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सूयगडो १
नीतिकार ने कहा है
७६. अच्छे फल ( वग्गुफलाइं)
७७. पकड़ में आ जाता है ( उवलधे )
इसका अर्थ है-पकड़ में आ जाना । जब स्त्री यह जान लेती है कि यह पुरुष मेरे में अनुरक्त है और मेरे द्वारा निर्भर्त्स्यित किए जाने पर भी भाग नहीं जाएगा' - तब वह निश्चित हो जाती है । वह पुरुष के आकार, इगित और चेष्टाओं से उसे वशवर्ती जानकर फिर मनचाहा काम कराने लगती है । यह उपलब्ध का तात्पर्यार्थ है ।
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व्याभिग्न केसरसिरसिहा नागाश्च दानमदराजिकृशैः कपोलैः । मेधाविनश्च पुरुषाः समरे च शूराः, स्त्रीसन्निधौ क्वचन कापुरुषा भवन्ति ॥ श्लोक ३५ :
७८. नौकर का ( तहाएहि )
वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं - १. नौकर और २. लिंगस्थ के अनुरूप कार्य (साधुलिंग के योग्य कार्य ) । चूर्णिकार ने 'तच्चा रूवेहि' पाठ मानकर उसका यही अर्थ किया है। वह स्त्री अपने वशवर्ती मुनि से गृहस्थ योग्य कृषि आदि नहीं करवाती, मुनि वेष में जो कार्य किया जा सकता है, वही करवाती है।" सूत्रकार ने उन कार्यों का उल्लेख आगे किया है ।
चूर्णिकार ने इसका अर्थ - धर्म कथा रूप वाणी से प्राप्त फल, वस्त्र आदि किया है ।"
वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए है
१. अच्छे फल - नारियल, अलाबु आदि ।
२. धर्मकथारूप वाणी से प्राप्त फल - वस्त्र आदि ।
१. (क) पूर्ण पृष्ठ ११५ ।
(ख) वृति पत्र ११५ ।
अध्ययन ४ : टिप्पण ७७-७६
स्त्री आसक्त भिक्षु से कहती है-तुम दिन भर गला फाड़कर, बोल-बोल कर लोगों को धर्म का उपदेश देते हो, क्या तुम उनसे कुछ मांग नहीं सकते ? अथवा तुम ज्योतिष, जादू-टोना आदि करते हो, उसके फलस्वरूप प्राप्त वस्त्र आदि क्यों नहीं लाते ?"
इस प्रकार चूर्णिकार ने 'वग्गु' का अर्थ वाणी किया है और वृत्तिकार ने इसका मुख्य अर्थ - अच्छा या सुन्दर तथा गौण अर्थ वाणी किया है।
२. (क) भूमि, पृष्ठ ११४ उबलो नाम वषो मामनुरको
तो वि पसद लि
(ख) वृत्ति, पत्र १९१५ : उपलब्धो भवति - आकारैरिङ्गितैश्चेष्टया वा मद्वशग इत्येवं परिज्ञातो भवति ताभिः कपटनाटकनायिकामिः
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स्त्रीभिः । ३. वृत्ति, पत्र ११५ । तथाभूतः कर्मकरव्यापारः"
४.
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यदि यातयामूर्तरिति थियो ।
पृष्ठ ११वाई नाम नाई लिंगत्यागुरुयाई, न तु कृष्यादिकर्माणि गृहस्थानुरूपाणि ।
५. चूणि, पृ० ११५ : वग्गू णाम वाचा तस्याः फलाणि वग्गुफलाणि, धर्मकथाफलानीत्यर्थः ।
६. वृत्ति, पत्र ११५ : वल्गूनि - शोभनानि फलानि नालिकेरादीनि अलाबुकानि वा त्वम् आहर आनयेति, यदि वा वाक्फलानि च धर्मकथारूपाया व्याकरणादिव्याख्यानरूपाया वा वाचो यानि फलानि वस्त्रादिलाभरूपाणि ।
७. चूर्ण, पृ० ११५: तुमं दिवसं लोगस्स बोल्लेण गलएण धम्मं कहेसि, जेसि च कहेसि ते ण तरसि मग्गितूणं ? अथवा जोइस कोंटल -
वागरणफलाणि वा ।
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