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सूडो १
८१. मेरे पैर रचा (पायाणि य मे रयावेहि)
इसके दो अर्थ है
१. पात्रों को रंग दो ।
२. पैरों को महावर से रंग दो ।
८०. (दारुणि
भविस्सई राओ)
स्त्री उस कामासक्त भिक्षु से कहती है-तुम जंगल में जाकर लकड़ी ले आओ। बाजार में जाकर उसे बेचो । कुछ लकड़ी बचा लो । उससे भोजन तथा नाश्ता पकालेंगे तथा जो रसोई ठंडी हो गई है, उसे पुनः गरम कर लेंगे। घर में तेल भी नहीं है, अतः दीपक नहीं जलेंगे । लकड़ियों के उस प्रकाश में हम सुख से रहेंगे ।
८२. (त्याणि य मे पडिलेहेहि)
८२. पीठ मल दे ( पट्टि उम्मद्दे )
अधिक बैठे रहने के कारण मेरा शरीर टूट रहा है। बहुत पीड़ित कर रहा है । अतः तुम जोर-जोर से पीठ का मर्दन कर दो।' छाती आदि का तो मैं स्वयं मर्दन कर लूंगी। पीठ तक मेरा हाथ नहीं पहुंचता, अतः तुम उसका मर्दन कर दो ।"
श्लोक ३७ :
२१५
श्लोक ३६ :
भूमिकार ने इसके अनेक अर्थ किए है---
१. तुम इन वस्त्रों को देखो, ये फट गए हैं, मैं नग्न सी हो गई हूं ।
२. क्या तुम नहीं देखते, ये वस्त्र कितने मैले हो गए हैं? मैं इन्हें स्वयं धोऊंगी या तुम इनको धोबी के पास ले जाओ धुलाकर ले आओ ।
और
३. तुम इन वस्त्रों को ठीक से देख लो, ताकि मुझे दूसरे मिल सकें।
४. गठरी में बंधे हुए इन वस्त्रों का तुम निरीक्षण करो, जिससे कि उन्हें चूहे न काट खाएं । अथवा इन कपड़ों को गठरी में बांध लो, ताकि इन्हें चूहे न काट सके ।
वृतिकार ने भी इसी प्रकार के विकल्प प्रस्तुत किए हैं।'
४. चूर्णि, पृ० ११६ ५. पूर्ण पृष्ठ ११६
अध्ययन ४ : टिप्पण ८०-८४
८४. अंजनदानी (अंजण )
वृत्तिकार ने इसका अर्थ काजल को रखने की नलिका किया है। संभव है उस जमाने में काजल छोटी-छोटी नलिकाओं में १. ०११५ दारुणि आगय आनीय विक्रोणीहि अभ्ययागाय पदमानिया वा उबस्वडिजिहित्ति दोच्च वा परि हिति सीतलभूतेहि पोतो वा भविस्सति रातो मृशमुद्योतः दोवते पि गरि (यो हामी विद्याहामो वा ।
तेहि उन्होने मुहं हाथी
२ वृत्ति, पत्र ११६ : पात्राणि पतग्रहादीनि 'रञ्जय' लेपय, येन सुखेनैव भिक्षाटनमहं करोमि, यदि वा पादावलक्तकादिना रञ्जयेति । २.वृत्ति ११६ बाधते ममाजितः संबाध पुनरवरं कार्यशेषं करिष्यसीति ।
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:
६. वृत्ति, पत्र ११६ ॥
श्लोक ३८ :
उत्प्राबल्येन
: पट्टि उम्मद्दे, पुरिल्लं कायं अहं सक्केमि उव (म्म) हेतुं पिट्ठे पुण ण तरामि ।
स्वाणि पेतदरियाग
जाया अहवा fere पस्ससि महलीभूताणि तेण धोवेनि ? रयगस्स वा णं णेहि । अहह्वा वत्थाणि मे पेहाहि त्ति जतो लभेज्ज | अहवा एयाई वत्थाई वेंटियाए पडिलेहेहि,
मासे पुगारिया खज्जेज्ज ।
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