगदगुटिका - रोग को मिटाने वाली गुटिका ।
८. कूठ (कोट्ठ)
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प्राचीन काल में यौवन को यथावत् बनाए रखने के लिए औषधियों से गुटिकाओं का निर्माण किया जाता था । तरुण स्त्रीपुरुष इन गुटिकाओं का सेवन करते थे।
वृत्तिकार ने प्रस्तुत प्रसंग में केवल औषधगुटिका का ही उल्लेख किया है।"
इलोक ३६ :
अध्ययन ४ टिप्पण ८५-८
इसका अर्थ है - कूठ । वृत्तिकार के अनुसार यह गंधद्रव्य उत्पल से बनाया जाता है । "
१.
११६ अंजगिमिति अकलाधारभूतां नलिका
२. चूर्ण, पृ० ११६ : अलंकारे हार-नुकेशाद्यलङ्कारं वा सकेसियाण ।
३. वृत्ति, पत्र ११६ : कटककेयूरादिकमलङ्कारं वा ।
४. चूर्ण, पृ० ११६ : कुक्कुहगो णाम तंबवीणा ।
५. वृत्ति, पत्र ११६ : कुक्कययं ति खुखुणकम् ।
६. देशी नाममाला, २०७६ : खुखु खिं खुणय
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खुखुणओ घ्राणसिरा ।
७. वृति पत्र ११६ चकं मे मम प्रयच्छ येनाहं सर्वालङ्कारविभूषिता दोषाविनोदेन भवन्तं विनोदयामि । ८. (क) णि, पृ०
११६वलासी नाम नयी सरहका बिना सा तेहि य वामहस्वेग व पेणं दाहिणहत्येग व वीणा इव बाइज्जद, पिछोला इत्यर्थः ।
(ख) वृति पत्र ११६
पलासियत बंशात्मिका लाडिका सामहस्तेन प्रदक्षिणहस्तेन वीणावाद्यते । ६. चूर्ण, पृ० ११६ : गुलिया णाम एक्का ताव ओसहगुलिया अत्यगुलिया अगतगुलिया वा । घटिका तथाभूतामानय येनाहमविनष्टयौवना भवामीति ।
१०. वृति पत्र ११६
११. वृत्ति, पत्र ११६ : कुष्ठम् – कुठं इत्यादि उत्पलकुष्ठम् ।
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